जानें क्या है अमेरिका का Manhattan project और किनके कंधों पर है इसकी जिम्मेदारी
कोविड 19 का समाधान हासिल करने के लिए अमेरिका ने मैनहेटन प्रोजेक्ट शुरू किया है। ये सीधेतौर पर राष्ट्रपति की निगरानी में होगा और इसकी हर जानकारी सीधे उनतक पहुंचाई जाएगी।
वाशिंगटन। कोरोना वायरस के कहर के बीच पूरी दुनिया इसको खत्म करने के लिए कमर कसे हुए है। इस लड़ाई में हर देश अपनी तरह से योगदान दे रहा है। अमेरिका इस लड़ाई में पिछड़ने के बाद एक बड़ी योजना को अंजाम देने की कवायद शुरू कर चुका है। मौजूदा सरकार के लिए ये एक बड़ा प्रोजेक्ट है जिसको मैनहेटन प्रोजेक्ट नाम दिया गया है। ये एक सीक्रेट प्रोजेक्ट है। वाल स्ट्रीट जनरल की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रोजेक्ट से कुछ बड़े नाम जुड़े हैं जो अपने काम के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं।
इस प्रोजेक्ट को जाने मानें भौतिक विज्ञानी से वेंचर कैपटिलिस्ट बने टॉम कैहिल लीड करेंगे। डब्ल्यूएसजे की रिपोर्ट के मुताबिक कैहिल भीड़-भाड़ से दूर एक छोटे से घर में रहते हैं लेकिन उनके व्हाइट हाउस से सीधे संपर्क हैं। इस प्रोजेक्ट में उनका साथ देने के लिए कुछ दूसरे ऐसे वैज्ञानिक शामिल हैं जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एटम बम बनाने में मदद कर चुके हैं। आपको बता दें कि कैहिल पूरी दुनिया में दुर्लभ आनुवांशिक बीमारी पर शोध के लिए जाने जाते हैं।
मैनहेटन प्रोजेक्ट के तहत उनकी जिम्मेदारी कोविड-19 के खात्मे को लेकर सुझाव और रोड़मैप तैयार करने की है। आपको बता दें कि इस मिशन की निगरानी खुद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप करेंगे इसलिए इससे जुड़ी कोई भी जानकारी को सीधे अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस तक पहुंचाया जाएगा। इस पूरे प्रोजेक्ट में केवल वैज्ञानिक ही नहीं जुड़े हैं बल्कि ट्रंप ने इसमें अरबपतियों को भी जोड़ा है। मुमकिन है कि ये अरबपति इस प्रोजेक्टकी फंडिंग के लिए जोड़े गए हों लेकिन इसमें इनकी एक अहम भूमिका जरूर है।
अखबार की रिपोर्ट की मानें तो कोरोना को हराने में भले ही अब तक अमेरिका पीछे रह गया है लेकिन अब अमेरिका इस प्रोजेक्ट के जरिए अपनी छवि को पूरी तरह से बदलकर रख देगा। कहा जा सकता है कि अमेरिका अपने पुराने रूप में दोबारा वापस आने की तैयारी कर रहा है। इसलिए ही इस खास प्रोजेक्ट में ट्रंप ने परमाणु बम बनाने में मदद करने वाले वैज्ञानिकों से लेकर अबरपतियों को शामिल किया है।
इस प्रोजेक्ट का हिस्सा 2017 के नोबेल विजेता माइकल रासबैस भी हैं। ये वायरस से जुड़े हजारों शोध को खंगालेंगे और शोध कंपनियों और संस्थानों से समन्वय कर अहम जानकारी सरकार तक पहुंचाएंगे। इस मिशन में हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी समेत कुछ दूसरी यूनिवर्सिटी के बड़े के केमिकल बॉयोलॉजिस्ट, शरीर के प्रतिरोधी तंत्र, मस्तिष्क, कैंसर, विषाणु विशेषज्ञ शामिल हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और समूह के सदस्य स्टुअर्ट स्रेबर ने कहा कि हम नाकाम भी हो सकते हैं, लेकिन अगर सफल रहे तो दुनिया बदल देंगे। ये वैज्ञानिक दुनिया में अब तक सामने आई महामारी के बारे में दोबारा से चीजों को खंगालेंगे।
वरसानी एरिजोना यूनिवर्सिटी के बायोडिजाइन सेंटर फॉर फंडामेंटल एंड एप्लाइड माइक्रोबायोमिक्स में मॉलीक्यूलर विषाणु विज्ञानी हैं। वरसानी ने कई अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के साथ मिलकर विषाणुओं की 15 श्रेणी वाली नई वर्गीकरण पद्धति खोजी है। असमें कोरोना वायरस, इबोला, हर्पेस सिम्पेल्क्स को पहली घातक श्रेणी में रखा गया है। जिस तरह रसायन विज्ञान में तत्वों को उनके परमाणु क्रमांक और परमाणु भार के हिसाब से अलग-अलग जगह दी गई है, उसी तरह विषाणुओं की यह आवर्त सारणी काम करेगी। नेचर माइक्रोब्लॉग के जर्नल में यह शोध प्रकाशित हुआ।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।