चीन विरोधी माहौल को थामने की कवायद में जुटा ड्रैगन, डॉ. कोटनिस की कांस्य प्रतिमा करेगा स्थापित
चीनी क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले भारतीय चिकित्सक द्वारकानाथ कोटनिस की एक कांस्य प्रतिमा का अगले महीने चीन में अनावरण किया जाएगा।
बीजिंग, पीटीआइ। भारत में चीन विरोधी माहौल को हल्का करने के लिए बीजिंग ने एक नई चाल चली है। द्वितीय विश्व युद्ध और माओ त्से तुंग के नेतृत्व में हुई चीनी क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले भारतीय चिकित्सक द्वारकानाथ कोटनिस की एक कांस्य प्रतिमा का अगले महीने चीन में अनावरण किया जाएगा। यह प्रतिमा हेबई प्रांत की राजधानी शिजियाझुआंग स्थित एक मेडिकल स्कूल के बाहर लगाई गई है। चीनी क्रांति के दौरान कोटनिस के योगदान की माओ त्से तुंग ने भी प्रशंसा की थी। उनके इसी योगदान को देखते हुए चीन के कई शहरों में उनकी प्रतिमाएं और स्मारक बनाए गए हैं।
शहरों में चिकित्सकीय सहायता की थी
चीन में 'के दिहुआ' के नाम से पहचाने जाने वाले डॉ. कोटनिस के नाम पर शिजियाझुआंग के एक मेडिकल कॉलेज (के दिहुआ मेडिकल साइंसेज सेकेंडरी स्पेशलाइज्ड स्कूल) का नाम रखा गया है। इसके अलावा शिजियाझुआंग और तानझियांग में उनके नाम पर कई प्रतिमाएं और स्मारक स्थापित किए गए हैं। चीन में रहने के दौरान डॉ. कोटनिस ने इन दोनों शहरों में चिकित्सकीय सहायता प्रदान की थी।
कोटनिस की प्रतिमा के सामने शपथ लेते हैं छात्र
शिजियाझुआंग के दिहुआ मेडिकल साइंसेज सेकेंडरी स्पेशलाइज्ड स्कूल के अधिकारी लियु वेनझू ने बताया कि 1992 में स्कूल की स्थापना के बाद से अब तक 4500 से अधिक चिकित्सकीय पेशेवर यहां से स्नातक की डिग्री हासिल कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि नए छात्रों और कर्मचारियों को डॉ. कोटनिस की एक पत्थर की प्रतिमा के सामने शपथ लेनी होती है कि वे उनकी तरह काम करेंगे। लियू ने उम्मीद जताई कि मेडिकल छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत कोटनिस चीन और भारत के लोगों के बीच एक सेतु का काम करेंगे।
कोंकण में जन्मे थे डॉ. कोटनिस
महाराष्ट्र के कोंकण में जन्मे डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस 1937 में रेड क्रॉस मिशन की टीम के सदस्य थे और भारत से चीन गए डॉक्टरों के एक दल का नेतृत्व कर रहे थे। उन दिनों जापान ने चीन पर हमला कर दिया था। तब चीन के तत्कालीन जनरल छू ते ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से घायल सैनिकों के इलाज के लिए चिकित्सकों का एक दल भेजने का अनुरोध किया था। नेहरूजी ने इंडियन मेडिकल मिशन टु चाइना के तहत डॉ. कोटनिस के नेतृत्व में चिकित्सकों का एक दल चीन भेजा था।
डॉ. कोटनिस ने किया था चीन में ही रहने का फैसला
युद्ध समाप्त होने के बाद बाकी डॉक्टर भारत लौट आए, लेकिन डॉ. कोटनिस वहीं रुक गए। इसी दौरान उन्होंने चीन की महिला गुओ क्विंग लांग से विवाह कर लिया। जब उनके यहां पुत्र का जन्म हुआ तो उसका नाम उन्होंने यिनहुआ रखा। इसके शाब्दिक अर्थ-यिन का मतलब भारत, और हुआ का मतलब चीन। इससे वह चीनी जनमानस के और करीब आ गए। 1942 में वह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना में शामिल हो गए थे।
डॉ. कोटनिस के निधन से माओ भी हुए बहुत दुखी
32 वर्ष की अल्पायु में डॉ. कोटनिस का निधन हो गया था। डॉ. कोटनिस के निधन से दिवंगत चीनी नेता माओ त्से तुंग भी बहुत दुखी हुए थे। माओ ने अपने शोक संदेश में लिखा था, 'सेना ने जहां एक मददगार को खो दिया है वहीं राष्ट्र का एक मित्र हमारे बीच से चला गया है। आइए हम हमेशा उनके अंतरराष्ट्रीय सहअस्तित्व की भावना को ध्यान में रखें।' डॉ. कोटनिस की पत्नी का निधन वर्ष 2012 में हुआ था।