सिर्फ असद की सत्ता ही नहीं गई, रूस के सैन्य अड्डे भी जाएंगे! सीरिया विद्रोह का पश्चिम एशिया पर क्या असर होगा ?
Fall of Syria सीरिया में बशर अल असद की सत्ता के पतन से पश्चिम एशिया की भूराजनीति ही बदल गई है। सीरिया की धरती से रूस पूरे भू-मध्य सागर क्षेत्र में अपनी रणनीतिक रूप से उपस्थिति दर्ज कराता था। ईरान सीरिया से ही हमास और हिजबुल्लाह को हथियारों की खेप पहुंचाता रहा है। सीरियाई विद्रोह में तुर्किये के दखल ने असद की मुश्किलों को और बढ़ा दिया।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सीरिया में बशर अल असद परिवार की लगभग 54 साल पुरानी सत्ता का अंत हो गया। पिछले 24 साल से बशर अल असद सीरिया के राष्ट्रपति रहे। मगर करीब 13 साल तक चले विद्रोह के बाद उन्हें आठ दिसंबर को परिवार के साथ देश छोड़कर भागना पड़ा।
रूस की राजधानी मॉस्को अब असद का नया ठिकाना है। असद से पहले लगभग 30 साल तक उनके पिता हाफिज ने सीरिया पर राज किया था। सीरिया के विद्रोहियों ने जो चाहा उसे कर दिखाया। मगर इस पूरे घटनाक्रम का पश्चिम एशियाई देशों पर क्या असर होगा? आइए जातने हैं...
कैसे ढाहा असद का किला
27 नवंबर को सीरिया के विद्रोहियों ने 'ऑपरेशन डिटरेंस ऑफ एग्रेशन' नाम से एक नई जंग छेड़ी। विद्रोहियों का नेतृत्व हयात तहरीर अल-शाम (HTS) ने किया। एचटीएस को जैश अल-इज्जा, नेशनल फ्रंट फॉर लिबरेशन, अहरार अल-शाम, नूर अल-दीन और तुर्किये के समर्थित गुटों ने अपना समर्थन दिया। एचटीएस की कमान 42 वर्षीय अबू मोहम्मद अल-जुलानी को दी गई। यह वही जुलानी है, जो पांच साल तक अमेरिका की जेल में भी बंद रह चुका है।
11 दिन भी नहीं टिक सकी असद की सेना
एचटीएस का इदबिल पर शासन था। मगर 27 नवंबर को उसने असद को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से सीरिया के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर हमला किया। तीन दिन में ही अलेप्पो जीत लिया। इसके बाद विद्रोहियों ने हामा और होम्स को अपने शिंकजे पर लिया और पूरी ताकत के साथ राजधानी दमिश्क की तरफ बढ़ने लगे। मगर इस बीच बशर अल असद ने विद्रोहियों के दमिश्क पहुंचने से पहले ही देश छोड़ दिया। सिर्फ 11 दिन में असद की पूरी सत्ता को 42 साल के जुलानी ने उखाड़ फेंका।
- पिछले 13 साल में विद्रोहियों ने कई बार असद को सत्ता से हटाने की कोशिश की। मगर हर बार असद ने इस प्रयास को असफल किया। मगर अब ऐसा क्या हुआ कि सिर्फ 11 दिनों में उनकी सरकार ढह गई। इसकी वजह यह है कि असद के सबसे बड़े सहयोगी रूस, ईरान और हिजबुल्लाह थे। सभी इन दिनों अपनी-अपनी जंग में घिरे हैं। इन देशों से असद को वैसी मदद नहीं मिल सकी, जैसी पहले मिली थी।
- पिछले 13 साल से चल रहे गृह युद्ध से सीरिया की सेना भी ऊब चुकी थी। कई सैनिकों ने अलग विद्रोही गुट भी बना लिए थे। पश्चिम प्रतिबंधों की वजह से पूरी अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुकी है। विद्रोहियों के हमले से पहले ही कई मोर्चों पर सीरिया की सेना भाग चुकी थी। इनका फायदा विद्रोहियों को हुआ।
