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6 दिन की लड़ाई और इस तरह से इजरायल ने अरब जगत में डाल दी फूट

1967 में इजरायल-अरब देशों के बीच लड़ाई का असर ये हुआ कि मध्य पूर्व में एक नए राजनीतिक समीकरण का जन्म हुआ, जिसका असर आज भी देखा जा सकता है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Fri, 29 Dec 2017 03:35 PM (IST)Updated: Fri, 29 Dec 2017 08:40 PM (IST)
6 दिन की लड़ाई और इस तरह से इजरायल ने अरब जगत में डाल दी फूट
6 दिन की लड़ाई और इस तरह से इजरायल ने अरब जगत में डाल दी फूट

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। मध्य पूर्व का जिक्र होते ही अरब देशों और इजरायल के बीच संघर्ष की एक लंबी कहानी जेहन में तैरने लगती है। इजरायल की मान्यता को लेकर अरब देश हमेशा से संघर्ष की स्थिति में रहे। अरब देश जहां इजरायल के वजूद पर सवाल उठाते रहते हैं, वहीं इजरायल ने 1948 और 1967 की लड़ाई में अरब देशों को जबरदस्त मात देकर अतंरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की। ये बात अलग है कि आज भी इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष जारी है। लेकिन इन सबके बीच हाल ही में अमेरिका द्वारा यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दिए जाने पर मध्य पूर्व तनाव के ढेर पर खड़ा है। अमेरिका के इस कदम की दुनिया भर में आलोचना हुई, यहां तक संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में ट्रंप प्रशासन को मुंह की खानी पड़ी। अमेरिका और अरब देशों के बीच तनाव में 5 जून 1967 का वो मंजर याद आता है, जब  महज 6 दिनों की लड़ाई में अरब देशों की एका को न केवल इजरायल ने तोड़ा बल्कि भविष्य में होने वाले संघर्ष की बुनियाद तैयार कर दी। 

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कब हुआ युद्ध
अरब-इजरायल युद्ध 5 जून 1967 को शुरु हुआ। इजरायली विमानों ने सुबह सुबह मिस्र की राजधानी कायरो के नजदीक स्वेज के रेगिस्तान में सैन्य हवाई अड्डे पर जबरदस्त बमबारी की। कुछ घंटों के अंदर ही मिस्र के करीब सभी विमान मार गिराए गए। मिस्र के वायुक्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित कर पहले ही दिन इजरायल ने एक लड़ाई अपने नाम कर ली ।

कैसे छिड़ा युद्ध

युद्ध कैसे छिड़ा इसे लेकर कई तरह की विरोधाभासी जानकारी सामने आती हैं। पहले तेल अवीव से ये खबर आई कि मिस्र के विमानों और टैंकों ने इजरायल पर हमला कर दिया है। इसके साथ ही इजरायल के दक्षिणी हिस्से में लड़ाई की खबरें आने लगी थीं। लेकिन जानकारों का मानना है कि मिस्र के वायुक्षेत्र में इजरायली विमानों के आने की वजह से लड़ाई प्रारंभ हुई। मिस्र के सरकारी रेडियो ने इजरायल द्वारा हमला किए जाने की घोषणा की।  इजरायली विमानों ने कायरो पर हवाई हमला कर दिया था। कायरो में कई जगहों पर धमाकों के बीच एयरपोर्ट को बंद कर दिया गया और आपातकाल की घोषणा की गई। सीरिया रेडियो से ये खबर प्रसारित हुई कि इजरायल ने उनके देश पर हमला कर दिया है। जॉर्डन ने भी मॉर्शल लॉ लगा दिया। इजरायल के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने से पहले सीरिया ने अपनी सेना तो मिस्र के कमांड में देने का फैसला किया। सीरिया के साथ साथ इराक, कुवैत, सूडान अल्जीरिया, यमन और फिर सऊदी अरब भी मिस्र के समर्थन में कूद पड़े।


