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    कभी जेल में कटी थी रातें, आज ईरान का सुप्रीम लीडर... जानें खामेनेई की जान का दुश्मन क्यों बना इजरायल

    Updated: Thu, 19 Jun 2025 05:59 PM (IST)

    Israel Iran War मध्य पूर्व में तनाव बढ़ रहा है। नेतन्याहू के खामेनेई को निशाना बनाने वाले बयान ने क्षेत्रीय समीकरणों को हिला दिया है। इजरायल ईरान पर परमाणु हथियार बनाने का आरोप लगाता है जिससे उसे खतरा है। नेतन्याहू ने कहा कि खामेनेई की हत्या से तनाव खत्म हो जाएगा। खामेनेई 1989 में सुप्रीम लीडर बने और ईरान की सियासत में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

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    इजरायल ईरान के परमाणु प्रोग्राम को अपने वजूद पर खतरा मानता है।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्य पूर्व में सैन्य और सियासी तनाव एक बार फिर चरम पर है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के कथित बयान ने दुनिया का ध्यान खींचा है, जिसमें उन्होंने ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई को निशाना बनाने की बात कही। इस बयान ने न सिर्फ क्षेत्रीय समीकरणों को हिला दिया है, बल्कि वैश्विक मंच पर भी हलचल मचा दी है।

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    आखिर क्यों इजरायल खामेनेई को जान से मारने की बात कर रहा है? ईरान के लिए परमाणु हथियार क्यों जरूरी हैं? और खामेनेई कैसे बने ईरान के सुप्रीम लीडर?

    इस आर्टिकल में हम ईरान की सियासत और खामेनेई के अतीत के जरिए इस मुद्दे की तह तक जाने की कोशिश करेंगे और इन्हीं सवालों के जवाब तलाशेंगे। 

    हाल ही में इजरायल ने ईरान पर मिसाइल हमले शुरू किए। इसके पीछे तर्क था कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है, जिससे इजरायल के वजूद को खतरा है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एक इंटरव्यू में कहा कि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई की हत्या से दोनों देशों के बीच चल रहे युद्ध और तनाव खत्म हो जाएगा। उन्होंने दावा किया कि इजरायल की सैन्य कार्रवाई संघर्ष को बढ़ावा देने की नहीं, बल्कि उसे खत्म करने की दिशा में है।

    नेतन्याहू ने ये बयान तब दिया था जब इजरायल की उस योजना को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खारिज कर दिया जिसमें ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई को मारने की बात कही गई थी।

    ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफोर्म ट्रूथ पर लिखा था, "हमें अच्छी तरह पता है कि तथाकथित सुप्रीम लीडर खामेनेई कहां छिपे हुए हैं। वह एक आसान टारगेट हैं, लेकिन वहां सुरक्षित हैं। हम उन्हें मारने नहीं जा रहे, कम से कम अभी के लिए नहीं। लेकिन हम यह भी नहीं चाहते कि आम नागरिकों या अमेरिकी सैनिकों पर मिसाइल दागी जाएं।"

    दरअसल इजरायल का मानना है कि ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद उसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इस खतरे को वह ईरान के सुप्रीम लीडर से जोड़कर देखता है। इस्लामिक क्रांति से पहले ईरान और इजरायल के बीच सौहार्दपूर्ण रहे हैं। ईरान में इस्लामिक क्रांति लाने वाले नेताओं में जो नेता थे उनमें अब खामेनेई ही जिंदा बचे हैं।

    इजरायल चाहता है कि सुप्रीम लीडर को रास्ते से हटा दिया जाए, क्योंकि ईरान मिडिल ईस्ट में कई प्रॉक्सी संगठन को शह देता है जो इजरायल के लिए खतरा हैं।

    खामेनेई कैसे बने सुप्रीम लीडर?

    अयातुल्ला अली खामेनेई का नाम आज ईरान की सियासत का पर्याय बन चुका है। 1989 में वे ईरान के सुप्रीम लीडर बने, जब उनके पूर्ववर्ती अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी का इंतकाल हुआ। खामेनेई का सियासी सफर 1960 के दशक से शुरू हुआ, जब वे खुमैनी के करीबी सहयोगी थे। 1979 की इस्लामी क्रांति में उनकी अहम भूमिका रही, जिसने शाह रजा पहलवी की सल्तनत को उखाड़ फेंका और ईरान को इस्लामी गणराज्य बनाया।

    खामेनेई को सुप्रीम लीडर बनाने में खुमैनी की वसीयत और रूढ़िवादी धार्मिक नेताओं का समर्थन अहम था। हालांकि, उस वक्त उनकी धार्मिक विद्वता पर सवाल उठे, क्योंकि वे "ग्रैंड अयातुल्ला" की बजाय सिर्फ "अयातुल्ला" थे। फिर भी, उनकी सियासी चतुराई और खुमैनी के प्रति वफादारी ने उन्हें यह ओहदा दिलाया। आज खामेनेई न सिर्फ ईरान की सियासत और फौज के सुप्रीम कमांडर हैं, बल्कि वैश्विक शिया समुदाय के लिए भी एक बड़ा नाम हैं।