ईरान की सबसे बड़ी हार
असद का पतन ईरान के लिए सबसे बड़ी हार है। इसकी वजह यह है कि ईरान पिछले 13 सालों से खुलकर असद की मदद में जुटा था। असद के समर्थन में ईरान ने अपने सैनिकों को भी सीरिया भेजा था। उसके प्रॉक्सी हिजबुल्लाह ने भी गृह युद्ध के दौरान अपने लड़ाके सीरिया भेजे।
असद के जाने से सीरिया में ईरान का बड़ा आधार नष्ट हो चुका है। दरअसल, सीरिया से ही ईरान लेबनान में हिजबुल्लाह और गाजा में हमास को हथियार भेजता था। लेबनान में हिजबुल्लाह पहले ही इजरायल से जंग में काफी कमजोर हो चुका है। अब सीरिया में असद का जाना ईरान के सामने किसी झटके से कम नहीं है।
विद्रोह से रूस को लगा झटका
यूक्रेन जंग से घिरे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए सीरिया का विद्रोह किसी झटके से कम नहीं है। सीरिया में स्थित अपने सैन्य अड्डों को रूस ने हाई अलर्ट पर रखा है। यह वही सैन्य अड्डे हैं, जिनसे रूस ने विद्रोहियों पर जमकर गोलाबारी की। मगर तब असद की सरकार थी।
अब सरकार विद्रोहियों के हाथ में है। सीरिया और ईरान मध्य पूर्व में रूस के भूराजनीतिक के सबसे बड़े केंद्र थे। सीरिया ढह चुका है और ईरान संकट में है। यह रूस के लिए सबसे बड़ा झटका है। यही वजह है रूस के सुर बदलने लगे हैं। रूस ने एचटीएस को आतंकवादी समूह कहना बंद कर दिया है। दरअसल, संगठन ने रूस के राजनयिक मिशन और सैन्य ठिकानों की सुरक्षा का आश्वासन दिया है।
- सीरिया के खमीमिम में रूस का एयरबेस है। टारटस में एक नौसैनिक अड्डा है। इन सैन्य अड्डों से रूस पूरे मध्य पूर्व पर नजर रखता था। न केवल नजर बल्कि अमेरिका को रणनीतिक रूप से टक्कर भी देता था। मगर अब हालात बिल्कुल अलग हैं।
सीरिया में अब आगे क्या होगा?
सीरिया के सबसे बड़े विद्रोही गुट हयात तहरीर शाम (एटीएस) पर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंध लगा रखा है। एचटीएस के मुखिया अबु मोहम्मद अल-जुलानी पर अमेरिका ने 10 मिलियन डॉलर का इनाम भी घोषित कर रखा है। असद के देश छोड़ने के बाद सीरिया में अनिश्चितता काफी बढ़ चुकी है।
अमेरिका ने नया सीरिया, नई सरकार और नए संविधान की बात कही है। मगर यह धरातल पर कब और कैसे उतरेगा? इस पर सबकी निगाहें हैं। मौजूदा समय में एचटीएस की सीरियाई साल्वेशन सरकार इदलिब में काबिज है। यह सरकार भी उतनी ही क्रूर मानी जाती है, जितना असद की सरकार थी।
तुर्किये की बड़ी जीत
सीरिया के विद्रोह में तुर्किये का भी हाथ है। यह आरोप बशर अल असद लगा चुके हैं। तुर्किये सीरिया नेशनल आर्मी का समर्थन करता है। गृह युद्ध के बाद से करीब 30 लाख सीरियाई नागरिकों ने तुर्किये में शरण ले रखी है। तुर्किये के राष्ट्रपति एर्दोगन कई बार इनकी वापसी की मांग कर चुके हैं।
