एक तरफ मचा है तेज गर्मी से हाहाकार तो दूसरी तरफ हैं बर्फ की चादर से ढके देश, क्या है वजह
दुनिया के बड़े हिस्से में इस समय ठंड का प्रकोप है। अमेरिका के कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जहां तापमान शून्य से भी 50 डिग्री नीचे चला गया है। वहीं आस्ट्रेलिया में कई जगहों पर प्रचंड गर्मी पड़ रही है।
द न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन। दुनियाभर में इन दिनों ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा है। जलवायु परिवर्तन के कारण धरती जिस तरह गर्म हो रही है उससे वैज्ञानिक चिंतित हैं। हालांकि इन सबके बीच आम लोगों के बीच एक और भी सवाल उठ रहा है। सवाल यह है कि अगर धरती इतनी गर्म होती जा रही है तो मौसम इतना सर्द क्यों है? दुनिया के बड़े हिस्से में इस समय ठंड का प्रकोप है। अमेरिका के कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जहां तापमान शून्य से भी 50 डिग्री नीचे चला गया है। बर्फबारी का दौर भी जारी है। भारत के भी पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी हो रही है। कई स्थानों पर तापमान शून्य के नीचे पहुंच रहा है। इस सर्द मौसम में मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर ग्लोबल वार्मिंग का असर कहां है? अगर ग्लोबल वार्मिंग वाकई समस्या है तो फिर इस भीषण सर्दी का कारण क्या है? ग्लोबल वार्मिंग इस सर्दी को कुछ गर्म क्यों नहीं कर पा रही है? आम लोग ही नहीं, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मन में भी यह सवाल उठा है। उन्होंने ट्वीट करके सवाल उठाया कि आखिर ग्लोबल वार्मिंग कहां गई?
जलवायु और मौसम को समझना जरूरी
इस बात को समझने के लिए हमें जलवायु और मौसम का अंतर जानना होगा। लंबी अवधि में वातावरण की स्थिति को जलवायु कहा जाता है। वहीं किसी छोटी अवधि में वातावरण में जो हो रहा है उसे मौसम कहा जाता है। मौसम निश्चित अंतराल पर बदलता रहता है। कुछ ही महीने के अंतराल पर आने वाले सर्दी और गर्मी के मौसम में बहुत बड़ा फर्क होता है। वहीं जलवायु वातावरण का एक समग्र रूप है।
बटुए और संपत्ति जैसा है फर्क
इस बात को आसान भाषा में ऐसे भी समझा जा सकता है कि मौसम आपके बटुए में रखे पैसे जैसा है। वहीं जलवायु आपकी संपत्ति है। बटुआ खो जाए तो कोई गरीब नहीं हो जाता, लेकिन संपत्ति नष्ट हो जाए तो व्यक्ति बर्बाद हो सकता है। जलवायु और मौसम का भी ऐसा ही संबंध है। जिस दिन आपके आसपास का तापमान औसत से कम होता है, ठीक उसी समय पूरी धरती का औसत तापमान सामान्य से अधिक भी हो सकता है। इस अंतर को समझना होगा। ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ी चुनौती है और इससे निपटने के ठोस और गंभीर प्रयास निरंतर होते रहने चाहिए।
आंकड़ों में दिखता है अंतर
एक उदाहरण से स्थिति को समझा जा सकता है। दिसंबर, 2017 में जिस वक्त अमेरिका का कुछ हिस्सा औसत से 15 से 30 डिग्री फारेनहाइट तक ज्यादा सर्द था, उसी समय दुनिया 1979 से 2000 के औसत से 0.9 डिग्री फारेनहाइट ज्यादा गर्म थी। जब मौसम वैज्ञानिक कहते हैं कि इस सदी के अंत तक दुनिया का औसत तापमान दो से सात डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ जाएगा, इसका यह अर्थ नहीं होता कि सर्दियां कम सर्द हो जाएंगी। इसका अर्थ है कि मौसम पहले की तरह ही सर्द होता रहेगा, लेकिन सर्दी का दायरा कम होने लगेगा। एक अध्ययन के मुताबिक, पिछली सदी के पांचवें दशक में अमेरिका में सबसे गर्म और सबसे सर्द दिनों की संख्या लगभग बराबर थी। वहीं पिछली सदी के आखिरी दशक में सबसे गर्म दिनों की संख्या सर्द दिनों से दोगुनी हो गई। इसका मतलब है कि सर्दी के मौसम में भीषण सर्दी तो पड़ रही है, लेकिन सर्द दिनों की संख्या कम होती जा रही है।