ट्रंप के फैसले से नए सत्या नडेला और सुंदर पिचाई की राह बंद, अमेरिकन ड्रीम देखनेवाले हजारों भारतीयों में निराशा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा शुल्क एक लाख डॉलर करके अमेरिकन ड्रीम देखनेवाले हजारों भारतीय छात्रों का दिल तोड़ दिया। ट्रंप के इस कदम का तत्काल प्रभाव ट्रैवल एडवाइजरी और बाजार पर नजर आने लगा है। मध्यम अवधि के प्रभाव तकनीक व्यावसायिक सेवाओं और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सोर्सिंग रणनीतियों को नया रूप देंगे।

आईएएनएस, नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा शुल्क एक लाख डॉलर करके अमेरिकन ड्रीम देखनेवाले हजारों भारतीय छात्रों का दिल तोड़ दिया।
कंपनियों को भर्ती के लिए नए वैकल्पिक रास्ते तलाशने होंगे
इससे कम और मध्यम वेतन वाले एच-1बी पदों पर भर्ती में भारी कमी आएगी, जबकि ज्यादा वेतन वाले पदों पर वैसे भी भर्तियां कम ही होती हैं। इस तरह नियोक्ताओं और कर्मचारियों को वैकल्पिक रास्ते अपनाने या स्टाफिंग मॉडल का पुनर्गठन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
ट्रंप के इस कदम का तत्काल प्रभाव ट्रैवल एडवाइजरी और बाजार पर नजर आने लगा है। मध्यम अवधि के प्रभाव तकनीक, व्यावसायिक सेवाओं और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सोर्सिंग रणनीतियों को नया रूप देंगे।
यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से मिडिल या एंट्री लेवल की नौकरियां चाहनेवाले लोगों को प्रभावित करेगी, जहां एंट्री लेवल के लिए औसत वेतन 65,000-80,000 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष और मिडिल करियर के लिए लगभग 100,000-122,000 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष होता है।
अमेरिका को नहीं मिलेंगे नए सत्या नडेला और सुंदर पिचाई
उच्च पदों पर बैठे लोगों के लिए कंपनी को एक लाख डॉलर फीस का भुगतान करने में असुविधा नहीं होगी और ये भी संभव है कि दोनों पक्ष इस रकम को आपस में साझा कर लें। लेकिन ट्रंप के इस फैसले ने नया सत्या नडेला और एक और सुंदर पिचाई के लिए रास्ता लगभग बंद हो गया है। अब ऐसे लोगों को कंपनी के अंदर से ही खोजना पड़ेगा।
भारतीय कंप्यूटर और सूचना तकनीक पेशों कर रहे काम
अमेरिका में फिलहाल चार लाख से ज्यादा भारतीय कंप्यूटर और सूचना तकनीक पेशों, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, डाटा साइंटिस्ट, सिस्टम एनालिस्ट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग इंजीनियर जैसे पदों पर काम कर रहे हैं।
कर्मचारियों से लेकर भारतीय सॉफ्टवेयर निर्यात तक पर पड़ेगा असर
ट्रंप प्रशासन का यह फैसला सबसे ज्यादा भारत को प्रभावित करने जा रहा है। ऐसे में एच-1बी वीजा को लेकर लागू नया नियम तकरीबन 200 अरब डालर के भारतीय साफ्टवेयर निर्यात पर भी उलटा असर डाल सकता है।
एच-1बी वीजा लेकर अमेरिकी कंपनियों (मेटा, गूगल, एमेजोन, माइक्रोसाफ्ट आदि) में सीधे तौर पर काम करने वाले भारतीयों या भारतीय साफ्टवेयर कंपनियों (इंफोसिस, एचसीएल, विप्रो आदि) में कार्यरत भारतीय आइटी इंजीनियरों के लिए भी अनिश्चतता पैदा हो गई है।
इसके अलावा दर्जनों छोटी-बड़ी आइटी कंपनियां हैं जो अमेरिकी ग्राहकों को अपनी सेवाएं देती हैं। उन पर भी परोक्ष तौर पर असर होगा। यह आइटी सेक्टर में रोजगार की तलाश करने वाले भारतीय पेशेवरों के विकल्पों को सीमित कर सकता है।
सबसे ज्यादा भारतीयों को मिलता है यह वीजा
अमेरिका ने अभी तक जितना एच-1बी वीजा जारी किया है, उसका 72 प्रतिशत से ज्यादा भारतीयों को मिला है। 12 प्रतिशत वीजा के साथ चीन दूसरे नंबर पर है। सिर्फ 2025 में माइक्रोसाफ्ट, एमेजोन, मेटा जैसी दिग्गज अमेरिकी कंपनियों और नासा जैसी एजेंसी को 20 हजार एच-1बी वीजा की मंजूरी दी गई है।
अब इन कंपनियों की लागत काफी बढ़ जाएगी। विदेशी मीडिया के मुताबिक, सिर्फ एमेजोन पर 3.6 अरब डालर का बोझ बढ़ जाएगा, जहां 11 हजार से ज्यादा भारतीय काम करते हैं।
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