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    क्या है 1981 का 'ऑपरेशन ओपेरा'? जब इजरायल ने इराक के परमाणु रिएक्टर पर किया था मिसाइल अटैक

    Updated: Sat, 26 Oct 2024 10:14 PM (IST)

    इजरायल ने आज ईरान पर बड़ा हमला किया है। इस हमले में दो सैनिकों की मौत हो गई। यह हमला ईरान के उस मिसाइल हमले के लगभग एक महीने बाद हुआ जिसने मिडिल-ईस्ट में जंग की आशंका बढ़ा दी थी। इजरायल ने मिसाइल हमले का बदला लेने की कसम खाई है। इजरायली सेना (आईडीएफ) का यह हमला 1981 में इराक पर हुए ‘ऑपरेशन ओपेरा’ से बहुत ज्यादा मिलता-जुलता है।

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    इजरायली हमला ‘ऑपरेशन ओपेरा’ से मिलता है (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इजरायल ने आज ईरान पर बड़ा हमला किया है। इस हमले में दो सैनिकों की मौत हो गई। यह हमला ईरान के उस मिसाइल हमले के लगभग एक महीने बाद हुआ, जिसने मिडिल-ईस्ट में जंग की आशंका बढ़ा दी थी। इजरायल ने मिसाइल हमले का बदला लेने की कसम खाई है। इस हवाई हमले में ईरान की मिसाइल निर्माण इकाइयां भी प्रभावित हुईं हैं। इजरायल की विपक्षी पार्टियों ने ईरान पर हमले को कई लेकर  सवाल उठाए थे।

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    इजरायली सेना (आईडीएफ) का यह हमला 1981 में इराक पर हुए ‘ऑपरेशन ओपेरा’ से बहुत ज्यादा मिलता-जुलता है। दोनों ही मामलों में हवाई हमले की दूरी और खतरे का स्तर बेहद खास है।

    विमान 2000 किमी की दूरी तय कर लौटा वापस

    इजरायल ने इससे पहले भी कई बार कहा है, अगर हमलों से उसे किसी प्रकार की परेशानी हुई तो वह ईरान पर ऐसे हमले करने में बिल्कुल भी नहीं सोचेगा। द जेरूसलम पोस्ट ने बताया, हवाई हमलों 100 से अधिक विमान शामिल थे, जिसमें अमेरिका में बना स्टील्थ फाइटर जेट F-35 भी था। यह विमान 2000 किमी की दूरी तय कर वापस लौटा।

    ठीक इसी तरह, 1981 के ‘ऑपरेशन ओपेरा’ में भी हवाई रास्ते का सेलेक्शन एक चुनौती थी, जिसमें 1100 किमी की दूरी, कई दुश्मन देशों का सामना और फ्यूल की सीमित मात्रा शामिल थी।

    क्या था ‘ऑपरेशन ओपेरा’?

    ऑपरेशन ओपेरा में 7 जून 1981 को शाम 4 बजे 14 लड़ाकू विमानों ने इजरायल के एट्ज़ियन हवाई अड्डे से उड़ान भरी। लगभग शाम 5.30 बजे, उन्होंने इराक में ओसिरक परमाणु रिएक्टर पर हमला किया और उसे नष्ट कर दिया, बिना किसी इजरायली विमान के नुकसान के अपने मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया।

    इजरायल ने 1981 में इराक पर हुए हवाई हमले में F-16A जेट्स का इस्तेमाल किया था, जबकि F-15A जेट्स ने उन्हें सुरक्षा दी थी. इन विमानों ने बाहरी टैंकों में भारी मात्रा में ईंधन ले जाकर लंबे समय तक बहुत कम ऊंचाई पर उड़ान भरी थी