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    चीन में लहरा रहे आयुर्वेद का पताका, प्राचीन भारतीय चिकित्सा को किया फेमस; जानें कौन हैं ये केरल के डॉक्टर दंपती

    Updated: Mon, 14 Jul 2025 06:22 PM (IST)

    केरल के डॉक्टर दंपती डॉ. शफीक और डॉ. डेन चीन में आयुर्वेद का प्रचार कर रहे हैं। 3000 साल पुरानी इस भारतीय चिकित्सा पद्धति को वे चीनी स्वास्थ्य क्षेत्र में लोकप्रिय बना रहे हैं। उन्होंने स्थानीय लोगों को आयुर्वेदिक उपचारों का अनुभव कराकर चीन में लोकप्रियता हासिल की है। डॉ. शफीक एक आयुर्वेद परिवार से हैं जबकि डॉ. डेन ईसाई परिवार से हैं।

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    चीन में लहरा रहा आयुर्वेद का पताका। (फाइल फोटो)

    पीटीआई, बीजिंग। चीन के पारंपरिक स्वास्थ्य क्षेत्र में केरल के एक डॉक्टर दंपती ''जीवन का विज्ञान'' कहे जाने वाली 3,000 साल से अधिक पुरानी भारतीय चिकित्सा पद्धति 'आयुर्वेद' का पताका फहरा रहे हैं।

    चीनी स्वास्थ्य क्षेत्र में पहला कदम रखने वाले भारतीय डॉक्टर दंपत्ती आयुर्वेदिक पारंपरिक औषधीय उपचार को लोकप्रिय बनाने के साथ-साथ इसके एवं पारंपरिक चीनी चिकित्सा (टीसीएम) के बीच एक सांस्कृतिक सेतु बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने स्थानीय लोगों को प्राचीन भारतीय उपचार पद्धति के लाभ का अनुभव कराने के लिए एक नया मंच प्रदान करके चीन में जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की है।

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    जानिए डॉक्टर दंपती के बारे में जानिए

    डॉ. चंगमपल्ली किजक्किलाथ मोहम्मद शफीक और उनकी पत्नी डॉ. डेन (36) दोनों विपरीत सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि से आते हैं, लेकिन उन्होंने आयुर्वेद की प्रैक्टिस करने का एक सामान्य, महत्वाकांक्षी मार्ग चुना है। उनका मानना है कि खासकर हर्बल नुस्खों और समग्र उपचार की दृष्टि से आयुर्वेद और पारंपरिक चीनी चिकित्सा (टीसीएम) में कई समानताएं हैं।

    पारंपरिक आयुर्वेद से रहा है परिवार का नाता

    डॉ. शफीक 600 साल पुराने पारंपरिक आयुर्वेद परिवार ''चंगमपल्ली गुरुक्कल'' से आते हैं। इस परिवार के सदस्य मूल रूप से तुलु ब्राह्मण थे, जो अतीत में राजवैद्य के रूप में सेवाएं देते थे। वह कहते हैं कि उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने इस्लाम धर्म अपना लिया है, जबकि अन्य हिंदू बने हुए हैं। वे आयुर्वेद के क्षेत्र में अपने काम को अपनी पैतृक जड़ों की निरंतरता मानते हैं।

    2016 में पहुंचे चीन

    दूसरी ओर, डॉ. डेन एक ईसाई परिवार से हैं। उन्होंने तिरुवनंतपुरम स्थित केरल विश्वविद्यालय के आयुर्वेद कालेज में पढ़ाई की, जहां उनकी मुलाकात डॉ. शफीक से हुई। डॉ. शफीक का चीन प्रवास 2016 में शुरू हुआ, जब उन्होंने अपने शुरुआती करियर में पांडिचेरी में प्रैक्टिस करते हुए आयुर्वेदिक उपचार चाहने वाले कई चीनी मरीजों का इलाज शुरू किया।

    इसने उन्हें आयुर्वेद में नए अवसरों की तलाश के लिए चीन के समृद्ध ग्वांगझू शहर की यात्रा करने के लिए प्रेरित किया। पहले तो उन्होंने कई योग एवं स्वास्थ्य केंद्रों के साथ काम किया। फिर चिकित्सा पद्धतियों के लिए चीनी नियमों का विस्तृत अध्ययन करने के बाद उन्होंने समग्र आयुर्वेद चिकित्सा प्रदान करने वाला अपना क्लिनिक शुरू किया। इन उपचारों में सिरोधारा भी शामिल है जिसमें माथे पर धीरे-धीरे और लगातार औषधीय तेल और अन्य तरल पदार्थ टपकाया जाता है।

    चीनी युवाओं को दे रहे आयुर्वेद का प्रशिक्षण

    बहरहाल, उन्होंने चीनी युवाओं को आयुर्वेद का प्रशिक्षण देना शुरू किया। इसमें सैद्धांतिक ज्ञान और तेल मालिश जैसे व्यावहारिक कौशल, दोनों को व्यक्तिगत और आनलाइन कक्षाओं के माध्यम से शामिल किया गया। उन्होंने ग्वांगझू में एक कंस¨ल्टग कंपनी स्थापित की, जिसमें नियमों के अनुसार चिकित्सा सेवाएं शामिल नहीं थीं। उन्होंने बताया कि ग्वांगझू स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास और टीसीएम से जुड़े संस्थानों की मदद से उन्हें चीनी ग्राहकों का भरोसा और लोकप्रियता मिली।

    डॉ. शफीक ने अपनी हालिया बीजिंग यात्रा के दौरान बताया, ''शुरुआत में खुद को स्थापित करना मुश्किल था, और मुझे आगे बढ़ना बहुत मुश्किल लग रहा था। लेकिन धीरे-धीरे, डेन और मुझे लगातार समर्थन और प्रोत्साहन मिला और ज्यादा मरीजों ने हम पर भरोसा जताया।'' डॉ. डेन के साथ ग्वांगझू स्थित अपने क्लिनिक में प्रैक्टिस करने के अलावा वह नियमित रूप से व्याख्यान और डेमो भी देते हैं, जिससे ऑनलाइन उनके 10,000 से ज्यादा अनुयायी बन गए हैं।

    उन्होंने बताया कि उनके व्यावहारिक आयुर्वेद प्रशिक्षण पाठ्यक्रम खूब लोकप्रिय हो रहे हैं और उनके छात्रों ने बीजिंग और शंघाई जैसे शहरों में अपनी छोटी इकाइयां शुरू कर दी हैं। उन्होंने बताया कि अवसाद और यकृत विकारों के लिए उनके आयुर्वेद के समग्र उपचार को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है।