अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते का शांति से लेनादेना नहीं, पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक ने उठाए सवाल
बता दें कि ट्रंप प्रशासन ने दोहा में पिछले वर्ष फरवरी में तालिबान के साथ शांति समझौता किया था। समझौते में आतंकवादी समूह की ओर से सुरक्षा की गारंटी के बदले अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों की वापसी की योजना बनाई गई थी।

वाशिंगटन, प्रेट्र। अमेरिका में काम कर चुके पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक हुसैन हक्कानी ने कहा है कि वाशिंगटन और तालिबान के बीच हुए समझौते का शांति से कोई लेनादेना नहीं है। वास्तव में यह समझौता युद्धग्रस्त अफगानिस्तान से अमेरिकी सुरक्षा बलों की वापसी से जुड़ा है। हक्कानी थिंक टैंक हडसन इंस्टीट्यूट द्वारा 'अफगान शांति प्रक्रिया: प्रगति या संकट' विषय पर ऑनलाइन आयोजित समारोह में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा, 'मैं अमेरिका और तालिबान के बीच समझौते का लंबे समय से आलोचक हूं। मेरा मानना है कि इस समझौते का शांति से कोई लेना देना नहीं है और यह सुरक्षा बलों की वापसी का समझौता है। तालिबान से केवल एक चीज की प्रतिबद्धता व्यक्त करने को कहा गया कि वे अंतर अफगान वार्ता में भाग लेंगे ना कि वे शांति के लिए सहमत होंगे।'
तालिबान की शांति की परिभाषा अमेरिका की परिभाषा से है बहुत अलग
बता दें कि ट्रंप प्रशासन ने दोहा में पिछले वर्ष फरवरी में तालिबान के साथ शांति समझौता किया था। समझौते में आतंकवादी समूह की ओर से सुरक्षा की गारंटी के बदले अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों की वापसी की योजना बनाई गई थी। हक्कानी ने कहा कि तालिबान की शांति की परिभाषा अमेरिका की परिभाषा से बहुत अलग है।
समझौते के तौर पर होता है सिर्फ संघर्ष विराम: हक्कानी
हडसन इंस्टीट्यूट में दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों के निदेशक हक्कानी ने कहा, 'तालिबान का मानना है कि उसके इस्लामी अमीरात की स्थापना के साथ ही क्षेत्र में शांति स्थापित हो जाएगी।' हक्कानी ने कहा कि जब सरकार और आतंकी गुट एक-दूसरे से बात करते हैं तो समझौते के तौर पर सिर्फ संघर्ष विराम होता है। हालांकि अभी भी मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिर क्षेत्र में किस तरह का संघर्ष विराम हुआ है। जहां पहले 10 लोग मारे जा रहे थे वहीं अब दो लोग मारे जा रहे हैं।'
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