    ईरान की सियासत में खामेनेई की भूमिका को समझना आसान नहीं। वे सिर्फ एक धार्मिक नेता नहीं, बल्कि देश की सियासी, फौजी और आर्थिक नीतियों के केंद्र में हैं। ऐसा माना जाता है कि खामेनेई ही वह "गोंद" हैं, जो इस्लामी गणराज्य को जोड़े रखते हैं। उनके नेतृत्व में ईरान ने क्षेत्रीय ताकत के रूप में अपनी पहचान बनाई, चाहे वह लेबनान में हिजबुल्लाह का समर्थन हो या सीरिया में बशर अल-असद की मदद।

    खामेनेई की सियासी चतुराई का एक नमूना यह है कि वे रूढ़िवादी और सुधारवादी धड़ों के बीच संतुलन बनाए रखते हैं। उनके फैसले न सिर्फ ईरान की आंतरिक नीतियों को प्रभावित करते हैं, बल्कि क्षेत्रीय समीकरणों को भी बदलते हैं। यही वजह है कि इजरायल उन्हें अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है।

    हालांकि ईरान के कई राष्ट्रपतियों के साथ सुप्रीम लीडर खामेनेई की सत्ता संतुलन साधने में परेशानी हुई। कई राष्ट्रपति ऐसे मानते थे कि सुप्रीम लीडर ने देश के विकास को रोक रखा है और उन्हें दुनिया से काट दिया। ये नेता उदारवादी थे और ईरान को वैश्विक मंच पर लाने के पक्षधर थे। हालांकि उदारवादी होते हुए भी मौजूदा राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने सत्ता संतुलन साध रखा है।

    अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी के साथ अली खामेनेई

    ईरान पर क्यों चढ़ा है परमाणु हथियार बनाने का फितूर?

    ईरान का परमाणु कार्यक्रम दशकों से वैश्विक विवाद का केंद्र रहा है। इजरायल और पश्चिमी देशों का आरोप है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने की फिराक में है, जबकि ईरान का दावा है कि उसका कार्यक्रम सिर्फ शांतिपूर्ण ऊर्जा जरूरतों के लिए है। ईरान हमेशा से कहता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम बम बनाने के लिए नहीं बल्कि नागरिकों के इस्तेमाल के लिए है। लेकिन इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एसोसिएशन IAEA ने अपनी ताजा तिमाही रिपोर्ट में कहा था कि ईरान ने 60 फीसदी शुद्धता तक यूरेनियम इकट्ठा कर लिया है। एजेंसी के अनुसार, अगर ये स्तर 90 फीसदी तक पहुंचा तो तकनीकी तौर पर इससे परमाणु बम बनाए जा सकते हैं।

    लेकिन सवाल यह है कि ईरान के लिए परमाणु हथियार इतना जरूरी क्यों है? जानकारों के मुताबिक, ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षा क्षेत्रीय बादशाहत की चाहत से जुड़ी है। मध्य पूर्व में सऊदी अरब और इजरायल जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों के सामने ईरान खुद को मजबूत करना चाहता है। इजरायल के पास पहले से परमाणु हथियार हैं, जिसे वह आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं करता। ऐसे में ईरान को लगता है कि परमाणु हथियार ही उसे क्षेत्र में बराबरी का दर्जा दिला सकते हैं।

    इसके अलावा, ईरान की सियासत में परमाणु कार्यक्रम राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बन चुका है। दशकों के आर्थिक प्रतिबंधों और पश्चिमी दबाव के बावजूद ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखा, जो जनता के बीच उसकी सियासी ताकत को दर्शाता है। लेकिन इस जुनून की कीमत भी कम नहीं है। ईरान को कई बार पश्चिमी देशों की पाबंदियों को झेलना पड़ा है। इसके अलावा इजरायल बार-बार ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले की धमकी देता रहा है और खामेनेई को निशाना बनाने की बात उसी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है।

    इस्लामिक देशों के अगुवा बनना चाहता है ईरान?

    ईरान न सिर्फ इजरायल की दबदबे को चुनौती देना चाहता है, बल्कि मध्य पूर्व में अपनी बादशाहत कायम करना चाहता है। इसके लिए वह क्षेत्रीय संगठनों जैसे हिजबुल्लाह, हमास, हूती विद्रोही और शिया मिलिशिया को समर्थन देता है।

    ईरान ऐसा मानता है कि परमाणु हथियार से संपन्न होने के बाद वह मिडिल ईस्ट देशों का अगुवा बन जाएगा, क्योंकि अब तक सिर्फ एक इस्लामिक देश पाकिस्तान के पास ही परमाणु हथियार हैं।

    पाकिस्तान को अमेरिका कठपुतली की तरह इस्तेमाल करता है, इसलिए ईरान चाहता है कि उसे मुस्लिम देशों के अभिभावक के तौर पर देखा जाए। इसके अलावा खुद मुस्लिम देशों के बीच भी शिया मुल्क होने की वजह से ईरान अलग-थलग महसूस करता है, अगर परमाणु हथियार हासिल कर लेता है तो वह इजरायल के साथ-साथ मिडिल ईस्ट के सभी देशों के साथ मोलभाव कर सकता है। 

    खामेनेई का मानना है कि परमाणु हथियार ईरान को 'अछूत' बना देंगे, यानी कोई देश उस पर हमला करने से पहले सौ बार सोचेगा। लेकिन इस राह में इजरायल और अमेरिका सबसे बड़ा रोड़ा हैं।

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