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    जापान के सम्राट अकिहितो: लोगों के राजा जिन्‍होंने राजशाही की सीमाओं को तोड़ा

    By Arun Kumar SinghEdited By:
    Updated: Tue, 30 Apr 2019 04:04 PM (IST)

    जापान में दुनिया की सबसे पुरानी वंशानुगत राजशाही है। पद त्‍याग करने वाले सम्राट अकिहितो आधुनिक इतिहास में पहले जापानी सम्राट बन गए हैं।

    जापान के सम्राट अकिहितो: लोगों के राजा जिन्‍होंने राजशाही की सीमाओं को तोड़ा

    टोक्‍यो, जेएनएन। जापान के 85 वर्षीय सम्राट अकिहितो का जन्म ईश्‍वर के एक पुत्र के रूप में हुआ, लेकिन वह लोगों के सम्राट के रूप में सेवानिवृत्त हो रहे हैं। मंगलवार को सम्राट अकिहितो ने सिंहासन को त्‍याग दिया। यहां पर दुनिया की सबसे पुरानी वंशानुगत राजशाही है। ऐसा करने वाले आधुनिक इतिहास में पहले जापानी सम्राट बन गए।

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    59 वर्षीय उनके बेटे क्राउन प्रिंस नारुहितो 126 वें सम्राट के रूप में सत्‍ता ग्रहण करेंगे। बुधवार को नारुहितो की ताजपोशी के साथ ही पारंपरिक रूप से देश में नए युग की शुरुआत होगी। उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। उनकी पत्नी का नाम मसाका है। अकिहितो ने बतौर सम्राट अपने अंतिम संबोधन में सहयोग के लिए लोगों का आभार जताया और शांति की कामना की।

    Following a morning of traditional religious ceremonies, Akihito gave a short televised speech in which he thanked people for their support during his 30-year reign

    लोकप्रिय सम्राट रहे अकिहितो
    लोगों को प्यार करने वाले सम्राट अकिहितो को जनता से जुड़ने के लिए याद किया जाएगा, उनकी तरह किसी अन्य जापानी सम्राट ने नहीं किया। उन्‍होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान देश के कार्यों के लिए "गहरा पश्‍चाताप" व्यक्त किया है।

    साल 1989 में राजगद्दी संभालने वाले अकिहितो ने शाही परिवार की आम लोगों से निकटता बढ़ाई क्योंकि जापान के सम्राट शायद ही लोगों से मिलते थे। इस परंपरा के उलट वह अपनी पत्नी महारानी मिचिको के साथ लोगों के बीच जाते थे और खासतौर से उन लोगों से मिलते थे जो अपंगता या भेदभाव का सामना करते थे। इसके अलावा आपदा प्रभावित लोगों की मदद के लिए भी वह आगे रहते थे। इससे लोग उन्हें बड़े सम्मान से देखते हैं।

    स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर पद त्‍यागा
    स्वास्थ्य कारणों से पदमुक्त होने का एलान करने वाले 85 वर्षीय अकिहितो के राजगद्दी छोड़ने की प्रक्रिया मंगलवार सुबह कई रस्मों के साथ शुरू हुई। टीवी तस्वीरों में पारंपरिक पोशाक में दिखे अकिहितो सबसे पहले शाही परिवार की कुल देवी अमेतरासु के मंदिर में गए। वहां उन्होंने देवी को पद छोड़ने की सूचना देने की परंपरा निभाई। इसके बाद मध्य टोक्यो स्थित शाही महल में विदाई समारोह आयोजित किया गया। इसमें शाही परिवार और प्रधानमंत्री शिंजो एबी समेत सरकार के शीर्ष अधिकारियों की मौजूदगी में उनकी सेवानिवृत्ति का एलान किया गया।

    अकिहितो को विदाई देने की रस्में आधी रात तक चलीं। इसके साथ ही जापान के सम्राट के तौर पर उनके युग का समापन हो गया। अकिहितो की विदाई के दौरान शाही महल के बाहर बड़ी संख्या में लोगों का जमावड़ा रहा। तीन दशकों में अपने दूसरे टीवी भाषण में मृदुभाषी सम्राट ने कहा कि मुझे चिंता है कि राज्य के प्रतीक के रूप में अपने कर्तव्यों को निभाना मेरे लिए कठिन हो गया है।

    बनाया गया था कानून
    सम्राट अकिहितो के अप्रत्याशित एलान से जापान में चुनौतियां खड़ी हो गई थीं क्योंकि ऐसा कोई कानून नहीं था जिसमें सम्राट की सेवानिवृत्ति के लिए कोई व्यवस्था हो। ऐसी स्थिति में विशेष विधेयक लाकर सम्राट की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की इच्छा को पूरा करने का फैसला किया गया। इसके लिए साल 2017 में संसद से विधेयक पारित कराकर नया कानून बनाया गया था।

