Move to Jagran APP

अभी भी लाइलाज है भूलने की बीमारी, अल्जाइमर की गुत्थी सुलझाने में नाकाम रहे वैज्ञानिक

भूलने की आम बीमारी अल्जाइमर की जटिलताओं की गुत्थी विज्ञानियों के लिए अभी भी एक पहेली बनी हुई। इस बीमारी के इलाज या रोकथाम के लिए सतत शोध जारी हैं। इस दिशा में अपासला यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक नई एंटीबाडीज डिजाइन करने का दावा किया है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sun, 03 Oct 2021 08:00 PM (IST)Updated: Sun, 03 Oct 2021 08:09 PM (IST)
अभी भी लाइलाज है भूलने की बीमारी, अल्जाइमर की गुत्थी सुलझाने में नाकाम रहे वैज्ञानिक
अभी भी लाइलाज है भूलने की बीमारी, अल्जाइमर की गुत्थी सुलझाने में नाकाम रहे वैज्ञानिक ।

स्टाकहोम (स्वीडन), एजेंसी। भूलने की आम बीमारी अल्जाइमर की जटिलताओं की गुत्थी विज्ञानियों के लिए अभी भी एक पहेली बनी हुई। इस बीमारी के इलाज या रोकथाम के लिए सतत शोध जारी हैं। इस दिशा में अपासला यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक नई एंटीबाडीज डिजाइन करने का दावा किया है, जो इस बीमारी का नया और ज्यादा प्रभावी इलाज हो सकता है। शोध का यह निष्कर्ष 'ट्रांसनेशनल न्यूरोडिजनेरेशन' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

loksabha election banner

क्‍या है बीमारी के लक्ष्‍ण

बता दें कि इस बीमारी के लक्षणों में याददाश्त की कमी, निर्णय नहीं ले पाना, बोलने में कठिनाई शामिल हैं, जिनकी वजह से सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं की भी गंभीर स्थिति पैदा होती है। शोधकर्ताओं का दावा है कि डिजाइन की गई यह नई एंटीबाडीड बीमारी के कारक माने जाने वाले ऐमलाइड-बीटा प्रोटीन के छोटे से हिस्से या गुच्छे को भी बांध या जकड़ लेता है, जिससे रोग की रोकथाम संभव है।

क्‍या है अल्‍जाइमर का इलाज

अल्जाइमर का प्रभावी इलाज हमेशा से कठिन रहा है। अब तक जो भी इलाज खोजे गए हैं, वे आंशिक तौर पर ही प्रभावी पाए गए हैं। असरदार इलाज नहीं खोज पाने के तो कई कारण हैं, लेकिन उनमें से एक यह भी है कि इसके लिए जिन एंटीबाडीज का इस्तेमाल किया जाता है, वे बीमारी पैदा करने वाले सभी प्रकार के विषाक्त (टाक्सिक) तत्वों को बांध या जकड़ नहीं पाती हैं। अल्जाइमर बीमारी में ऐमलाइड-बीटा प्रोटीन विषाक्त तत्वों का संग्रह या उसका गुच्छा बनाने की शुरुआत करता है।

नए शोध में हुआ खुलासा

इस प्रक्रिया को ऐग्रगेशन और इसमें बनने वाले गुच्छों या संग्रह को ऐग्रगेट्स कहते हैं। पहले के शोधों में यह दर्शाया जा चुका है कि पेप्टाइड सोमैटोस्टैटिन से किए जाने वाले इलाज में ऐग्रगेट्स टूटने लगते हैं। लेकिन इस नए शोध में शोधकर्ताओं ने एक ऐसी नई एंटीबाडी का इस्तेमाल किया है, जो टाक्सिक ऐग्रगेट्स को बांध देती है और उन्हें अन्य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने से रोक देती है।मौजूदा इलाज की समस्याअब तक के इलाज की समस्या यह रही है कि जो एंटीबाडीज इस्तेमाल की जाती हैं, वे ऐग्रगेट्स के बड़े गुच्छों को कसकर जकड़ लेती हैं, लेकिन छोटे गुच्छों के साथ ऐसा नहीं होता है, जबकि बड़े-छोटे दोनों ही गुच्छे एक जैसे टाक्सिक होते हैं।

ताजा शोध के नतीजे

कई विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि बड़े से ज्यादा खतरनाक छोटे गुच्छे होते हैं, क्योंकि उनकी मोबिलिटी (संचलन) अधिक होती है। नए शोध के खास उद्देश्य मौजूदा इलाज की इस समस्या को देखते हुए ताजा शोध का मकसद ऐसी एंटीबाडी विकसित करना था, जो ऐमलाइड-बीटा प्रोटीन के बड़े और छोटे दोनों प्रकार के टाक्सिक गुच्छों को बांध सके। एंटीबाडी उत्सुकता या लालच के प्रभाव में अपने लक्ष्यों को बांधता है। इसमें एंटीबाडी अपने लक्ष्यों को दोनों 'हाथों' (आ‌र्म्ज) से एकसाथ दोतरफा निशाना बनाती है। इस लिहाज से दोनों हाथों के बीच की दूरी काफी अहम हो जाती है कि एंटीबाडी किस प्रकार से ऐग्रगेट्स को कसकर जकड़ या बांध सकता है।

शोधकर्ताओं ने डिजाइन किया एंटीबाडी

ऐसे में यदि दोनों आ‌र्म्ज की दूरी ज्यादा हो तो छोटे ऐग्रगेट्स पकड़ में नहीं आते, लेकिन यदि ऐग्रगेट्स का आकार बड़ा हुआ तो वे पकड़ में आ जाते हैं और कसकर जकड़ लिया जाता है। नई एंटीबाडी में क्या है खास शोधकर्ताओं ने एंटीबाडी में इस व्यवस्था के मद्देनजर एक ऐसी नई एंटीबाडी को डिजाइन किया है, जिसमें आ‌र्म्ज की दूरी कम है, जिससे वे छोटे ऐग्रगेट्स को भी अतिरिक्त ताकत के साथ पकड़ पाने में सक्षम होती हैं।

अभी नहीं हुआ प्री क्‍लीनिकल प्रयोग

अपासला यूनिवर्सिटी में प्रोटीन ड्रग डिजाइन विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर ग्रेटा हल्टक्विस्ट ने बताया कि नई एंटीबाडी में ऐग्रगेट्स को पकड़ पाने की शक्ति कम से कम 40 फीसद ज्यादा है। यह छोटे ऐग्रगेट्स को भी अन्य एंटीबाडीज की तुलना में ज्यादा प्रभावी तौर पर पकड़ सकती है। इसलिए यह एक अद्भुत एंटीबाडी है। इस एंटीबाडी का असर सेल कल्चर प्रयोग में भी परखा गया है, जिसमें पाया गया है कि यह ऐमलाइड-बीटा ऐग्रगेट्स के कारण कोशिकाओं को मौत से बचाता है। हालांकि अभी इसका प्री-क्लीनिकल प्रयोग नही हुआ है।-


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.