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    ट्रंप ने हाथ खींचे तो लड़खड़ा जाएगा WHO? मौके ​की ताक में है चीन, भारत पर क्या पड़ेगा असर; पढ़िए पूरी डिटेल

    राष्ट्रपति बनते ही कई बड़े फैसले आनन फानन में ट्रंप ने लिए। WHO से अलग होने का फैसला इन्हीं में से एक है। सवाल यह उठता है ​कि WHO को ट्रंप पसंद क्यों नहीं करते हैं? इसके पीछे ट्रंप की डिप्लोमेसी क्या है? WHO को लेकर चीन किस अवसर की तलाश में है। भारत को इससे क्या प्रभाव पड़ेगा? इस स्टोरी में जानिए ऐसे सभी सवालों के जवाब।

    By Deepak Vyas Edited By: Deepak Vyas Updated: Thu, 30 Jan 2025 07:37 PM (IST)
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    डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही WHO से अलग होने की बात कह दी। फोटो: जागरण

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद से ही एक्शन के मोड में हैं। कभी चीन पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी, कनाडा और मैक्सिको को अमेरिका में मिलाने की बात या अवैध प्रवासी नागरिकों को अमेरिका से बाहर करना। एक के बाद एक त्वरित फैसले से दुनिया हैरान है। इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक बार फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO के साथ सभी काम बंद करने का आदेश दे दिया है।

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    साथ ही WHO में काम करने वाले सभी अमेरिकी कर्मियों को भी वापस बुलाने को कहा है। ट्रंप WHO से इतने नाराज क्यों हैं, ये नाराजगी अभी शपथ लेने के बाद से है या पिछले कार्यकाल से? WHO की भूमिका पर ट्रंप क्यों सवाल उठाते रहे हैं, यहां जानिए ऐसे सभी सवालों के जवाब।

    अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के कर्मियों को सोमवार ट्रंप के दफ्तर ने WHO के साथ काम बंद करने का आदेश दिया है। इस बात की पुष्टि कई संघीय स्वास्थ्य अफसरों और सीबीएस न्यूज ने की है। एक ईमेल जारी करके डब्ल्यूएचओ के साथ जुड़ने वाले सभी सीडीसी कर्मचारियों को अपनी गतिविधियां बंद करने को कहा गया।

    WHO को मोटी रकम देता है अमेरिका

    विश्व स्वास्थ्य संगठन को ​अमेरिका से वार्षिक फंड यानी अनुदान के रूप में मोटी राशि मिलती है। अमेरिका के लोगों के साथ ही विश्व के अफ्रीका और एशिया के गरीब और मध्यम वर्ग के देशों को चिकित्सकीय सुविधाएं और सुरक्षा व अच्छी सेहत के लिए WHO कार्य करता है। इसके लिए अमेरिका से ही अच्छी खासी धनराशि उसे प्राप्त होती है।

    अमेरिका ​विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर स्वास्थ्य संबंधी नए ख​तरों से निपटने के लिए भी काम करता है, लेकिन ट्रंप की घोषणा के बाद अब WHO को यह आर्थिक सहयोग आगे मिल पाएगा या नहीं, ये देखना होगा। अगर अमेरिका से WHO को फंडिंग बंद हो जाती है तो कई गरीब देशों की परेशानी बढ़ जाएगी।

    ट्रंप ने WHO पर चीन की तरफदारी करने का लगाया था आरोप

    • 2020 में जब कोरोना वायरस दुनिया में महामारी की तरह फैला, तब ट्रंप ही अमेरिका के राष्ट्रपति थे। तब भी उन्होंने कोरोना वायरस के प्रसार का कुप्रबंधन करने और उसकी जानकारी छिपाने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका को संदिग्ध माना था।
    • साथ ही WHO पर चीन की तरफदारी करने का आरोप लगाया था। अब वे दूसरी बार राष्ट्रपति बने, तो फिर आते ही उन्होंने अपने पहले ही दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से हटने के एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए।

    2020 में भी ट्रंप ने रोक दी थी फंडिंग

    ट्रंप 2020 में जब राष्ट्रपति थे, तब उन्होंने ​अस्थाई तौर पर WHO को दी जाने वाली फंडिंग रोक दी थी। इसके पीछे उनका तर्क था कि WHO को संगठनात्मक सुधार की आवश्यकता है। इसके अगले चार महीनों के बाद अमेरिका WHO से औपचारिक रूप से अलग हो गया था। इसी साल दुनिया में कोरोना तेजी से फैला था।

    अमेरिका पीछे हटा, तो चीन के लिए बड़ा अवसर

    अमेरिका को सबसे ज्यादा राशि डोनेट करता है। यह WHO को मिलने वाली कुल फंडिंग का 22.5 प्रतिशत है। वहीं चीन इस मामले में दूसरे नंबर पर है। वह WHO को 15 फीसदी आर्थिक सहायता करता है। ऐसे में अगर अमेरिका फंडिंग न करे और पीछे हट जाए तो चीन इसे एक अवसर की तरह ले सकता है। वैश्विक कूटनीति में भी चीन के इस कदम का असर देखने को मिल सकता है।

    विदेश मामलों के जानकार रहीस सिंह ने जागरण डॉट कॉम को बताया

    ट्रंप की एक डिप्लोमेसी है कि ऐसे इंस्टीट्यूशन जहां अमेरिका का प्रभुत्व कम हो रहा है और चीन का प्रभुत्व बढ़ रहा है, वहां से वे किनारा कर रहे हैं। इस कारण अमेरिका से फंडिंग रोकी जा रही है। डब्ल्यूएचओ का कामकाज ट्रंप की दृष्टि में कभी 'फेयर' नहीं रहा है। ट्रंप ने ब्रिक्स को भी कॉमन करेंसी पर धमकाया था। दरअसल, यह लड़ाई अमेरिका और चीन की है। डब्ल्यूएचओ से हाथ खींचना दूसरे इंस्टीट्यूशन और देशों को भी ट्रंप का कड़ा संदेश है।

    वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक राशिद किदवई ने जागरण डॉट कॉम को बताया 

    अमेरिका का विश्व स्वास्थ्य संगठन से अचानक हटने के एग्रेसिव फैसले ने चौंका दिया है। यह भी वर्ल्ड डिप्लोमेसी का हिस्सा है। क्योंकि स्वास्थ्य का भी वर्ल्ड इकोनॉमी से गहरा संबंध होता है। अमेरिका का डब्ल्यूएचओ से एकदम अलग हो जाना दुनिया के लिए नुकसानदेह होगा। 

    भारत पर क्या पड़ेगा असर?

    राशिद किदवई बताते हैं कि अमेरिका के डब्ल्यूएचओ से अलग हटने के फैसला भारत के लिए भी चिंता का विषय है। हमारे कई स्वास्थ्य कार्यक्रमों को डब्ल्यूएचओ से फंडिंग मिलती है। पोलियो जैसी बीमारी के लिए WHO से फंडिंग मिलती रही है। यही कारण रहा कि पोलियो को भारत ने मिटा दिया। हालांकि पाकिस्तान जैसे देशों में आज भी पोलियो के मरीज मिल रहे हैं।