Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ट्यूनीशिया से सीरिया तक: तानाशाही को उखाड़ फेंकने वाले वो देश, जहां सत्ता बदली मगर हालात नहीं; इन चुनौतियों से कैसे निपटेंगे?

    Updated: Sat, 21 Dec 2024 06:39 PM (IST)

    2011 में शुरू हुई अरब स्प्रिंग ने लीबिया ट्यूनीशिया और मिस्र में तानाशाही सरकारों को उखाड़ फेंका। तभी से सीरिया में गृह युद्ध शुरू हुआ। लगभग 13 साल बाद सीरिया में भी तानाशाही का पतन हो चुका है। पिछले ढाई दशक में इराक से अफगानिस्तान तक कई देशों में लोगों ने लोकतंत्र की उम्मीद से तानाशाही के खिलाफ आवाज बुलंद की।

    Hero Image
    सीरिया में तानाशाही के अंत के बाद खुशी और चिंता दोनों ही व्याप्त। ( फोटो- रॉयटर्स )

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 2011 में शुरू हुई अरब स्प्रिंग ने लीबिया, ट्यूनीशिया और मिस्र में तानाशाही सरकारों को उखाड़ फेंका। तभी से सीरिया में गृह युद्ध शुरू हुआ। लगभग 13 साल बाद सीरिया में भी तानाशाही का पतन हो चुका है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पिछले ढाई दशक में इराक से अफगानिस्तान तक कई देशों में लोगों ने लोकतंत्र की उम्मीद से तानाशाही के खिलाफ आवाज बुलंद की। इन देशों में तानाशाहों को तख्तापलट का सामना करना पड़ा। मगर तख्तापलट के बावजूद इन देशों के हालात जस के तस हैं। ऐसे में बशर अल असद के पतन के बाद सीरिया के भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। आइए एक नजर डालते हैं इन देशों पर...

    ट्यूनीशिया: लोगों ने उखाड़ फेंकी बेन अली की सत्ता

    अरब स्प्रिंग की शुरुआत ट्यूनीशिया से होती हैं। 17 दिसंबर 2010 को ठेले पर सब्जी बेचने वाले एक शख्स ने पुलिसिया उत्पीड़न के विरोध में खुद को आग लगा ली। इस शख्स का नाम मोहम्मद बौजीजी था। 4 जनवरी 2011 को बौजीजी की मौत हो गई। इसके बाद पूरे ट्यूनीशिया में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा।

    (जिने अल अबिदीन बेन अली। फोटो- ब्रिटानिका)

    भारी विरोध प्रदर्शन ने तानाशाह राष्ट्रपति जिने अल अबिदीन बेन अली के शासन को उखाड़ फेंका। बेन अली ने 23 साल तक ट्यूनीशिया पर शासन कियाष मगर देश दिन के विरोध प्रदर्शन के बाद उनकी सत्ता का पतन हो गया। बेन अली को सऊदी अरब भागना पड़ा। मौजूदा समय में ट्यूनीशिया में लोकतंत्र हैं। मगर देश अब भी आर्थिक मुश्किलों और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है।

    मिस्र: होस्नी मुबारक का पतन

    2011 में शुरू हुई अरब स्प्रिंग की चपेट में मिस्र भी आया था। होस्नी मुबारक के 30 साल के शासन के खिलाफ जनता का विद्रोह फूटा। 18 दिनों के विरोध प्रदर्शन के बाद 11 फरवरी 2011 को होस्नी मुबारक के शासन का अंत हुआ। बाद में मुस्लिम ब्रदरहुड के तहत मोहम्मद मुर्सी राष्ट्रपति बने।

    (होस्नी मुबारक)

    मुर्सी के राष्ट्रपति बनते ही लोकतंत्र की उम्मीदें खत्म हो गईं। 2013 में सेना प्रमुख अब्देल फत्ताह अल-सिसी ने मुर्सी को राष्ट्रपति के पद से हटा दिया और अगले साल यानी 2014 से इस पद पर काबिज हैं। सिसी के शासन में मिस्र को राजनीतिक स्थिरता जरूर मिली। मगर उनके शासन पर मानवाधिकारों के हनन और असहमति के दमन के आरोप लगते हैं।

    अफगानिस्तान: तालिबान का उदय

    अफगानिस्तान पिछले कई दशक से राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है। देश में आर्थिक संकट के बीच मानवाधिकर उल्लंघन के मामले चरम पर है। 2001 में अफगानिस्तान में तालिबान शासन का अंत हुआ। इसके बाद अमेरिका के सहयोग से लोकतंत्र बहाल किया गया। मगर यह लोकतंत्र भी 2021 में पूरी तरह से ढह गया।

    इसी साल अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी सेना हटाने का एलान किया। इसका असर यह हुआ कि तालिबान दोबारा सत्ता पर काबिज हो गया। मौजूदा वक्त में अफगानिस्तान महिलाओं के लिए नर्क बन चुका है। देश मानवाधिकार, आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से अब भी जूझ रहा है।

    हैती: हिंसा, अराजकता और आर्थिक संकट से नहीं छूटा पीछा

    कैरिबियाई देश हैती में भी तानाशाही का लंबा दौर रहा है। 1991 में राष्ट्रपति एरिस्टाइड को सेना ने पद से हटा दिया। 1994 में लोकतंत्र की बहाली के उद्देश्य से 20,000 अमेरिकी सैनिक हैती पहुंचे। इसके बाद जीन-बर्ट्रेंड एरिस्टाइड अपने वतन लौटे। मगर 2004 में विद्रोह दोबारा भड़का और राष्ट्रपति एरिस्टाइड को दोबारा देश छोड़ना पड़ा। इसके बाद 2019 तक हैती में संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना तैनात रही।

