अमेरिकी 'टामहाक' से चीन की दादागीरी पर लगेगा अंकुश, जानें क्या है परमाणु पनडुब्बी, भारत समेत कितने देशों के पास है ये क्षमता
अमेरिका आस्ट्रेलिया को बेहद घातक परमाणु पनडुब्बी और अमेरिकी ब्रह्मास्त्र कहे जाने वाली टामहाक क्रूज मिसाइलें देने को तैयार हो गया है। खास बात यह है कि ब्रिटेन के बाद आस्ट्रेलिया दुनिया का ऐसा देश है जिसे ये महाविनाशकारी हथियार मिलेंगे।

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। चीन ने हाल के वर्षों में अपनी सैन्य ताकत में काफी इजाफा किया है। दक्षिण चीन सागर से लेकर भारत की सीमा पर उसकी हरकतों से उसके हर पड़ोसी परेशान है। चीन की नौसेना का विस्तार हो रहा है। अमेरिकी अधिकारियों की मानें तो दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे तेजी से चीन की सैन्य क्षमता में इजाफा हुआ है। चीन ने इसके विकास में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इसके मद्देनजर अमेरिका ने आस्ट्रेलिया की सैन्य क्षमता को मजबूत करने का निर्णय लिया है। क्षेत्रीय संतुलन को स्थापित करने के लिए अमेरिका की अगुआई में कई तरह के गठबंधन बनाए जा रहे हैं। इसका मकसद चीन के प्रभुत्व को सीमित करना है। इसी क्रम में अमेरिका अब अपनी माडर्न सैन्य तकनीक और हथियार आस्ट्रेलिया को देने पर राजी हुआ है। अमेरिका आस्ट्रेलिया को बेहद घातक परमाणु पनडुब्बी और अमेरिकी ब्रह्मास्त्र कहे जाने वाली टामहाक क्रूज मिसाइलें देने को तैयार हो गया है। खास बात यह है कि ब्रिटेन के बाद आस्ट्रेलिया दुनिया का ऐसा देश है, जिसे ये महाविनाशकारी हथियार मिलेंगे। आखिर क्या है टामहाक की खूबियां। आखिर इस मिसाइल से अमेरिका को कैसे मिला महाशक्ति का दर्जा। इस मिसाइल से चीन की दादागीरी पर क्या पड़ेगा प्रभाव।
टामहाक मिसाइलों से जुड़ी खास बातें
- शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी नौ सेना के पास दुनिया के दो सबसे खतरनाक एंटी शिप मिसाइल थे। हारपून और टामहाक। इन दो मिसाइलों के जरिए अमेरिकी की सैन्य रणनीति तत्कालीन सोवियत रूस से टक्कर लेने की थी। कहा जाता है कि इस मिसाइल के दम पर ही अमेरिका महाशक्ति का स्थान ग्रहण किए हुए है।
- टामहाक मिसाइलें 20 फीट लंबी होती हैं। इनका वजन 3000 पौंड होता है। इस मिसाइल को जहाज और पनडुब्बी से छोड़ा जा सकता है। ये मिसाइलें 600 मील तक जा सकती हैं, इसके बाद इनकी उड़ान गोलाकार हो जाती है। इस दौरान टामहाक मिसाइलें अपने लक्ष्य को खोज कर उसे नष्ट कर देती हैं।
- वर्ष 1991 में पूर्व सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका ने अपनी सैन्य रणनीति में बदलाव किया। उसने अपना ध्यान समुद्री जंग से हटाकर जमीनी तैयारी पर लगाया। इसने इराक, सर्बिया, अफगानिस्तान, लीबिया और सीरिया पर मिसाइल और हवाई हमले किए।
क्या है परमाणु पनडुब्बी और उसका इतिहास
- दरअसल, यह एक परमाणु संचालित पनडुब्बी है। यानी यह परमाणु रिएक्टर द्वारा संचालित है, लेकिन यह परमाणु हथियार नहीं है। परमाणु पनडुब्बी परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी है, जो समुद्र के अंदर कई महीनों तक छुपी रह सकती है। इसकी खासियत यह है कि उसे अपने ईंधन के लिए बाहर आने की जरूरत नहीं पड़ती। यानी परंपरागत पनडुब्बियों (डीजल और इलेक्ट्रिक से चलने वाली) को अपनी बैटरियों को चार्ज करने के लिए सतह पर आना पड़ता है, लेकिन परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी को ऐसी कोई जरूरत नहीं पड़ती है। यह पनडुब्बी दुश्मन देश को बिना पता लगे उस पर मिसाइलें दागने में सक्षम होती है।
भारत के पास अरिहंत परमाणु पनडुब्बी
- भारतीय नौसेना के पास 'अरिहंत' परमाणु पनडुब्बी है। यह देश में निर्मित पहली परमाणु पनडुब्बी है। इसे विशाखापत्तनम (आंध्रप्रदेश) में तैयार किया गया है। भारत परमाणु पनडुब्बी बनाने वाला दुनिया का छठा देश है। इसके पूर्व अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन भी परमाणु पनडुब्बी बना चुके हैं।
- अरिहंत को देश में ही बनी समुद्र से छोड़ी जाने वाली परमाणु मिसाइल (एसएलबीएम) से लैस किया गया है। इससे भारत समुद्र से अपना परमाणु मिसाइल छोड़ने की क्षमता हासिल करने वाला दुनिया का पांचवां देश बन जाएगा। स्वदेशी परमाणु मिसाइलों से अब तक अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन ही लैस थे।
- अरिहंत की मदद से भारतीय नौसेना हिंद महासागर के पार प्रशांत महासागर तक समुद्री गश्ती करने की क्षमता हासिल कर ली है। अरिहंत के जरिए 'सागरिका' मिसाइल छोड़ी जा सकेगी। इसकी रेंज 500 से 700 किलोमीटर होगी। इसे अग्नि-3 से भी लैस किया गया है। इस परियोजना के पूरे होने पर भारत को आकाश, जमीन और पानी के भीतर से परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की ताकत हासिल हो जाएगी।
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