कभी अमेरिका की मदद से ईरान में रखी गई थी परमाणु कार्यक्रम की नींव, फिर खामेनेई की एंट्री से कैसे पलट गई पूरी कहानी?
अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया, लेकिन दशकों पहले खुद अमेरिका ने ही "एटम्स फॉर पीस" कार्यक्रम के तहत ईरान को परमाणु प्रौद्योगिकी दी थी। तत्कालीन शाह मोहम्मद रजा पहलवी ने इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। 1979 की क्रांति के बाद, ईरान-इराक युद्ध के बाद यह कार्यक्रम फिर से सक्रिय हुआ, जिसमें पाकिस्तानी वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान ने सेंट्रीफ्यूज बेचे।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश पर ईरान के परमाणु ठिकानों पर हुए हमले। (फोटो सोर्स: जागरण ग्राफिक्स)
रॉयटर, वॉशिंगटन : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश के बाद अमेरिकी बी-2 स्टेल्थ बॉंबर ने ईरान के परमाणु ठिकानों को ध्वस्त कर दिया, लेकिन अमेरिका ने भी दशकों पहले ईरान को परमाणु प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराकर उसके परमाणु कार्यक्रम में मदद की थी।
तेहरान का एक अनुसंधान परमाणु रिएक्टर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजनहावर के ''एटम्स फॉर पीस'' कार्यक्रम का हिस्सा था, जिसके तहत अमेरिका के उन सहयोगियों के साथ परमाणु प्रौद्योगिकी साझा की थी जो अपनी अर्थव्यवस्थाओं को आधुनिक बनाने और शीत युद्ध से विभाजित विश्व में वॉशिंगटन के करीब जाने के लिए उत्सुक थे।
यह छोटा परमाणु रिएक्टर ईरान की राजधानी तेहरान के उत्तरी उपनगर में है। इसका उपयोग शांतिपूर्ण वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यह रिएक्टर ईरान की परमाणु हथियार क्षमता को खत्म करने के इजरायल के अभियान का लक्ष्य नहीं रहा है। यह इस समय ईरान के यूरेनियम संवर्धन में योगदान नहीं देता है। तेहरान रिएक्टर इस बात की याद दिलाता है कि अमेरिका ने किस तरह ईरान को परमाणु प्रौद्योगिकी से परिचित कराया।
1967 में जिस ईरान को अमेरिकी रिसर्च रिएक्टर मिला था, वह आज के ईरान से एकदम अलग था। उस समय ईरान का नेतृत्व शाह मोहम्मद रजा पहलवी कर रहे थे जिन्हें अमेरिका ने ही 1953 में सीआइए द्वारा समर्थित तख्तापलट करवाकर उन्हें ईरान का राजा बनाया था, जबकि इस समय ईरान की सत्ता मौलवियों और जनरलों के हाथों में है।
राष्ट्रीय गौरव का विषय बन गया ईरान का परमाणु कार्यक्रम
ईरान का परमाणु कार्यक्रम शीघ्र ही राष्ट्रीय गौरव का विषय बन गया। पहले आर्थिक विकास के इंजन के रूप में इसका उपयोग किया गया जबकि इस्लामिक क्रांति के बाद पश्चिमी देशों से निपटने के लिए सैन्य शक्ति के संभावित स्त्रोत के रूप में इसका उपयोग किया गया।
ईरान को विश्व की बड़ी शक्ति बनाना चाहते थे पहलवी
मोहम्मद रजा पहलवी अपने देश को अमेरिका के समर्थन से विश्व की बड़ी शक्ति बनाना चाहते थे। उन्होंने ईरानी में धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी शिक्षा को बढ़ावा दिया। ''एटम्स फार पीस'' द्वारा शुरू किए गए ईरानी परमाणु कार्यक्रम के लिए पहलवी ने अरबों डालर का बजट रखा। इसे उन्होंने अपने देश की ऊर्जा स्वतंत्रता की गारंटी के रूप में देखा। अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी में विशेष परमाणु प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में युवा ईरानी वैज्ञानिकों का स्वागत किया। ईरान ने अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ समझौते किए। शाह परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए पोस्टर ब्वाय थे।
