इजरायली हेरॉन Mk II से बढ़ेगी भारतीय सेना की ताकत, इजरायल के साथ डील डन; रफ्तार से कांपेंगे दुश्मन
भारत ने अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए इजरायल के साथ हेरॉन एमके-2 ड्रोन विमानों की अतिरिक्त खेप खरीदने का समझौता किया है। ये ड्रोन भारतीय थलसेना ...और पढ़ें

भारत ने और हेरॉन ड्रोन खरीदने का किया करार। (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ऑपरेशन सिंदूर में 'हेरॉन एमके-2' के सफल इस्तेमाल के बाद भारत ने अपनी रक्षा क्षमताओं में वृद्धि के लिए सेटेलाइट-लिंक्ड इन ड्रोन विमानों की अतिरिक्त खेप की खरीद के लिए इजरायल के साथ आपातकालीन प्रविधानों के तहत एक करार पर हस्ताक्षर किए हैं।
इजरायली रक्षा उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आइएआइ) के एक अधिकारी ने बताया कि हेरान एमके-2 ड्रोन भारतीय थलसेना व वायुसेना के पास पहले से हैं और अब इन्हें नौसेना में भी शामिल किया जाएगा।
अधिकारी के मुताबिक, सितंबर में रक्षा मंत्रालय ने 87 एमएएलई ड्रोन की खरीद के लिए आरएफपी (प्रस्ताव के लिए अनुरोध) जारी किया था, जिसमें 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रित किया गया था। अधिकारी ने कहा, 'हमारे लिए भारत एक प्रमुख ग्राहक है। हमारी साझेदारी तीन दशकों और कई पीढि़यों से चली आ रही है।''
जानिए इस ड्रोन सिस्टम की खासियत
'हेरान एमके-2' मध्यम ऊंचाई पर लंबे समय तक उड़ान भरने में सक्षम (एमएएलई) ड्रोन है, जो 35,000 फुट की ऊंचाई तक पहुंचने और लगातार 45 घंटे तक हवा में रहने में सक्षम है। इजरायली वायुसेना के अलावा दुनियाभर की 20 सैन्य इकाइयां इस ड्रोन का इस्तेमाल करती हैं।
उन्होंने कहा कि आइएआइ का इरादा न केवल इन उन्नत प्रणालियों की आपूर्ति करना है, बल्कि भारत में इनका निर्माण भी करना है। कंपनी भारत में ही इन प्रणालियों का निर्माण करना चाहती है। इसलिए यह हेरान का भारतीय संस्करण होगा। इस महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए महत्वपूर्ण प्रयास और 60 प्रतिशत से अधिक भारतीय विनिर्माण सामग्री के इस्तेमाल का लक्ष्य शामिल है।
रिफ्यूलर विमानों की आपूर्ति के लिए रेस में बची इजरायली कंपनी
भारत ने हवा में ईंधन भरने वाले छह विमानों की खरीद के लिए मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत निविदा जारी की थी। इस कार्यक्रम के तहत विक्रेता के लिए लगभग 30 प्रतिशत मेड इन इंडिया सामग्री के इस्तेमाल पर सहमत होना जरूरी है। लिहाजा, कार्यक्रम के अनुरूप 8,000 करोड़ रुपये के इस सौदे की इस दौड़ में सिर्फ आइएआइ ही बची है।
इस निविदा में रूसी और यूरोपीय कंपनियों ने भी हिस्सा लिया था, लेकिन वे इन जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही थीं। आइएआइ के एक्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट येहुदा लाहाव ने यह बताने से इन्कार कर दिया कि अगर यह सौदा उनकी कंपनी को मिला तो विमान कहां तैयार किए जाएंगे।
रक्षा सूत्रों ने बताया कि अगर आइएआइ के साथ समझौता हुआ तो वह छह पुराने और सेकंड-हैंड बोइंग-767 व्यावसायिक विमानों को माडिफाई करके उन्हें टैंकर एयरक्राफ्ट में बदल देगी। भारतीय वायुसेना के बेड़े में अभी रूसी मूल के ढ्ढद्य-78 मिड-एयर रिफ्यूलिंग एयरक्राफ्ट हैं जो वायुसेना और नौसेना के अभियानों में मदद करते हैं। वायुसेना ने पिछले 15 वर्षों में छह और फ्लाइट रिफ्यूलिंग एयरक्राफ्ट खरीदने की कई कोशिशें की हैं, लेकिन कई वजहों से ऐसा करने में नाकाम रही है।

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