    खराब सेहत का दिया था हवाला
    अकिहितो ने साल 2016 में अपनी उम्र और खराब सेहत का हवाला देकर शाही दायित्वों से मुक्ति की इच्छा जताकर सबको चौंका दिया था। प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे अकिहितो हार्ट सर्जरी भी करा चुके हैं। वह करीब तीन दशक से सम्राट थे।

    मिशिगन विश्‍वविद्यालय में जापानी अध्‍ययन के इतिहासकार हितोमी तोनोमूरा ने कहा कि इस कदम ने लोगों का ध्यान और सम्मान जीत लिया, जिन्होंने वास्तव में सम्राट की अपनी इच्छा को माना। यह सम्राट के लिए उपयुक्त अंतिम कदम था। वह पहले जापानी सम्राट थे जिन्होंने एक सामान्‍य महिला से शादी की। टेलीविजन पर लाइव अपने विषयों पर बात की। उन्‍होंने अपने बच्चों की परवरिश में हाथ बंटाया।

    सम्राट का जन्‍म 1933 में हुआ, यह समय जापान के लिए सबसे कठिन समय था। इस समय युद्ध चल रहा था। उनके पिता सम्राट हिरोहितो एक मानवीय देवता के रूप में प्रतिष्ठित हुए थे।

    1937 में जापानी सैनिकों ने नानजिंग पर और फिर चीन गणराज्य की राजधानी पर हमला किया। चीनी अनुमानों के अनुसार जापानियों के कब्जे के बाद एक सप्ताह में लगभग तीन लाख चीनी मारे गए। जापान के बड़े पैमाने पर नरसंहार के बाद दुनिया भर में विवाद पैदा हुआ। 1940 में जापान आधिकारिक रूप से द्वितीय विश्व युद्ध में प्रवेश किया। वह इस युद्ध के दौरान इटली और जर्मनी के पक्ष में शामिल हुआ। राष्ट्र के इतिहास में युद्ध के ये वर्ष विवादास्पद अवधि बन गई।

    संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सैनिकों ने दो लाख कोरियाई महिलाओं को सेक्‍स दास बनने के लिए मजबूर किया। बाद में जापान ने माफी मांगी और कहा कि इस मुद्दे को सुलझा लिया गया है, लेकिन दक्षिण कोरिया ने अधिक औपचारिक माफी और पुनर्मूल्यांकन की मांग की। 1945 में जब सम्राट हिरोहितो ने एक रेडियो संबोधन में सरेंडर किया था, तब ज्यादातर जापानी लोगों ने उनकी आवाज इससे पहले पहले कभी नहीं सुनी थी।

    इसके बावजूद लगभग 20 साल तक वह सत्ता में रहे। युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान पर कब्जा कर लिया। नए संविधान ने शाही परिवार को राजनीति में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया और सम्राट हिरोहितो ने ईश्‍वरीय स्थिति को त्याग दिया। इसके बाद सम्राट ईश्‍वर के तुल्‍य नहीं रहे, वे सामान्‍य मनुष्‍य के तुल्‍य रहे।

    लोगों के घाव पर मरहम लगाया 
    1989 में सम्राट अकिहितो को युद्ध के घावों से निपटने के लिए जापान का सम्राट बनाया गया। उनके शासनकाल को हेसी युग कहा गया है, जिसका अर्थ है "शांति प्राप्त करना" और यह एक उपयुक्त नाम साबित हुआ। मई 1990 में सिंहासन पर आने के ठीक एक साल बाद सम्राट अकिहितो ने दक्षिण-कोरियाई कोरियाई राष्ट्रपति रोह ताए-वू को एक राज्य भोज में होस्ट किया, जहां उन्होंने जापान के युद्धकालीन आक्रमणों की जिम्मेदारी स्वीकार की। उन्‍होंने कहा कि मुझे लगता है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण अवधि के दौरान आपके लोग प्रताड़ि‍त हुए, जो मेरे देश द्वारा लाए गए थे। हालांकि मैं सबसे गहरा अफसोस महसूस नहीं करता हूं। 

    1992 में सम्राट अकिहितो चीन का दौरा करने वाले पहले सम्राट बने, जहां उन्होंने कहा कि उस "दुर्भाग्यपूर्ण अवधि" के लिए "गहरी उदासी" महसूस की, जिसमें मेरे देश ने चीन के लोगों को गहरी पीड़ा दी। उसने ओकिनावा की कई यात्राएं भी की, जहां पर सम्राट हिरोहितो के नाम पर लगभग 110,000 जापानी सैनिकों और 100,000 नागरिकों ने जान गंवाई।