जब लड़ाई में कूदे दूसरे अरब देश
अरब देशों के लड़ाई में कूदने के बाद मामला और गहरा गया। इजराएल-जॉर्डन मोर्चे पर जबरदस्त लड़ाई चल रही थी। सीरियाई विमानों ने तटीय शहर हैफा को निशाना बनाया। तो जवाब में इजरायल ने दमिश्क एयरपोर्ट को निशाना बनाया। मिस्र और इजरायल लड़ाई में अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थे। अरब देशों को यकीन था कि वो इस लड़ाई में इजरायल को जबरदस्त हार देंगे। लेकिन विश्व के नेता परेशान थे, पोप पॉल छठे ने कहा कि यरुशलम को मुक्त शहर घोषित कर देना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाई गई। अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने सभी पक्षों से लड़ाई रोकने की अपील की। इजरायली सैनिकों ने गाजा के सरहदी शहर खान यूनिस पर हमला कर मिस्र और फिलिस्तीन के सैनिकों पर कब्जा कर लिया। इजरायल ने कहा कि उसने पश्चिमी सरहद को सुरक्षित कर लिया है। और उसकी सेनाएं दक्षिण हिस्से में मिस्र की सेना से मुकाबला कर रही हैं।


इजरायल ने कहा कि उसने मिस्र की वायुसेना को तबाह कर दिया है। लड़ाई के पहले ही दिन 400 लड़ाकू विमान मार गिराए गए जिसमें 300 विमान मिस्र के थे जबकि सीरिया के 50 लड़ाकू विमान शामिल थे। इस तरह लड़ाई के पहले दिन इजरायल ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी। इजरायली संसद नेसेट की बैठक में पीएम लेविस एशकोल ने बताया कि सभी लड़ाई मिस्र में और सिनाई प्रायद्वीप में चल रही है। उन्होंने कहा कि मिस्र, सीरिया, जार्डन और सीरिया की सेनाओं को गंभीर नुकसान पहुंचाया गया है।
6 दिन की लड़ाई के बाद युद्धविराम
11 जून को युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर हुए और लड़ाई खत्म हो गई। लेकिन इस जीत ने दुनिया को हैरान कर दिया था। इजरायली नागरिकों का मनोबल बढ़ा और अंतरराष्ट्रीय जगत में इजरायल की प्रतिष्ठा में इजाफा हुआ। 6 दिन तक चली लड़ाई में इजरायल के सिर्फ एक हजार सैनिक मारे गए लेकिन अरब देशों को करीब 20 हजार सैनिकों को खोना पड़ा। लड़ाई के दौरान इजरायल ने मिस्र से गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप, जार्डन से वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम, सीरिया से गोलन हाइट की पहाड़ियों को छीन लिया। मौजूदा समय में सिनाई प्रायद्वीप मिस्र का हिस्सा है, जबकि वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी फिलिस्तीन के इलाके मे हैं।
यरुशलम भी है युद्ध की प्रमुख वजह
इन दोनों देशों के बीच जंग की एक प्रमुख वजह यरुशलम भी है। यरुशलम को दोनों देश अपनी राजधानी मानते हैं। पहले यह ईस्ट और वेस्ट यरुशलम के नाम से जाना जाता था लेकिन साल 1967 में इजरायल ने यरुशलम के काफी हिस्से पर कब्जा कर लिया ।तब से लेकर आज तक इजरायल ने यरुशलम के लगभग पूरे हिस्से पर कब्जा कर लिया है। यरुशलम की अल अक्सा मस्जिद इस्लाम धर्म के लोगों के लिए तीसरी सबसे पवित्र जगह है। इसके आलावा यरुशलम में मौजूद टेम्पल माउंट को यहूदी और ईसाई दोनों धर्म के लोग अपने लिए एक पवित्र जगह मानते हैं।


जब हुआ पहला अरब-इजराइल युद्ध
साल 1948 में अरब देशों मिस्र, जॉर्डन, इराक और सीरिया ने इजरायल पर हमला कर दिया। यह हमला फिलिस्तीन को बचाने के लिए नहीं बल्कि इजरायल के खात्मे के लिए था। दरअसल अरब देश यह मानते थे कि इजरायल विदेशी राज का एक नमूना है। अरब देश इस लड़ाई में हार गए थे। इस लड़ाई में आधा जेरुशलम शहर इजरायल के कब्जे में आ गया और फिलिस्तीनी नागरिक सिर्फ वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी तक ही सीमित रह गए। इस युद्ध के दौरान लगभग 7 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनी बेघर हो गए।

