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    'दोस्ती' निकली खोखली, चीन-रूस ने दिखाई पीठ; जानें कैसे जरूरत के समय अकेला पड़ा ईरान

    ईरान पर अमेरिका के हमले के बाद चीन और रूस ने ईरान को सैन्य समर्थन नहीं दिया। चीन ने शांति की अपील की जबकि रूस ने सीमित बयान जारी किए। इससे ईरान-चीन-रूस की दोस्ती की सच्चाई सामने आ गई। यह दोस्ती रणनीतिक सुविधा पर टिकी है न कि सच्चे सहयोग पर। रूस ने लड़ाकू विमान नहीं दिए चीन ने सैन्य सामग्री नहीं भेजी।

    By Digital Desk Edited By: Prince Gourh Updated: Tue, 01 Jul 2025 07:29 AM (IST)
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    जरूरत के समय अकेला पड़ा ईरान (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर अमेरिका के B-2 बॉम्बर्स द्वारा 30 हजार पाउंड के ‘बंकर बस्टर’ गिराए जाने के एक हफ्ते बाद पश्चिम एशिया में जंग की आशंका तो कम हुई, लेकिन एक और कहानी सामने आई, ईरान के 'दोस्त' चीन और रूस की चुप्पी।

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    जहां ईरान और इजरायल संघर्षविराम की ओर बढ़ गए, वहीं चीन और रूस ने मुश्किल घड़ी में ईरान को कोई सैन्य समर्थन नहीं दिया। इससे तथाकथित 'ईरान-चीन-रूस की दोस्ती' की सच्चाई उजागर हो गई।

    बिना समर्थन के रह गया ईरान

    जब ईरान पर इजरायल और अमेरिका के हमले हुए, तब न तो बीजिंग और न ही मॉस्को ने खुलकर समर्थन किया। चीन ने केवल शांति की अपील की, जबकि रूस ने सीमित राजनयिक बयान जारी किए। इससे यह स्पष्ट हो गया कि यह 'दोस्ती' केवल रणनीतिक सुविधा और साझा गिले-शिकवे पर टिकी है, न कि सच्चे रक्षा सहयोग पर।

    बीजिंग और मॉस्को दोनों ने अपने आर्थिक और कूटनीतिक हितों को प्राथमिकता दी। खाड़ी देशों और यूरोपीय साझेदारियों को देखते हुए वे खुलकर ईरान के पक्ष में आने से हिचकते रहे।

    ये कैसी 'दोस्ती'?

    2022 के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन-ईरान व्यापार संबंधों के बाद इस तथाकथित गठजोड़ को एक उभरते खतरनाक गुट के रूप में देखा जा रहा था। ईरान ने रूस को ड्रोन दिए, चीन ने ईरान से तेल खरीदा। पर यह सहयोग केवल लेन-देन तक सीमित रहा।

    जब युद्ध की नौबत आई, तो न रूस ने अपने वादे के अनुसार ईरान को लड़ाकू विमान दिए, न चीन ने सैन्य सामग्री भेजी। यहां तक कि इस साल हुई त्रिपक्षीय नौसैनिक अभ्यास भी अब केवल प्रतीकात्मक लगती है।

    अमेरिका और इजरायल ने दिखाया दम

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश पर ईरान के फोर्डो, नतांज और इस्फहान परमाणु ठिकानों को काफी हद तक तबाह कर दिया गया। अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी के मुताबिक, इन स्थलों की संवर्धन क्षमता को काफी नुकसान पहुंचा है।

    ट्रंप ने कहा कि ईरान को बुरी तरह हराया गया। जबकि, ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई ने इसे अमेरिका के चेहरे पर तमाचा कहा। पर हकीकत में ईरान अब कूटनीतिक रूप से घिरा हुआ है, बिना किसी बड़े सहयोगी के।

    रणनीतिक मोड़ पर ईरान

    अब ईरान के सामने दो रास्ते हैं- या तो वह अपनी रक्षा ताकत को फिर से बनाए, या कूटनीति की ओर झुके। चीन और रूस से केवल मौखिक समर्थन मिला है, जिससे तेहरान को समझ आ गया कि अगली बार संकट आया, तो वह शायद और भी ज्यादा अकेला होगा।