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    'जानबूझकर धार्मिक विभाजन को बढ़ावा दिया', पहलगाम हमले पर बोले एस जयशंकर- 'आतंकवाद को जड़ से खत्म करना जरूरी'

    Updated: Tue, 15 Jul 2025 10:55 PM (IST)

    विदेश मंत्री एस. जयशंकर एससीओ परिषद की बैठक के लिए चीन दौरे पर हैं। उन्होंने बैठक में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का मुद्दा उठाया। जयशंकर ने कहा कि सदस्य देशों को एससीओ के उद्देश्यों के प्रति सच्चा रहना चाहिए और आतंकवाद पर अडिग रुख अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहलगाम हमला जम्मू-कश्मीर की पर्यटन अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए किया गया था।

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    चीन में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उठाया आतंकवाद का मुद्दा

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस. जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) परिषद की बैठक के लिए चीन के दौरे पर हैं। मंगलवार (15 जुलाई, 2025) को बैठक के दौरान उन्होंने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का मु्द्दा उठाया और कहा कि सदस्य देशों को ग्रुप के उद्देश्यों के प्रति सच्चा और आतंकवाद पर अडिग रुख अपनाए रखने की जरूरत है।

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    जून, 2020 में गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़पों के बाद जयशंकर पांच साल बाद चीन की पहली यात्रा पर हैं। इस दौरान उन्होंने कहा कि 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में हुआ हमला जानबूझकर जम्मू-कश्मीर की पर्यटन अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए किया गया था और धार्मिक विभाजन को भी बढ़ावा दिया गया था।

    'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी की हमले की निंदा'

    उन्होंने एससीओ विदेश मंत्रियों की काउंसिल मीटिंग में बोलते हुए कहा, "संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, जिसके हममें से कई लोग अभी भी सदस्य हैं। इसने एक बयान जारी कर इसकी कड़े शब्दों में निंदा की थी और आतंकवाद के इस निंदनीय कृत्य के अपराधियों, आयोजकों, वित्तपोषकों और प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराने और उन्हें न्याय के कटघरे में लाने की जरूरत पर बल दिया।"

    एस. जयशंकर ने याद दिलाई ये बात

    जयशंकर ने कहा कि एससीओ की स्थापना तीन बुराइयों- आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद से लड़ने के लिए की गई थी, जो आश्चर्यजनक रूप से एक साथ घटित होती हैं। उन्होंने कहा, "ये जरूरी है कि एससीओ अपने संस्थापक उद्देश्यों के प्रति सच्चा बना रहे और इस चुनौती पर कोई समझौता न करने वाला रुख अपनाए।"

    पाकिस्तान के सामने चीन को दिया कड़ा संदेश

    एससीओ में चीन, भारत, रूस, पाकिस्तान, ईरान के अलावा मध्य पूर्व के पांच देश सदस्य हैं। सम्मेलन में जयशंकर ने जब आतंकवाद और पहलगाम हमले का जिक्र किया तो पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार भी उपस्थित थे। जयशंकर इसी बैठक में हिस्सा लेने के लिए चीन में हैं। संगठन के विदेश मंत्रियों की बैठक को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने भी संबोधित किया।

    जयशंकर ने कहा, 'भारत एससीओ के तहत विकास के नए सोच पर काम करने को तैयार है। लेकिन इस दिशा में कोई भी नया सोच परस्पर आदर व बराबरी के सिद्धांत पर होना चाहिए और इसमें भौगोलिक संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का आदर किया जाना चाहिए।'

    भारत ने यह बात चीन की कनेक्टिविटी परियोजनाओं के संदर्भ में कही है। चीन ने दुनिया के एक बड़े भूभाग को रोड, रेल व समुद्री मार्ग से जोड़ने के लिए बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के नाम से परियोजना चलाई है जिसका एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से गुजरता है। भारत इसका विरोध करता है। असलियत में एससीओ में सिर्फ भारत ही एकमात्र देश है जो चीन की इस परियोजना का विरोध करता है, अन्य सभी देश चीन के साथ अपनी ढांचागत सुविधाओं को सुधारने को तत्पर हैं।

    कनेक्टिविटी को लेकर अडिग रहेगा भारत

    जयशंकर ने अपने भाषण में यह भी साफ कर दिया कि कनेक्टिविटी को लेकर वह अपने हितों पर अडिग रहेगा। उन्होंन कहा, 'एससीओ के बीच सहयोग को और गहरा करने के लिए सदस्य देशों के बीच ज्यादा निवेश, कारोबार और विनिमय करने की जरूरत है। इस बारे में आगे बढ़ने से पहले हमें कुछ मौजूदा मुद्दों पर बात करनी चाहिए। एक मुद्दा एससीओ के बीच सुरक्षित आवाजाही की कमी का है। इसकी वजह से जब हम आपस में कारोबारी सहयोग बढ़ाने की बात करते हैं तो वह ज्यादा गंभीर नहीं लगता। हमें इंटरनेशनल नार्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कारिडोर (इनटक) को बढ़ावा देना चाहिए।'

    यह बात उन्होंने पाकिस्तान और चीन की तरफ संकेत करते हुए कही। पाकिस्तान भारतीय उत्पादों को अफगानिस्तान नहीं पहुंचने देता। इनटक परियोजना के तहत भारत ईरान से होते हुए मध्य एशियाई देशों व रूस तक सड़क मार्ग बनाना चाहता है। लेकिन चीन इसकी प्रतिस्पद्र्धा में अपनी परियोजना को आगे बढ़ा रहा है।

    'आपसी विश्वास की तत्काल जरूरत'

    विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि वैश्विक व्यवस्था को स्थिर करने के लिए आपसी विश्वास पर आधारित क्षेत्रीय सहयोग की तत्काल जरूरत है।

    उन्होंने कहा, "हम ऐसे समय में मिल रहे हैं जब अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में काफी अव्यवस्था फैली हुई है। हमले पिछले कुछ सालों में संघर्ष, प्रतिस्पर्धा और दबाव देखा है। आर्थिक अस्थिरता भी स्पष्ट रूप से बढ़ रही है। हमारे सामने वैश्विक व्यवस्था को स्थिर करने, विभिन्न आयामों को जोखिम मुक्त करने की चुनौती है और इन सबके जरिए उन दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान करना है जो सामूहिक हितों के लिए खतरा हैं।"

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