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    साल में दो महीने भीषण गर्मी झेलने को रहें तैयार, इन देशों पर पड़ेगी सबसे ज्यादा मार 

    Updated: Thu, 16 Oct 2025 10:00 PM (IST)

    ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है, जिससे सदी के अंत तक दुनिया में हर साल दो महीने अधिक गर्मी पड़ेगी। छोटे देश सबसे अधिक प्रभावित होंगे। पेरिस समझौते से कुछ राहत मिली है, लेकिन कार्बन उत्सर्जन कम नहीं हुआ तो स्थिति और बिगड़ेगी। अध्ययन में पाया गया कि कुछ देशों में 149 दिन अधिक गर्मी पड़ेगी, जो विनाशकारी हो सकता है।

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    क्या बढ़ जाएंगे गर्मियों के दिन?

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन एवं इसके परिणामस्वरूप तेजी से हो रहे ग्लोबल वार्मिंग को लेकर अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञानियों के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि सदी के अंत तक विश्व में हर साल लगभग दो महीने बेहद खतरनाक गर्म दिन जुड़ने वाले हैं।

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    इसके कारण कार्बन प्रदूषण वाले बड़े देशों की तुलना में गरीब छोटे देश सबसे अधिक प्रभावित होंगे। हालांकि, पेरिस जलवायु समझौते के साथ 10 साल पहले शुरू हुए इन गैसों के उत्सर्जन को रोकने के प्रयासों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। वरन् इन प्रयासों के बिना पृथ्वी पर साल में 114 दिन और घातक अत्यधिक गर्म दिन होते।

    हीट वेव ने लोगों पर डाला कितना असर?

    मौसम विज्ञानियों के अंतरराष्ट्रीय समूह 'व‌र्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन' और अमेरिका स्थित 'क्लाइमेट सेंट्रल' ने अपने अध्ययन में यह पता लगाने का प्रयास किया कि कि इस ऐतिहासिक पेरिस समझौते ने जलवायु के सबसे बड़े प्रभावों में से एक हीट वेव (प्रचंड गर्मी) के संदर्भ में लोगों पर कितना असर डाला है। अध्ययन में यह पता लगाने का प्रयास किया गया है कि 2015 में 200 से अधिक देशों में कितने भीषण गर्म दिन देखने को मिले, पृथ्वी को अभी और कितने अति-गर्म दिन देखने मिलेंगे और भविष्य के लिए क्या अनुमान है।

    बढ़ जाएगी गर्मी के दिनों की संख्या

    क्लाइमेट सेंट्रल की विज्ञानी क्रिस्टीना डाहल ने कहा कि यदि देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने के अपने वादे पूरे करते हैं तो वर्ष 2100 तक दुनिया पूर्व-औद्योगिक समय से 2.6 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो सकती है। इससे पृथ्वी पर भीषण गर्मी के दिनों की संख्या बढ़कर 57 हो जाएगी।

    उन्होंने यह नहीं बताया कि इन अतिरिक्त प्रचंड गर्म दिनों से कितने लोग प्रभावित होंगे, लेकिन इस अध्ययन की सह-लेखिका एवं इंपीरियल कालेज लंदन की विज्ञानी फ्रेडरिक ओटो ने कहा कि ''यह निश्चित रूप से लाखों की संख्या में होगा, कम नहीं।''

    वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की जन स्वास्थ्य एवं मौसम विज्ञानी क्रिस्टी एबी ने कहा कि हाल की प्रचंड गर्मी से लाखों लोग जान गंवा चुके हैं। इनमें से ज्यादातर मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के कारण हैं।

    किन देशों पर होगा सबसे ज्यादा असर?

    अमेरिका, चीन एवं भारत में 23 से 30 अतिरिक्त अति-गर्म दिन का अनुमान जिन 10 देशों में भीषण गर्मी वाले दिनों में सबसे ज्यादा वृद्धि देखी जाएगी, वे लगभग सभी छोटे और समुद्र पर निर्भर हैं। इनमें सोलोमन द्वीप, समोआ, पनामा और इंडोनेशिया शामिल हैं।

    उदाहरण के लिए, पनामा में लोगों को 149 अतिरिक्त भीषण गर्मी के दिनों का सामना करना पड़ सकता है। यूं तो इन 10 देशों ने हवा में मौजूद ताप-अवरोधक गैसों का केवल एक प्रतिशत ही उत्पन्न किया, लेकिन उन्हें लगभग 13 प्रतिशत अतिरिक्त भीषण गर्मी वाले दिन झेलने पड़ेंगे। सबसे ज्यादा कार्बन प्रदूषण फैलाने वाले देशों - अमेरिका, चीन और भारत में केवल 23 से 30 अतिरिक्त अति-गर्म दिन आने का अनुमान है। ये देश हवा में 42 प्रतिशत कार्बन डाइआक्साइड के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन उनके हिस्से में लगभग एक प्रतिशत ही अतिरिक्त अति-गर्म दिन आ रहा है।

    पृथ्वी पर अरबों मनुष्यों के लिए विनाशकारी भविष्य का संकेत!

    विक्टोरिया यूनिवर्सिटी के जलवायु विज्ञानी एंड्रयू वीवर ने कहा, ''ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव उन विकासशील देशों पर असमान रूप से पड़ेंगे जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन महत्वपूर्ण मात्रा में नहीं किया है। ग्लोबल वार्मिंग संपन्न और निर्धन देशों के बीच एक और दरार पैदा कर रही है जो अंतत: और अधिक भू-राजनीतिक अस्थिरता के बीज बोएगी।''

    रिपोर्ट के अनुसार, हवाई और फ्लोरिडा अमेरिका के वे राज्य हैं जहां वर्तमान कार्बन प्रदूषण स्तर के मद्देनजर सदी के अंत तक भीषण गर्म दिनों में सबसे अधिक वृद्धि देखी जाएगी, जबकि इडाहो राज्य में सबसे कम वृद्धि देखी जाएगी। पाट्सडैम क्लाइमेट इंस्टीट्यूट के निदेशक जोहान राकस्ट्राम ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और कार्बन उत्सर्जन का मौजूदा ट्रेंड 'पृथ्वी पर अरबों मनुष्यों के लिए एक विनाशकारी भविष्य का संकेत' दे रहा है।

    (न्यूज एजेंसी एपी के इनपुट के साथ)

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