चीन के लोग ही सरकार के सबसे बड़े शिकार, शासन करने को दैवीय अधिकार मानते हैं चीनी शासक
रिपोर्ट में इन अवधारणाओं के व्यावहारिक रूप पर कहा गया है कि आज श्रीलंका पाकिस्तान जिम्बाब्वे और कई अन्य देश चीनी कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं। मध्य साम्राज्य विचार के वशीभूत सीसीपी पूरी दुनिया को गुलाम बनाने की कोशिश कर रही है।
बीजिंग, एएनआई। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी सरकार के पहले शिकार इसके अपने ही लोग हैं। यूरोप एशिया फाउंडेशन में मिलिंद महाजन द्वारा लिखी गई 'चीनी मानसिकता की झलक' की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले तीन हजार सालों से चीनी शासक 'जोंग्यूहो या मध्य साम्राज्य' और 'दैवीय अधिकार (मेंडेट ऑफ हेवन)' की अवधारणाओं से प्रभावित रहे हैं। इस भावना से आम चीनी अत्याचार के शिकार होते हैं, जिससे दुनिया के लिए बड़ी समस्याएं खड़ी हो रही हैं।
दैवीय अधिकार और 'जोंग्यूहो या मध्य साम्राज्य' का अर्थ
बता दें कि दैवीय अधिकार का सीधा मतलब है कि शासक के पास राज करने का दैवीय अधिकार है और लोगों को शासन का विरोध नहीं करना चाहिए। 'जोंग्यूहो या मध्य साम्राज्य' का अर्थ है कि राजा की शासन व्यवस्था दुनिया में सबसे बेहतर है और बाकी दुनिया को इसे अपनाना चाहिए।
पूरी दुनिया को गुलाम बनाने पर आमादा चीन
बता दें कि 1046 में पूर्ववर्ती शांग राजवंश को अपदस्थ करने वाले झोउ राजा ने 'दैवीय अधिकार' के विचार का प्रचार किया। हालांकि 'दैवीय अधिकार' में यह भी निहित है कि शासक को आम लोगों के कल्याण के लिए शासन करना चाहिए। यदि वे प्रजा का शोषण या उन पर अत्याचार करते हैं तो दैवीय अधिकार बरकरार नहीं रहता। इससे लोग ऐसे निरंकुश शासकों को सत्ता से हटा सकते हैं।
रिपोर्ट में आगे इन अवधारणाओं के व्यावहारिक रूप पर कहा गया है कि आज श्रीलंका, पाकिस्तान, जिम्बाब्वे और कई अन्य देश चीनी कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं। मध्य साम्राज्य विचार के वशीभूत सीसीपी पूरी दुनिया को गुलाम बनाने की कोशिश कर रही है।
1949 से अब तक करोड़ों चीनियों को ही निगल गई चीनी सरकार
इसी तरह चीनी लोगों पर इतने निरंकुश और अत्याचारी तरीके से शासन किया रहा है मानो कम्युनिस्ट पार्टी को शासन का दैवीय अधिकार मिला हो। रिपोर्ट में 'लॉन्ग मार्च' और 'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' के उदाहरण दिए गए हैं। इनमें से 'लॉन्ग मार्च' में 70,000 आम चीनी लोग बीमारी, भुखमरी और युद्ध में मारे गए। इसके बाद 1949 में माओ-त्से-तुंग के 'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' अभियान में लगभग 3 करोड़ लोग भूखमरी से मारे गए। फिर 1966 से 1976 तक माओ ने कथित 'सांस्कृतिक क्रांति' में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों का सफाया कर दिया और इसमें लगभग 10 से 20 लाख चीनी मारे गए।
इसके बाद तिब्ब्त के स्वतंत्रता संघर्ष में लगभग 12 लाख तिब्बती मारे गए हैं। बीजिंग के तियानमेन चौक की घटना ऐसा मामला है जिसने दुनिया को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का क्रूर चेहरा दिखाया। लोकतंत्र और मानवाधिकारों की मांग कर रहे निहत्थे युवकों पर अंधाधुंध फायरिंग की गई और उन्हें टैकों तले कुचला गया। इस नरसंहार में लगभग 10,000 युवा चीनी मारे गए थे।