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    भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा, आतंकवाद शांति और सुरक्षा के लिए है सबसे बड़ा खतरा

    संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रस्तावों का समर्थन करते हुए भारतीय राजदूत ने कहा कि हमारा दृष्टिकोण बहुआयामी सुधार लैंगिक समानता मानवाधिकारों विकास आतंकवाद की रोकथाम पर्यावरण परिवर्तन पर नियंत्रण कोरोना संक्रमण वैक्सीन और शांति व सुरक्षा को बढ़ाने को लेकर होना चाहिए।

    By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Updated: Tue, 12 Oct 2021 06:51 PM (IST)
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    आर.रवींद्र ने कहा, संयुक्त राष्ट्र के साझा एजेंडे में भी यही सबसे बड़ी रुकावट

    न्यूयार्क, एएनआइ। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि शांति और सुरक्षा के रास्ते में सबसे बड़ा खतरा आतंकवाद ही है। यह संयुक्त राष्ट्र के साझा एजेंडे में सबसे बड़ी रुकावट भी है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के स्थायी उप प्रतिनिधि (राजनीतिक संयोजक) आर.रवींद्र ने महासचिव के समक्ष देश की प्राथमिकताओं को साझा किया। उन्होंने महासभा के 75वें संबोधन में कहा कि एक साझा एजेंडे के तहत अगले 25 सालों में महासचिव के भावी वैश्विक सहयोग पर मंथन होगा।

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    पेरिस समझौते को लेकर भारत जी-20 की दिशा में बढ़ रहा आगे

    संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रस्तावों का समर्थन करते हुए भारतीय राजदूत ने कहा कि हमारा दृष्टिकोण बहुआयामी सुधार, लैंगिक समानता, मानवाधिकारों, विकास, आतंकवाद की रोकथाम, पर्यावरण परिवर्तन पर नियंत्रण, कोरोना संक्रमण, वैक्सीन और शांति व सुरक्षा को बढ़ाने को लेकर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिसमें इस वैश्विक मंच पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पेरिस समझौते को लेकर भारत जी-20 की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

    गुतेरस ने कहा-अफगानिस्तान बनने या बिखरने की स्थिति में

    संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुतेरस ने सदस्य देशों से मदद का आग्रह करते हुए कहा कि अफगानिस्तान इस समय बनने या बिखरने की स्थिति से जूझ रहा है। साथ ही उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए तालिबान से अपील की कि वह महिलाओं के कामकाज और लड़कियों की शिक्षा को लेकर अपने किए वादे को पूरा करे।

    बगैर महिलाओं के अफगानी अर्थव्यवस्था और समाज में सुधार की गुंजाइश नहीं

    गुतेरस ने कहा कि अफगानिस्तान की 80 फीसद अर्थव्यवस्था अनौपचारिक है और इसमें महिलाओं की अहम भूमिका है। इन महिलाओं के बगैर अफगानी अर्थव्यवस्था और समाज में सुधार की गुंजाइश नहीं है। ध्यान रहे कि अफगानिस्तान शासन का 75 फीसद खर्च फिलहाल विदेशी सहायता पर ही निर्भर है। युद्धग्रस्त देश मुद्रा संकट से जूझ रहा है। बैंक और अन्य जरूरी सेवाएं बंद होती जा रही हैं।