कभी अमेरिका की मदद से ही ईरान में रखी गई थी परमाणु कार्यक्रम की नींव, फिर ट्रंप की एक गलती और पलट गया गेम
इजरायल ने ईरान के खिलाफ संघर्ष शुरू कर ये दावा किया था कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के करीब पहुंच गया है। लेकिन ईरान ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया। अब अमेरिका भी संघर्ष में कूद पड़ा है और उसने ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी की है। एक्सप्लेनर में जानिए ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम का कच्चा-चिट्ठा
अमेरिका और इजरायल आरोप लगा रहे हैं कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के बेहद करीब है (फोटो: जागरण)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ईरान और इजरायल के बीच जारी संघर्ष के बीच अमेरिका ने तीन न्यूक्लियर ठिकानों पर बमबारी कर उन्हें तबाह करने का दावा किया। अमेरिका और इजरायल आरोप लगा रहे हैं कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के बेहद करीब पहुंच गया है। लेकिन ईरान शुरुआत से ही इस दावे को नकारता रहा है।
लेकिन ये भी ताज्जुब की बात है कि एक वक्त में अमेरिका की मदद से ही ईरान में न्यूक्लियर प्रोग्राम की नींव रखी गई थी। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने जब पहली बार राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभाला, तब उनकी एक गलती ने सब कुछ बर्बाद कर दिया और स्थिति यहां तक पहुंच गई है।
आज के एक्सप्लेनर में जानेंगे कि ईरान में ऊर्जा के लिए शुरू हुआ न्यूक्लियर प्रोग्राम परमाणु हथियार बनाने के करीब कैसे पहुंच गया और क्यों मिडिल ईस्ट में स्थिति युद्ध के मुहाने पर आकर खड़ी हो गई है...
बात 1950 के दशक ही है। अमेरिका में राष्ट्रपति बने थे ड्वाइट डेविड आइजनहावर। तब ईरान में शाह मोहम्मद रजा पहलवी का शासन चल रहा था। अमेरिका और ईरान के बीच असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर सहमति बनी और फिर ईरान में अमेरिकी की टेक्निकल सहायता से न्यूक्लियर प्रोग्राम की नींव रखी गई।
1970 में ईरान ने न्यूक्लियर हथियारों की अप्रसार संधि की औपचारिक पुष्टि कर दी। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानी आईएईए, जो दुनियाभर में न्यूक्लियर साइट्स की निगरानी करती है, को अपने न्यूक्लियर मैटेरियल घोषित करने पर भी ईरान ने प्रतिबद्धता जताई। लेकिन इसके कुछ साल बाद ईरान में इस्लामिक क्रांति हो गई।
इस्लामिक क्रांति के बाद बदली स्थिति
साल 2000 आते-आते स्थिति बदलने लगी। 2000 के दशक में ईरान में मौजूद कुछ ऐसे परमाणु ठिकानों का खुलासा हुआ, जिसके बारे में ईरान ने अब तक जानकारी नहीं दी थी। 2011 में आईएईए की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 2003 तक ईरान ने परमाणु हथियार बनाने की दिशा में कई गतिविधियां की थीं।
हंगामा मचा और ईरान पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए। वैश्विक दबाव के कारण ईरान ने यूरेनियम के एनरिचमेंट संबंधी गतिविधियों को बंद कर दिया। इसके बाद यूरोप और अमेरिका समेत दूसरी बड़ी शक्तियों के साथ ईरान की बातचीत शुरू हुई।
2015 में हुआ अहम समझौता
- 14 जुलाई 2015 को ईरान, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रूस, अमेरिका और जर्मनी के बीच सहमति बनी और जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन नामक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते में ईरान पर लगे प्रतिबंधों में राहत दी गई, लेकिन बदले में उसे परमाणु प्रोग्राम में कई नियम-शर्तेों का पालन करना था।
- समझौते में तय हिआ कि ईरान यूरेनियम को केवल 3.67 फीसदी तक ही एनरिच करेगा और उसके पास यूरेनियम का अधिकतम 202.8 किलोग्राम भंडार ही हो सकता है। लेकिन कुछ समय बाद अमेरिका में चुनाव हुए और डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद संभाला। उन्होंने अमेरिका को समझौते से अलग कर लिया और ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगा दिए।
60 फीसदी तक एनरिच किया यूरेनियम
इसे बौखलाए ईरान ने सारे नियम-कायदों को ताक पर रख दिया और परमाणु हथियार बनाने की दिशा में दम बढ़ा दिए। ईरान ने यूरेनियम को पहले 5 फीसदी और फिर 2021 तक 20 फीसदी तक एनरिच कर लिया। उसने मशीनों को अपग्रेड किया और जल्द ही 60 फीसदी तक यूरेनियम एनरिच कर लिया।
यहां बताना जरूरी है कि परमाणु हथियार बनाने के लिए 90 फीसदी एनरिच यूरेनियम की आवश्यकता होती है। ईरान के पास यूरेनियम का भंडार समझौते की शर्त से 45 गुना अधिक पहुंच गया है। जानकार मानते हैं कि ईरान के पास अभी इतना यूरेनियम है कि वह 9 से अधिक परमाणु बम बना सकता है।
ईरान पर फिर बन रहा दबाव
पश्चिमी देश लगातार ईरान पर समझौते को फिर से लागू करने का दबाव बना रहे हैं, लेकिन बात बन नहीं पा रही। ईरान ने पहले यूरोप से वार्ता की और फिर अमेरिका से। लेकिन नतीजा निल बटे सन्नाटा है। हालांकि एक सच ये भी है कि परमाणु हथियार बनाने के लिए सिर्फ यूरेनियम एनरिचमेंट से ही काम नहीं चलता। इसमें कई दूसरे प्रोसेस भी करने पड़ते हैं।
ईरान बार-बार दावा करता है कि उसका न्यूक्लियर प्रोग्राम सिर्फ एनर्जी के लिए है और खामेनेई खुद परमाणु हथियारों के खिलाफ हैं। लेकिन इस बात का जवाब अब तक नहीं मिल पाया है कि एनर्जी के लिए जरूरी यूरेनियम एनरिचमेंट और आवश्यक भंडार से ज्यादा जुटाने के पीछे ईरान की मंशा क्या है।
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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