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ईरान-उत्तर कोरिया के लिए यूएस ने तैनात की बेहद घातक मिसाइल, जानें कैसे करती है काम

अमेरिका ने ईरान को सबक सिखाने के लिए अपनी बेहद घातक मिसाइलें तेनात की हैं। आपको बता दें कि यह मिसाइल इंसान के लिए घातक नहीं है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 17 May 2019 03:12 PM (IST)Updated: Sat, 18 May 2019 11:49 AM (IST)
ईरान-उत्तर कोरिया के लिए यूएस ने तैनात की बेहद घातक मिसाइल, जानें कैसे करती है काम
ईरान-उत्तर कोरिया के लिए यूएस ने तैनात की बेहद घातक मिसाइल, जानें कैसे करती है काम

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। ईरान से बढ़ती तनातनी के बीच अमेरिका ने अपनी सबसे घातक 20 मिसाइलों को तैनात करने का फैसला लिया है। यह मिसाइल ईरान की तरफ से आने वाले किसी भी हमले को पहले ही नाकाम बना देगी। लेकिन, इस मिसाइल का दूसरा पहलू ये है कि यह मिसाइल इंसानों के लिए घातक नहीं है। जी हां! ये सच है। दरअसल, यह मिसाइल इस तरह से ही डिजाइन की गई है कि इसका असर सिर्फ इलेक्‍ट्रॉनिक मशीनों तक ही सीमित रहता है। लेकिन, यही मशीनें मौजूदा समय में जंग की सूरत बदलती हैं। अमेरिका ने जिन मिसाइलों की तैनाती की है इन्‍हें इलैक्‍ट्रोमैगनेटिक पल्‍स वैपन सिस्‍टम कहा जाता है। इस मिसाइल सिस्‍टम को उत्‍तर कोरिया को ध्‍यान में रखते हुए भी तैनात किया गया है।  

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पहली बार हुई है तैनाती 
अमेरिका के लिए यह प्रोजेक्‍ट बोईंग फेंटम वर्क्‍स ने तैयार किया है। इसको इलेक्‍ट्रॉनिक हाई-पावर माइक्रोवेव एडवांस्‍ड मिसाइल प्रोजेक्‍ट (CHAMP) के तहत तैयार किया गया है। वर्ष 2012 में अमेरिका की एयरफोर्स रिसर्च लेबोरेट्री ने इसका सफलतापूर्वक परीक्षण किया था। हालांकि इसको अब तक सेना में आधिकारिकतौर पर शामिल नहीं किया गया था। लेकिन डेली मेल अखबार ने यूएस एयरफोर्स रिसर्च लेबोरेट्री के हवाले से इस बात की पुष्टि की है कि अमेरिका ने अब इसको सेना में शामिल कर लिया है और यह अपने टार्गेट को भेदने के लिए पूरी तरह से तैयार है।

कैसे करती है काम
आपको बता दें कि माइक्रोवेव वेपन एक क्रूज मिसाइल में लगा होता है जिसको बी-52 बमवर्षक विमान से छोड़ा जाता है। यह मिसाइल दुश्‍मन के हवाई क्षेत्र में 700 मील प्रतिघंटे की रफ्तार से काफी नीचे उड़ान भरती है। इस मिसाइल की खासियत होती है कि ये नीचे उड़ान भरते हुए भी दुश्‍मन के राडार की पकड़ से दूर रहती है। यह मिसाइल उन इमारतों को टार्गेट करती है जो सेना के काम से जुड़ी होती हैं। इन इमारतों के ऊपर से उड़ते हुए यह मिसाइल हाई-पावर माइक्रोवेव छोड़ती है, जिससे एक मैगनेटिक फील्‍ड बनता है। ये माइक्रोवेव इमारत में मौजूद सभी तरह के कंप्‍यूटर और दूसरी मशीनों को पंगू बना देती है और यह कुछ नहीं कर पाते हैं। इस सूरत में दुश्‍मन न तो अपनी जानकारी का आदान-प्रदान कर पाता है और न ही अपने हाईटेक हथियारों को हमला करने का निर्देश दे पाता है। इस मिसाइल की सबसे बड़ी खासियत ही ये है कि इसका असर सिर्फ मशीनों तक ही सीमित है। इंसानी शरीर पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता है।

हमले का जवाब देने में नाकाम होगा दुश्‍मन
इससे खबरों और जानकारियों का आदान-प्रदान पूरी तरह से बाधित हो जाता है। ऐसे में न तो किसी फैसले की जानकारी सुरक्षाबलों तक पहुंचाई जा सकेगी और न ही उनका कोई आपात संदेश ही आ सकेगा। यह किसी भी देश के लिए सबसे घातक होगा। ऐसे वक्‍त में कोई भी देश अपनी सुरक्षा करने में पूरी तरह से विफल हो जाएगा और उस वक्‍त यदि उस पर हमला होता है तो वह कुछ नहीं कर पाएगा।

भारत की भी तैयारी 

आपको यहां पर ये भी बता दें कि भले ही अमेरिका के पास इसकी कोई काट नहीं है लेकिन भारत इसकी काट की तलाश में पिछले चार-पांच वर्षों से लगा है। डीआरडीओ इस प्रोजेक्‍ट सिस्‍टम को डेवलेप करने में लगा हुआ है। भविष्‍य के इस घातक सिस्‍टम को डेवलेप करने में डीआरडीओ काफी आगे निकल आया है। उम्‍मीद की जा रही है कि भविष्‍य में भारत के पास इस तरह का मिसाइल सिस्‍टम उपल्‍ब्‍ध हो जाएगा। यहां पर एक बात जो बेहद खास है वह ये है कि अमेरिका का जो वैपन दुनिया के सामने आया है उसका अहसास पहले से भी डीआरडीओ को था, जिसपर काम भी तुरंत शुरू कर दिया गया था।

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