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    स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन से ज्‍यादा संक्रामक बन जाता है कोरोना, जानें कितना गुना बढ़ जाता है खतरा

    By Krishna Bihari SinghEdited By:
    Updated: Thu, 18 Feb 2021 05:19 PM (IST)

    वैक्सीन आने के बावजूद कोरोना वायरस (कोविड-19) का कहर थम नहीं रहा है क्योंकि कोरोना में निरंतर हो रहे बदलावों से इस घातक वायरस से मुकाबले में नई चुनौती खड़ी हो रही है। अब एक नए अध्ययन में चौंकाने वाली बात सामने आई है।

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    स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन से कोरोना ज्‍यादा संक्रामक बन जाता है।

    न्‍यूयॉर्क, पीटीआइ। वैक्सीन आने के बावजूद कोरोना वायरस (कोविड-19) का कहर थम नहीं रहा है। क्योंकि कोरोना में निरंतर हो रहे बदलावों से इस घातक वायरस से मुकाबले में नई चुनौती खड़ी हो रही है। अब एक नए अध्ययन में चौंकाने वाली बात सामने आई है। इसका दावा है कि कोरोना के स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन यानी परिवर्तन से यह घातक वायरस मानव कोशिकाओं में आठ गुना ज्यादा तक संक्रामक बन जाता है। कोविड-19 का कारण बनने वाला सार्स कोव-2 वायरस स्पाइक प्रोटीन के जरिये ही मानव कोशिकाओं (सेल्स) में दाखिल होता है।

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    ईलाइफ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, नतीजों से डी614जी नामक म्यूटेशन की पुष्टि की गई है। इससे यह वायरस ज्यादा संक्रामक बन जाता है। कोरोना के उन तमाम नए वैरिएंट से जुड़े म्यूटेशंस में यह एक म्यूटेशन है। कोरोना के नए वैरिएंट ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देशों में मिले हैं। अमेरिका की न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर नेविल संजना ने कहा, 'इस बात की पुष्टि की जा रही है कि म्यूटेशन के चलते कोरोना ज्यादा संक्रामक बन जाता है। इससे यह समझने में मदद मिल सकती है कि यह वायरस पिछले साल कैसे इतनी तेज गति से फैल गया था।'

    शोधकर्ताओं का कहना है कि संभवत: वर्ष 2020 की शुरुआत में ही कोरोना के स्पाइक प्रोटीन में डी614जी म्यूटेशन उभर गया था और दुनियाभर में अब कोरोना का यह रूप सबसे ज्यादा हावी हो गया है। उन्होंने पाया कि मूल वायरस की तुलना में डी614जी म्यूटेशन के चलते कोरोना आठ गुना ज्यादा संक्रामक बन गया है। आने वाले समय में ज्यादा प्रभावी वैक्सीन बनाने में अध्ययन के नतीजे फायदेमंद साबित हो सकते हैं।

    बीते दिनों आई समाचार एजेंसी पीटीआइ की एक रिपोर्ट में भारतीय वैज्ञानिकों के हवाले से कहा गया था कि कोरोना के नए स्वरूप और इसमें हो रहे बदलावों को देखते हुए दूरगामी कदम उठाने की जरूरत है। वैक्‍सीन का शुरुआती संस्करण भले ही हमारे बीच आ गया है लेकिन वायरस के स्वरूप में बदलाव को देखते हुए भविष्य के लिहाज से भी टीके तैयार करने का काम जारी रखना होगा। एनआईआई के वैज्ञानिकों की मानें तो मौजूदा टीकाकरण अभियान से संक्रमण की रफ्तार कम जरूर हो जाएगी लेकिन वायरस में आ रहे बदलावों को देखते हुए नई वैक्‍सीन बनानी होंगी।  

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