पूरे विद्रोह में सबसे बड़ी जीत तुर्किये की हुई है। तुर्किये अपनी उत्तर पश्चिम सीमा पर सीरिया नेशनल आर्मी का समर्थन करता है। यह गुट भी असद के खिलाफ था और विद्रोह में शामिल था। उधर, अमेरिका कुर्द संगठन का समर्थन करता है। कुर्दों ने 2014 से 2017 तक इस्लामिक स्टेट से लड़ाई लड़ी। इस्लामिक स्टेट और कुर्दों की जंग आज भी जारी है।
8 दिसंबर को अमेरिका ने आईएस के कई ठिकानों पर हमलों को अंजाम दिया। उधर, तुर्किये कुर्दों पर आतंकवाद का आरोप लगाता है। ऐसे में तुर्किये अमेरिका से सीरिया पर कड़ी डील कर सकता है। अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने तुर्किये के रक्षा मंत्री यासर गुलर से बात भी की। अब नई सरकार बनने पर तुर्किये शरणार्थियों की वापसी की मांग को मनवा सकता है। यह तुर्किये के सबसे बड़े संकटों में एक है।
नई सरकार में होगी अमेरिकी दखल!
सीरिया की नई सरकार में अमेरिका की अहम भूमिका होगी। अमेरिका एचटीएस के संपर्क में है। जिस जुलानी पर अमेरिका ने इनाम और प्रतिबंध का एलान कर चुका है। वही जुलानी सीएनएन पर इंटरव्यू दे रहा है। दुनिया अमेरिका के इस रूप को असामान्य मान रही है।
आठ दिसंबर को जो बाइडन ने कहा कि हम सभी इस प्रश्न पर विचार कर रहे हैं कि आगे क्या होगा? अमेरिका सीरिया में अपने साझेदारों और हितधारकों के साथ मिलकर काम करेगा ताकि उन्हें जोखिम का प्रबंधन करने के अवसर का लाभ उठाने में मदद मिल सके। यह तो निश्चित है कि सीरिया में बनने वाली नई सरकार पश्चिम समर्थक होगी। रूस और ईरान हाशिए पर होंगे।
इजरायल क्यों खुश?
गाजा में हमास और लेबनान में हिजबुल्लाह को तबाह कर चुके इजरायल के लिए सीरिया का विद्रोह नए युग जैसा है। उम्मीद है कि अब सीरिया की धरती का इस्तेमाल इजरायल के खिलाफ नहीं होगा। यही वजह है कि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यह तक कहा दिया कि असद का पतन इजरायल द्वारा ईरान और उसके लेबनानी सहयोगी हिजबुल्लाह पर किए गए हमले के कारण हुआ है। सीरिया में बढ़ता अमेरिकी दखल इजरायल के हित में होगा।
क्या होगी अरब स्प्रिंग 2.0?
सीरिया में असद के खिलाफ हवा 2011 में अरब स्प्रिंग की वजह से बनी थी। दरअसल, लीबिया, ट्यूनीशिया और मिस्र में विद्रोह पनपा और देखते ही देखते लोगों ने सत्ता पलट दी। असद से परेशान लोगों ने कुछ ऐसा ही सीरिया में करने की सोची। मगर सफलता नहीं मिली। मगर ठीक 13 साल बाद विद्रोहियों ने जीत हासिल की। इसका असर अरब के कई अन्य देशों पर पड़ सकता है। खासकर ईरान पर।
इजरायल के प्रधानमंत्री पहले ही ईरान की जनता से अयातुल्ला अली खामेनेई की सत्ता उखाड़ फेंकने की कई बार अपील कर चुके हैं। पिछले कुछ सालों में ईरान में लोगों ने सरकार के खिलाफ विद्रोह भी किया। ऐसे में सीरिया का विद्रोह ईरान में नया रूप भी ले सकता है।
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