माइकल ओरेन द्वारा लिखी गई किताब Six Days of War: June 1967 and the Making of the Modern Middle East में बताया गया है कि 1967 के युद्ध के पीछे खास वजह क्या थी। इसके अलावा ये बताने की कोशिश की गई कि 1967 की लड़ाई ने वैश्विक राजनीति को किस तरह से प्रभावित की। 

1967 में क्यों हुई लड़ाई 

67 के युद्ध को लेकर प्रमुख प्रश्न अभी भी कायम है। दरअसल कहा जाता है कि प्रथम और दूसरे विश्वयुद्ध की तरह ना तो किसी ने योजना बनाई थी ना ही कोई लड़ाई चाहता था। ओरेन अपने शोध के जरिए बताते हैं कि दुर्घटनावश ये लड़ाई हुई। बताया जाता है कि नवंबर 1966 में जार्डन के आतंकियों ने तीन इजरायली सैनिकों को मार दिया था। इजरायल इस बात से खफा था जार्डन के राजा हुसैन ने पीएम एशकोल को शोकसंदेश भेजने में देरी कि लिहाजा इजरायल चिढ़ गया। शोकसंदेश में देरी के लिए इजरायल ने जार्डन को जिम्मेदार बताया जो युद्ध की वजह बनी।
इजरायल की सेना ने स्तब्ध करने वाली जीत कैसे हासिल की
अरब देशों की सेना फंतासी में ज्यादा विश्वास करती थी। जबकि इसके उलट इजरायली सेना कड़े अभ्यास और वास्तविकता में विश्वास करती थी। इजरायल के चीफ ऑफ स्टाफ यित्जाक राबिन को दौरा पड़ा और अरब देशों के नेता अति आत्मविश्वास में आ गए। सीरिया के एक जनरल ने तो यहां तक कह दिया कि अधिक से अधिक चार दिनों के अंदर वो इजरायल को परास्त कर देंगे। इसके साथ ही मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नसीर फिक्रमंद नहीं थे। वो ये मानकर चल रहे थे कि इजरायली वायु हमला करने में सक्षम नहीं हैं। मिस्र के कुछ अधिकारी अपनी हार के बारे में कहते थे कि उनके शीर्ष कमांडरों का मानना था कि इजरायल को मटियामेट करना बच्चों के खेल की तरह है। ओरेन का कहना है कि इजरायल से ज्यादा अमेरिकी लड़ाई के परिणाम को लेकर ज्यादा आशान्वित थे। उन्हें लगता था कि अगर इजरायल की तरफ से लड़ाई की पहल हुई तो मुश्किल से उसे अपने शत्रुओं को परास्त करने में सात दिन का समय लगेगा। अगर इजरायल- अरब देशों की लड़ाई को देखें तो महज 6 दिनों में अरब देशों को घुटने टेकने पड़े।


युद्ध से अरब-इजरायल कूटनीति पर प्रभाव

अगर देखा जाए तो इजरायल-मिस्र की लड़ाई से मध्य पूर्व की राजनीति में कई तरह के बदलाव आए। मई 1967 के मध्य में ह्वाइट हाउस में एक राय थी कि इजरायल को अपने दुश्मनों को परास्त करने का मौका देना चाहिए। इसके जरिए इजरायल और अरब देशों के बीच सीमा को सुनिश्चित करने के साथ ही शरणार्थियों के मुद्दे को सुलझाने में मदद मिलेगी। 5 जून 1967 को लड़ाई के ठीक दूसरे दिन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शांति की रूपरेखा तैयार की जो अब भी अरब-इजरायल संघर्ष में अमेरिकी कूटनीति का आधार है। इस प्रस्ताव में इस बात का जिक्र किया गया कि अरब देशों से मान्यता प्राप्त करने के लिए इजरायल 1967 में जीते हुए भूभागों को वापस कर देगा। अमेरिकी लोगों को लगता था कि इजरायल के सैन्य विजय से अरब जगत को पता चल जाएगा कि यहुदी राज्य को नष्ट करने की वो नाकाम सपने देख रहे हैं। ये बात अलग है कि अमेरिका की इस सोच से अनेक इजरायली भी सहमत हो गए थे।
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