जब पहलवी के इरादों के बारे में बढ़ रहा था वा¨शगटन में संदेहहालांकि अमेरिका ने ईरान को 1968 की परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए राजी कर लिया था, जिसके तहत ईरान ने परमाणु हथियारों न बनाने पर राजी हुआ, लेकिन पहलवी के इरादों के बारे में वॉशिंगटन में संदेह बढ़ रहा था। इस बीच पहलवी ईरान के अपने देश में परमाणु ईंधन उत्पादन के अधिकार के बारे में बात करने लगे, एक ऐसी क्षमता जिसे परमाणु हथियार विकास में भी लागू किया जा सकता है। जब वा¨शगटन ने अधिक ¨चता जताई तो पहलवी ने परमाणु सहायता के लिए अन्य देशों की ओर रुख किया।
1978 तक अमेरिका का तत्कालीन कार्टर प्रशासन इतना चिंतित हो गया था कि उसने आठ अमेरिकी रिएक्टरों की खरीद के लिए ईरान के अनुबंध में संशोधन करने पर जोर दिया। इसके तहत ईरान अपने परमाणु रिएक्टरों के लिए अमेरिका द्वारा आपूर्ति किए गए किसी भी ईंधन को बिना अनुमति के ऐसे रूप में नहीं बदल सकता था जिसका उपयोग परमाणु हथियारों के लिए किया जा सके।
हालांकि अमेरिकी रिएक्टर कभी नहीं दिए गए, क्योंकि 1979 में, इस्लामी क्रांति के बाद पहलवी को सत्ता से हटा दिया गया। कुछ समय के लिए ऐसा लगा कि ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षा की समस्या अपने आप हल हो गई है। अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में ईरान के नए मौलवी शासकों ने शुरू में पहलवी और पश्चिमी शक्तियों से जुड़ी महंगी परियोजना को जारी रखने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
पाकिस्तानी विज्ञानी अब्दुल कादिर खान ने ईरान को बेचे सेंट्रीफ्यूज बेचे 1980 से 1988 तक इराक के साथ आठ साल के युद्ध के बाद, खोमैनी ने परमाणु प्रौद्योगिकी के महत्व पर पुनर्विचार किया। इस बार उन्होंने पाकिस्तान की ओर रुख किया। पाकिस्तान को भी ''एटम्स फार पीस'' का लाभ मिला था। पाकिस्तानी विज्ञानी और परमाणु कालाबाजारी करने वाले अब्दुल कादिर खान ने ईरान को यूरेनियम को बम-ग्रेड शुद्धता के स्तर तक समृद्ध करने के लिए सेंट्रीफ्यूज बेचे।
क्लिंटन और ओबामा प्रशासन में व्हाइट हाउस के शीर्ष परमाणु अधिकारी गैरी सैमोर ने कहा कि ईरान द्वारा सेंट्रीफ्यूज का अधिग्रहण ही उसके परमाणु कार्यक्रम के वैश्विक संकट में बदलने का वास्तविक कारण था। सामोर ने कहा था, ईरानियों को अपनी सेंट्रीफ्यूज तकनीक पाकिस्तान से मिली है।
उन्होंने पाकिस्तानी तकनीक के आधार पर अपने सेंट्रीफ्यूज विकसित किए हैं - जो खुद यूरोपीय डिजाइनों पर आधारित है।ईरान ने कई वर्षों तक गुप्त रूप से अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाया, अधिक सेंट्रीफ्यूज बनाए और यूरेनियम को समृद्ध किया, जिसे बम में बदला जा सकता था। 2002 में ईरान की गुप्त परमाणु केंद्रों के बारे में पता चलने के बाद अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों ने मांग की कि ईरान अपने संवर्धन को रोक दे। 20 साल से अधिक समय तक चली कूटनीति के बाद अब इजरायल और ईरान ने ईरान के परमाणु केंद्रों पर हमले किए हैं।
अपने दर्दनाक अनुभव से सीख सकता है अमेरिका
गैरी सैमोरगैरी सैमोर ने कहा कि अमेरिका अभी भी अपने दर्दनाक अनुभव से सीख सकता है। दशकों से अमेरिका की नीति रही है कि परमाणु ईंधन बनाने की जानकारी उन देशों के साथ साझा न की जाए जिनके पास पहले से यह नहीं है। हमने दक्षिण कोरिया सहित सहयोगियों को ईंधन संवर्धन क्षमताएं हासिल करने से रोकने के लिए हरसंभव प्रयास किए हैं, लेकिन सउदी अरब स्पष्टत: परमाणु ऊर्जा के लिए यूरेनियम संवर्धन की क्षमता प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है।
इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल परमाणु हथियारों के लिए भी किया जा सकता है। सऊदी अरब जैसे देश या किसी ऐसे देश की मदद करना एक भयानक मिसाल होगी जिसके पास ऐसी क्षमता नहीं है। गौरतलब है कि ट्रंप प्रशासन ने सऊदी अरब को अमेरिकी परमाणु तकनीक के संभावित हस्तांतरण के लिए राष्ट्रपति जो बाइडन प्रशासन के दौरान शुरू की गई बातचीत जारी रखी है।
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