Move to Jagran APP

रूस और यूक्रेन की लड़ाई में अमेरिका ने जला लिए अपने ही हाथ, वर्ल्‍ड सुपर पावर की साख को लगा बट्टा!

रूस और यूक्रेन की लड़ाई में अमेरिका की साख को भी धक्‍का लगा है। वहीं इस जंग के बाद अमेरिका ने जो प्रतिबंध रूस पर लगाए हैं उसकी आग में यूरोप भी जल रहा है। इस जंग से चीन ताइवान विवाद भी बढ़ सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 21 Mar 2022 09:56 AM (IST)Updated: Mon, 21 Mar 2022 11:51 AM (IST)
रूस और यूक्रेन की लड़ाई में अमेरिका ने जला लिए अपने ही हाथ, वर्ल्‍ड सुपर पावर की साख को लगा बट्टा!
रूस और यूक्रेन की लड़ाई में अमेरिका की गिरी साख

नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। रूस और यूक्रेन की लड़ाई को चौथा सप्ताह चल रहा है। इस लड़ाई में अब तक कई मोड़ आ चुके हैं। यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले तक हालात कुछ और थे, लेकिन अब हालात कुछ और हैं। इस जंग के शुरु होने से पहले पूरी दुनिया को लगता था कि अमेरिका के रहते रूस यूक्रेन पर हमला नहीं कर सकेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यही वजह है कि जानकार मान रहे हैं कि इस युद्ध में अमेरिका की साख को जबरदस्‍त झटका लगा है और दुनिया में इस महाशक्ति की छवि धूमिल हुई है। जानकार मानते हैं कि इस लड़ाई में न चाहते हुए भी अमेरिका ने अपने हाथ खुद ही जला लिए हैं। 

loksabha election banner

धूमिल हुई छवि

जवाहरलाल नेहरू के प्रोफेसर एचएस भास्‍कर का कहना है कि इस जंग के शुरू होने से पहले विश्‍व बिरादरी को अमेरिका से काफी उम्मीदें थीं, लेकिन युद्ध के शुरू होने के बाद ये हर रोज ही कम होती चली गईं। अब अमेरिका से न तो यूक्रेन को कोई उम्‍मीद रह गई है और न ही विश्‍व को कोई उम्‍मीद है। अमेरिका से विश्‍व बिरादरी को ये उम्‍मीदें उसके पूर्व में दिए गए बयानों की वजह से थीं। आपको बता दें कि लड़ाई छ‍िड़ने से पहले अमेरिका यूक्रेन का साथ देने की बात कर रहा था लेकिन बाद में उसने अपने हाथ पूरी तरह से खींच लिए। इतना ही नहीं, नाटो सेना को भी उसने यूक्रेन की मदद के लिए कीव भेजने से साफ इनकार कर दिया। ऐसे में विश्‍व के सामने अमेरिका की जो छवि उभर कर सामने आई वो ऐसे देश की थी जो किसी भी समय साथ छोड़कर महज दूर से नजारा देखता है।

यूरोप भी झेलेगा प्रतिबंधों की तपिश

प्रोफेसर भास्‍कर मानते हैं कि युद्ध के बाद अमेरिका ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों का असर जाहिर तौर पर रूस को झेलना पड़ रहा है। लेकिन इस आग में केवल रूस ही नहीं जल रहा है, बल्कि यूरोप भी जल रहा है। इन प्रतिबंधों की तपिश को समूचे यूरोप में महसूस किया जा रहा है। रूस विश्‍व का सबसे बड़ा गैस उत्‍पादक और एक्‍सपोर्टर है। यूरोप में उसकी सबसे अधिक गैस और तेल की सप्‍लाई होती है। रूस कह चुका है कि उसके तेल एक्‍सपोर्ट पर बैन लगने की सूरत में वो यूरोप को होने वाली गैस सप्‍लाई को भी रोक देगा। ऐसे में जहां रूस को नुकसान झेलना होगा वहीं यूरोप भी इसका दंश झेलने को मजबूर होगा।

अमेरिका की मंशा

प्रोफेसर भास्‍कर का कहना है कि विश्‍व बिरादरी ये बखूबी जानती है कि रूस को लेकर अमेरिका की मंशा क्‍या है। इनमें से एक बड़ी मंशा खुद को दुनिया की महाशक्ति बनाए रखने की है तो वहीं रूस को अलग-थलग करने की भी है। अमेरिका इस बाजार में अपनी कंपनियों के लिए नए बाजार को तलाशने में लगा हुआ है। प्रोफेसर भास्‍कर की मानें तो यूरोप में अमेरिका अपने लिए बड़ी संभावनाएं तलाशने में लगा है। इन संभावनाओं के पीछे रूस एकमात्र बड़ी समस्‍या है। जब तक यूरोप से रूस को बाहर नहीं किया जाएगा तब तक अमेरिका अपनी संभावनाओं को भी अमलीजामा नहीं पहना सकेगा। ऐसे में जरूरी है कि ऐसे कदम उठाए जाएं जिनसे अपनी मंजिल की तरफ आगे बढ़ा जा सके।

बढ़ सकता है ताइवान चीन-विवाद

रूस और यूक्रेन की लड़ाई के मद्देनजर चीन ताइवान संकट के बढ़ने के बाबत पूछे गए सवाल के जवाब में प्रोफेसर भास्‍कर ने कहा कि आने वाले दिनों में यहां पर भी यही हालात बन सकते हैं। अमेरिका ताइवान की मदद के लिए कितना आगे आएगा कहा नहीं जा सकता है। यहां पर एक खास बात ये भी है कि चीन और रूस के बीच जो जुगलबंदी हाल ही में देखने को मिली है उसके चलते इस बात की भी संभावना काफी प्रबल है कि रूस ताइवान के मुद्दे पर चीन का साथ देने में भी परहेज न करे। मौजूदा समय में रूस ने इस बात का साफ संकेत दिया है कि वो अमेरिका का सुपरपावर नहीं मानता है। कहीं न कहीं वो इसको साबित करने में भी सफल हुआ है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.