Smell Problem: दुर्गंध का पता न चले तो हो जाएं सावधान; यह हो सकता है गंभीर बीमारी का लक्षण, वैज्ञानिकों ने किया आगाह
यदि आपको दुर्गंध महसूस नहीं हो रही है तो सचेत हो जाएं। इसका मतलब है कि आपको कुछ न कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्या अवश्य है। यूनिवर्सिटी आफ टोक्यो के विज्ञानियों ने इस बारे में एक अध्ययन किया है। पढ़ें यह रिपोर्ट...

टोक्यो, एएनआइ। दुर्गंध फैलने पर नाक-भौं सिकोड़ना स्वाभाविक है लेकिन यदि आपको दुर्गंध महसूस नहीं हो रहा हो तो सचेत हो जाएं। इसका मतलब है कि कुछ न कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं। इन्हीं बातों की पड़ताल के लिए यूनिवर्सिटी आफ टोक्यो के विज्ञानियों ने एक आडर डिलिवरी उपकरण का विकास किया है, जो मशीन लर्निग आधारित इलेक्ट्रोएनसेफैलोग्राम का विश्लेषण करेगा और उससे यह जाना जा सकेगा कि मस्तिष्क में गंध की कब और कहां प्रोसेसिंग होती है।
...तो हो जाएं सतर्क
अध्ययन में पाया गया है कि मस्तिष्क में गंध की सूचना पहले की प्रक्रिया से स्वतंत्र होती है, लेकिन जब गंध दोबारा पैदा होता तो उसकी प्रोसेसिंग सुगंध से पहले और तेजी से होती है। ऐसे में यदि गंध का पता नहीं चले तो यह मानकर सतर्क हो जाना चाहिए कि संभवतया वह न्यूरोडिजनेरेटिव डिजीज के प्रारंभिक लक्षण हो सकते हैं। इस तरह से भविष्य में होने वाले रोगों के प्रति समझ बढ़ सकती है और उसके निवारण का समय मिल सकता है।
सुगंध या दुर्गंध... यह सोच पर निर्भर
इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि क्या सुबह-सुबह गरमागरम काफी की सुगंध आपको दिन की शुरुआत करने मदद करता है या आप कोई बदबू को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। शोध के मुताबिक, आपके मस्तिष्क में इन खुशबू या बदबू की प्रोसेसिंग कितनी तेजी से होती है, यह आपके उस सोच पर निर्भर करता है कि उसे आप सुगंध मानते हैं या दुर्गंध।
रिकार्ड किया सिग्नल
यूनिवर्सिटी आफ टोक्यो के शोधार्थियों की एक टीम ने एक विशिष्ट उपकरण बनाया है, जो 10 प्रकार से गंध-सुगंध को सही समय से मस्तिष्क में पहुंचा सकता है। अध्ययन में शामिल प्रतिभागियों को नान-इन्वेसिव स्काल्प-रिकार्डेड इलेक्ट्रोएनसेफैलोग्राम (ईईजी) कैप पहनाया गया था। इससे मस्तिष्क में उत्पन्न सिग्नल को रिकार्ड किया गया।
मशीन लर्निंग का इस्तेमाल
शोधकर्ताओं ने इसके डाटा का मशीन लर्निंग आधारित कंप्यूटरीकृत विश्लेषण से यह पता लगाया कि पहली बार में मस्तिष्क में उन गंधों की कौन सी रेंज की प्रोसेसिंग कब और कहां कितनी तेजी से हुई।
मस्तिष्क को तेजी से मिलती है दुर्गंध की सूचना
यूनिवर्सिटी आफ टोक्यो के ग्रैजुएट स्कूल आफ एग्रीकल्चरल एंड लाइफ साइंस के शोधकर्ता मुगिहिको कातो ने बताया कि इससे हैरान हुए कि हम ईईजी रेस्पांस से ज्यादा जल्दी यानी 100 मिलीसेकेंड में ही उसके सिग्नल पकड़ पाए। इससे यह संकेत मिला कि दुर्गंध की सूचना मस्तिष्क को बहुत तेजी से मिलती है। इसमें पहले के गंध से नहीं मिलने वाले गंध की प्रोसेसिंग काफी तेज हुई। उन्होंने बताया कि उनका अध्ययन यह दर्शाता है कि खुशबू या बदबू का अहसास अलग-अलग स्तरों पर होता है।
दुर्गंध की प्रोसेसिंग सुगंध से पहले
शोध परियोजना से जुड़े एसोसिएट प्रोफेसर मसाको ओकामोटो के मुताबिक, दुर्गंध की प्रोसेसिंग सुगंध से पहले हुई। उन्होंने बताया कि सड़ांध की प्रोसेसिंग प्रतिभागियों के मस्तिष्क में गंधहीन या सुगंध की तुलना में 300 मिलीसेकेंड पहले हुई।
ऐसे पढ़ता है दिमाग
जबकि फल-फूल की खुशबू की प्रोसेसिंग मस्तिष्क में 500 मिलिसेकेंड या उसके बाद हुई। हालांकि इसमें गंध की तीव्रता की भी भूमिका होती है। गंध या सुगंध मिलने के 600-850 मिलीसेकेंड के बाद मस्तिष्क में उससे संबंधित भावनात्मक तथा याददाश्त की प्रोसेसिंग होती है।
जोखिम की चेतावनी
पहले भी यह माना जाता रहा है कि दुर्गंध का अहसास होना या नहीं होना आशंकित जोखिमों की चेतावनी हो सकती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में हर संवेदी तंत्र अलग-अलग तरीके से गंध, प्रकाश, ध्वनि, स्वाद, दबाव तथा तापमान की समझ को प्रोसेस करता है। इस तरह से हमें प्रत्येक तंत्र की संवेदनशीलता का पता चलता है।
गंभीर रोगों का खोजा जा सकता है इलाज
शोधकर्ताओं ने बताया कि ईईजी इमेजिंग के जरिये हमें न्यूरोडिजनेरेटिव मैकेनिज्म को समझने में आसानी होगी और आगे चलकर हम पार्किसंस तथा अल्जाइमर जैसे रोगों का इलाज भी ढूंढ़ सकते हैं। शोधकर्ता अब इसी तरह के और भी संवेदी अंगों से ग्राह्य सूचनाओं की प्रोसेसिंग के आधार पर स्वास्थ्य संबंधी और भी जोखिमों का पता लगाने को उत्सुक हैं।

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