Move to Jagran APP

तमबोरा ज्‍वालामुखी: जिसकी वजह से मारे गए थे एक लाख लोग, कई दिनों तक नहीं निकला था सूरज

इंडोनेशिया के तमबोरा ज्‍वालामुखी में 17 अप्रैल 1815 को जबरदस्‍त धमाका हुआ था। इसके बाद यहां के लोगों की सोच इसके प्रति बिल्‍कुल बदल गई।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 17 Apr 2020 03:57 PM (IST)Updated: Fri, 17 Apr 2020 03:57 PM (IST)
तमबोरा ज्‍वालामुखी: जिसकी वजह से मारे गए थे एक लाख लोग, कई दिनों तक नहीं निकला था सूरज
तमबोरा ज्‍वालामुखी: जिसकी वजह से मारे गए थे एक लाख लोग, कई दिनों तक नहीं निकला था सूरज

नई दिल्‍ली। वर्तमान में जिस तरह से कोरोना वायरस ने एक लाख से अधिक लोगों की जान ले ली है ऐसे ही 17 अप्रैल 1815 में एक ज्‍वालामुखी से निकली धधकती राख और लावे एक लाख लोगों को मौत के नींद सुला दिया था। ये धमाका इटली के पोंपेई ज्‍वालामुखी की ही तरह था जिसकी वजह से पूरा पोंपेई शहर राख के नीचे दब गया था।

loksabha election banner

तमबोरा के धमाके को अब तक सबसे बड़ा ज्वालामुखी विस्फोट कहा जाता है। यह ज्‍वालामुखी इंडोनेशिया के सुमबवा द्वीप पर है। वर्षों तक शांत रहने के बाद 5 अप्रैल 1815 को इसकी वजह से स्‍थानीय लोगों ने धरती में कंपन महसूस किया था। वो लोग आने वाले खतरे से अंजान थे। लेकिन वहीं दूसरी तरफ लगातार हो रहे कंपन के साथ ये ज्‍वालामुखी अपना रौद्र रूप दिखाने के लिए खुद को तैयार कर रहा था।

12 अप्रैल को इस ज्‍वालामुखी में एक जबरदस्‍त धमाका हुआ और इसकी शॉकवेव्‍स बहुत दूर तक महसूस की गई। इसी वजह से आस पास के कई मकान धराशायी हो गए। उस वक्‍त तक भी लोगों को इसके बारे में बहुत ज्‍यादा नहीं पता था। लोग इसको भूकंप की प्रक्रिया समझकर ही डर रहे थे। लेकिन तभी धमाके साथ ज्‍वालामुखी से निकली हुई राख ने अपने इरादों को साफ कर दिया। रह रह कर होने वाले धमाकों और कंपन ने हालात को बद से बदत्‍तर बना दिया था। हर धमाके के साथ ज्‍वालामुखी से निकलती धधकती राख सैकड़ों फीट ऊपर हो रही थी। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इस गुबार की वजह से यहां कई दिनों तक सूरज के दर्शन नहीं हो सके थे।

इसकी वजह से सुमबवा द्वीप पर डेढ़ मीटर मोटी राख की परत बिछ गई। तेज धमाकों के बाद यहां सूनामी भी आई जिसकी वजह से तक के करीब बसे लोग मारे गए। धीरे-धीरे इस राख की जद में आस-पास के गांव, कस्‍बे और फिर शहर तक आ गए। गर्म राख लोगों और उनके मकानों पर गिर रही थी। लोग इससे बचने के लिए बेतहाशा भाग रहे थे। इस राख की वजह से वहां का वातावरण इस कदर दूषित हो चुका था कि लोगों को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। गर्म राख सांस के जरिए उनके शरीर में जा रही थी। सैकड़ों लोग इस राख की जद में आकर इसमें ही ढेर भी हो चुके थे। लोग अपने साथ जो कुछ बचा हुआ सामाना और मवेशी थे लेकर जाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन वे लोग इसमें नाकामयाब रहे।

17 अप्रैल 1815 को ज्‍वालामुखी ने रही सही कसर भी पूरी कर दी। इसके मुख से लावा बाहर आने लगा था। इसकी वजह से खेत जंगल और घर आग का गोला बनने लगे। इसकी चपेट में जो कुछ आया खत्‍म हो गया। ज्वालामुखी की गड़गड़ाहट डेढ़ सौ किलोमीटर दूर तक सुनाई पड़ रही थी। कुछ दिनों के बाद जब यह ज्वालामुखी शांत हुआ तब तक इस द्वीप के दस हजार से अधिक लोग मारे जा चुके थे। इसके आसपास के द्वीपों पर रहने वाले भी इससे बचे नहीं रह सके। इस ज्‍वालामुखी ने इसके प्रति लोगों की सोच को बदलकर रख दिया था। लाखों मौतों की वजह से हर कोई दुखी थी। लगातार हुए कई धमाकों की वजह से तमबोरा का चेहरा बदल गया था। इसकी वजह से ज्वालामुखी की ऊंचाई 14,000 फुट से घटकर 9,000 फुट रह गई थी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.