    2021 में अज्ञात बंदूकधारियों ने राष्ट्रपति जोवेनेल मोइस की पोर्ट-ऑ-प्रिंस में हत्या कर दी।2024 में बढ़ती गैंग हिंसा के बीच प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति एरियल हेनरी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। तब से यह देश आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता, हिंसा और अराजकता से त्रस्त है।

    लीबिया: गद्दाफी का अंत, मगर संकट अब भी जारी

    15 फरवरी 2011 को बहरीन में लोगों ने लोकतंत्र के समर्थन में बड़ा विरोध प्रदर्शन किया। इसी दिन लीबिया के शहर बेनगाजी में सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन पर पुलिस ने कहर बरपाया। तब लीबिया में मुअम्मर गद्दाफी का राज था। तानाशाह गद्दाफी ने प्रदर्शनकारियों को चूहा कहा और उन्हें मारने की कसम खाई। बाद में लोगों का विरोध प्रदर्शन गृह युद्ध में तब्दील हो गई।

    20 अक्टूबर 2011 को मुअम्मर गद्दाफी को उसके गृह नगर सिरते में विद्रोहियों ने दबोच लिया और सरेआम उसकी हत्या कर दी गई। मगर आज भी लीबिया बंटा हुआ है। यहां सत्ता का संघर्ष गुटों के बीच जारी है। लोकतंत्र की उम्मीद दूर-दूर तक नहीं दिख रही है।

    यमन: अरब जगत पर गरीबी का कलंक

    यमन पर तानाशाह अली अब्दुल्ला सालेह ने करीब 33 सालों तक शासन किया। मगर एक साल के विरोध प्रदर्शन के बाद 27 फरवरी 2012 को उन्होंने सत्ता अपने डिप्टी अब्दराबुह मंसूर हादी को सौंप दी। मगर हूती विद्रोहियों की वजह से यमन में सरकार का गठन नहीं हो सका। यमन के एक बड़े हिस्से पर हूतियों का कब्जा है। देश मौजूदा समय में हिंसा और आतंकवाद का शिकार है। यही वजह है कि यमन अरब जगत का सबसे गरीब राज्य बना है।

    इराक: मुश्किलें कम होती ही नहीं

    सद्दाम हुसैन ने करीब 24 वर्षों तक इराक पर तानाशाही के साथ अपना शासन चलाया। मगर अमेरिकी के सैन्य हस्तक्षेप के बाद सद्दाम हुसैन के शासन का अंत हुआ। इसके बाद 13 दिसंबर 2003 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 30 दिसंबर 2006 को सद्दाम को फांसी पर लटकाया गया। तानाशाही के अंत के दो दशक बाद भी इराक में लोकतंत्र अब भी बहाल नहीं है। देश के बड़े भूभाग पर आईएस का कब्जा है। देश सम्प्रदायिक हिंसा से त्रस्त है। आतंकवाद से इराक की जनता जूझ रही है। आर्थिक संकट भी विकराल है।

    सूडान: जब खत्म हुआ बशीर का शासन

    तानाशाह उमर अल बशीर ने करीब 30 वर्षों तक सूडान पर राज किया। मगर 2019 में लोगों के विद्रोह ने उनकी सत्ता को उखाड़ फेंका। विद्रोह की शुरुआत 19 दिसंबर 2018 को उत्तरी सूडान के अटबारा शहर से हुई। यहां लोगों ने सत्तारूढ़ नेशनल कांग्रेस पार्टी के स्थानीय मुख्यालय को आग के हवाले कर दिया था। यह विद्रोह महंगाई और जरूरी चीजों से सब्सिडी हटाने पर भड़का। मगर सूडान पिछले पांच वर्षों से गृह युद्ध का सामना कर रहा है। सेना के अलग-अलग गुट आमने-सामने हैं। विद्रोह में लाखों लोगों की जान जा चुकी है। देश हिंसा और आर्थिक संकट का सामना कर रहा है।

    सीरिया: असद हटे, मगर आशा बाकी है

    सीरिया के विद्रोहियों ने 11 दिन के संघर्ष के बीच बशर अल असद को सत्ता और देश दोनों छोड़ने पर मजबूर कर दिया। 2000 से 2024 तक असद ने सीरिया पर तानाशाही राज चलाया। राजधानी दमिश्क समेत देश के बड़े हिस्से पर एचटीएस का कब्जा है।

    (बशर अल असद)

    बाकी हिस्सों पर अलग-अलग समूहों ने अपनी पकड़ बना रखी है। सीरिया का भविष्य क्या होगा, अभी यह तय नहीं हुआ है। मगर आशा है कि देश में लोकतंत्र बहाल होगा। इस बीच चिंता यह भी है कि सीरिया के अंदर कई समूहों के बीच ही सत्ता की जंग न छिड़ जाए।

    नोट: खबर में अल जजीरा और बीबीसी के इनपुट का इस्तेमाल किया गया है।

    यह भी पढ़ें: रूस में 9/11 जैसा हमला, कजान में तीन इमारतों से टकराया ड्रोन; वर्ल्ड ट्रेड सेंटर अटैक की दिलाई याद

    यह भी पढ़ें: अमेरिका में नहीं लगेगा शटडाउन! संसद ने फंडिंग बिल को दी मंजूरी, आखिर क्यों बन गई थी ये स्थिति, पढ़ें सब कुछ