अब वातावरण के अनुसार आकार बदल सकेगा रोबोट
अमेरिका के वैज्ञानिक कर रहे भविष्य के रोबोट पर काम वातावरण व रसायनों के प्रति होगा संवेदनशील, आकार होगा मानव कोशिका जितना
न्यूयॉर्क (प्रेट्र)। दुनियाभर के वैज्ञानिकों में रोबोटिक्स के क्षेत्र में आगे निकलने की होड़ मची हुई है। सभी ऐसा रोबोट तैयार करना चाहते हैं, जो मनुष्यों का काम ज्यादा से ज्यादा आसान करने में मदद कर सके। इसी कड़ी में अमेरिका के वैज्ञानिक एक कदम आगे बढ़ते हुए ऐसा रोबोट विकसित करने के करीब पहुंच गए हैं, जो वातावरण के अनुसार अपने आकार को बदलने में सक्षम होगा। सबसे अहम बात इसका आकार है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस रोबोट का आकार मानव कोशिका जितना होगा।
दरअसल, वैज्ञानिक इन दिनों ऐसे रोबोट पर काम कर रहे हैं, जिसमें विद्युत संचालन, वातावरण के प्रति संवेदनशीलता और आकार बदलने की काबलियत होगी। अमेरिका स्थित कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने रोबोट का ऐसा बाहरी कंकाल तैयार किया है, जो रसायन या वातावरण के तापमान के प्रति बेहद संवेदनशील
है और इनमें जरा सा परितर्वन होने पर तुरंत अपने आकार को बदल लेता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, ये सूक्ष्म मशीनें इलेक्ट्रॉनिक, फोटोनिक और रासायनिक पेलोड से सुसज्जित होंगी और आकार के आधार पर रोबोटिक्स के क्षेत्र में क्रांतिकारी साबित होंगी।
कॉर्नेल के कावी इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर पॉल मेक्इयून के मुताबिक, हम जिस चीज को तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं उसे आप इलेक्ट्रॉनिक के लिए कंकाल कह सकते हैं। इस अतिसूक्ष्म रोबोट में बाइमॉर्फ नाम की मोटर का प्रयोग किया गया है। बाइमॉर्फ ग्राफीन और ग्लास से मिलकर बनी है।
किसी गर्म स्थान, रासायनिक क्रिया या विद्युत प्रभावित कराने पर यह मुड़ जाती है। दो अलग पदार्थों की तापमान के लिए प्रतिक्रिया अलग-अलग होती है। ऐसे में ऊष्मा पहुंचने पर जब ग्राफीन और ग्लास अलगअलग प्रतिक्रिया देते हैं तो ये अपना आकार बदल लेता है। वहीं, पुराने तापमान में आने पर खुद को पुराने आकार में ले आता है।
हैं अनंत संभावनाएं
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस संकल्पना के आधार पर त्रिकोण, पिरामिड, घन आदि कई आकार के रोबोट तैयार किए जा सकते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, ये प्रयास जिस दिशा में चल रहा है उससे उम्मीद है कि जल्द ही हमें कामयाबी मिल जाएगी। यह अतिसूक्ष्म रोबोट भविष्य में कई कार्य करने में मनुष्यों की मदद करेंगे। इसकी संभावनाएं अनंत हैं। यह मानव शरीर में भी उन स्थानों पर आसानी से जा पाएगा, जहां पहुंचना आसान नहीं है।
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