डिजिटल प्रणाली के साथ समावेशी विकास में नजीर बना भारत, बिल एंड मिलिंडा गेटस फांउडेशन के सीईओ मार्क सुजमैन से खास बातचीत
गोलकीपर अध्ययन रिपोर्ट पर बिल एंड मिलिंडा गेटस फांउडेशन के सीईओ मार्क सुजमैन ने दैनिक जागरण से विशेष इंटरव्यू में कहा कि कई देशों की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था कोविड के झटकों से बेहतर तरीके से उबर रही है।
संजय मिश्र, न्यूयार्क। संयुक्त राष्ट्र आमसभा सत्र से इतर सतत विकास लक्ष्यों के पटरी से उतरने के अध्ययनों के बीच कोविड समेत मौजूदा वैश्विक संकट के दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था के तेजी से उबरने पर दुनिया की बारीक नजरें हैं। एसडीजी लक्ष्यों पर केंद्रित गोलकीपर सम्मेलन के दौरान स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज ने अपने संबोधन के दौरान इसका एक संदर्भ में उल्लेख भी किया। वहीं इससे जुड़ी गोलकीपर अध्ययन रिपोर्ट पर बिल एंड मिलिंडा गेटस फांउडेशन के सीईओ मार्क सुजमैन ने दैनिक जागरण से विशेष इंटरव्यू में कहा कि कई देशों की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था कोविड के झटकों से बेहतर तरीके से उबर रही है। चुनौतियों के इस दौर में भी आधुनिक डिजिटल प्रणाली के जरिए भारत दुनिया में समावेशी विकास की नजीर बन रहा है। पेश है सुजमैन से बातचीत के प्रमुख अंश...
सवाल- संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 2030 के आफ ट्रैक होने की फाउंडेशन की ताजा गोलकीपर रिपोर्ट के बाद अब इन्हें आगे बढ़ने का मार्ग क्या है?
जवाब- कोविड महामारी, यूक्रेन व यमन के युद्ध वैश्विक खाद्य संकट के साथ जलवायु परिवर्तन से जुड़े प्रभावों ने सतत विकास लक्ष्यों के लगभग हर संकेतक को पटरी से उतार दिया है। लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद हम सभी वैश्विक साझेदार इसे वापस लाने में सक्षम हैं। इसके लिए विशेष रुप से बच्चों के टीकाकरण के साथ एचआईवी, टीबी और मलेरिया जैसे टीकाकरण को गति देनी होगी। संयुक्त राष्ट्र आमसभा के मौजूदा सत्र के दौरान गेटस फाउंडेशन का 1.27 अरब डालर का अनुदान इसी लक्ष्य पर केंद्रित है।
सवाल- कोविड से निपटते हुए कुछ देशों ने आर्थिक विकास लक्ष्यों को तेजी से संभाला है जिसमें भारत की भी चर्चा है, क्या भारत का कोई ऐसा प्रयोग है जो विश्व समुदाय के लिए मॉडल बन सकता है?
जवाब- भारत कोविड संकट से निपटने के अपने प्रयासों के लिए दुनिया में एक उदाहरण है। अब तक 200 करोड से अधिक कोविड टीकाकरण के साथ डिजिटल कोविन प्लेटफॉर्म वास्तव में अत्याधुनिक है जो अमेरिका से भी उन्नत है। दुनिया के तमाम देशों के लिए यह एक ऐसा मॉडल है कि जो बताता है कि डिजिटल बुनियादी ढांचे का नागरिक सेवाओं के लिए कितना बेहतर उपयोग संभव है। यूपीआई और आधार प्रणाली के जरिए भारत समावेशी विकास के क्षेत्रों में पहले से ही अग्रणी रहा है जिसमें करोड़ों लोगों विशेष रूप से महिलाओं को बैंक खातों और वित्तीय प्रणाली से जोड़ा गया था। कोविड संकट में इन प्रणालियों की अ²भुत भूमिका रही और इसलिए भारत कई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कोविड के झटकों से तेज और बेहतर तरीके से उबर रहा है। अगले साल भारत जी-20 की मेजबानी कर रहा है और उम्मीद है कि भारत अपने इन मॉडलों को इस महत्वपूर्ण मंच पर उदाहरण के रूप में पेश करेगा।
सवाल- आर्थिक प्रगति के बाद भी तमाम देशों में एक बड़ी आबादी इसका हिस्सेदार बनने से वंचित है, आखिर इन्हें इसका लाभ क्यों नहीं मिल रहा?
जवाब- ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां हस्तक्षेप और सच्ची वैश्विक एकजुटता की आवश्यकता है जिसमें अमीर देश भी शामिल हैं और जिनका दायित्व है विकासशील देशों का हाथ थामें। राष्ट्रपति बाइडन ने इस दिशा में एचआईवी, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए वैश्विक कोष में योगदान की घोषणा की है। यह ऐसी संस्था है जिसे वर्षों से भारत और कई अन्य देशों को व्यापक समर्थन दिया है। प्रगति की पहुंच लोगों तक हो इसमें खाद्य सुरक्षा और कृषि विकास की बेहद अहम भूमिका है। कृषि क्षेत्र में भारत का दीर्घकालिक निवेश महत्वपूर्ण है क्योंकि आर्थिक उत्पादकता और आत्मनिर्भरता के लिए यह कुंजी है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की चुनौतियों के बीच पंजाब में तेजी से बढ़ने वाले चावल को विकसित किया जाना ऐसा ही एक मॉडल है जिसे अफगानिस्तान, यमन से लेकर अफ्रीका के कई हिस्सों में भूख की चुनौती से निपटने में मदद मिल सकती है।
सवाल- समावेशी विकास के लिए महिलाओं पर भारत में हो रहे निवेश पर आपके फोकस की क्या कोई विशेष वजह है?
जवाब- वास्तव में महिलाओं पर निवेश कर उनके आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में भारत वैश्विक नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है। इसमें डिजिटल वित्तीय समावेशन का हमने व्यापक प्रभाव देखा है। महिला स्वयं सहायता समूह के जरिए विकास और सेवाओं की व्यापक पहुंच सशक्तिकरण के साथ उन्हें आर्थिक विकास का वास्तविक इंजन बना रही है। गेटस फाउंडेशन भारत में राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों में सरकार को इसकी पहुंच बढ़ाने में समर्थन दे रहा है। समावेशी विकास का यह एक ऐसा मॉडल है जो दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए नजीर बन सकता है। कोविड एप के जरिए टीकाकरण के त्वरित और बड़े अभियान, स्वयं सहायता समूहों के जरिए डिजिटल वित्तीय समावेशन और खाद्य सुरक्षा के तीन स्तरीय मिश्रण का यह भारतीय मॉडल हम दुनिया के कुछ को अन्य देशों में ले जा सकते हैं। वियतनाम ने भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में अच्छा काम किया है।
सवाल- दुनिया में अलग-अलग तरह के बढ़ते वैचारिक कट्टरवाद और संघर्ष एसडीजी लक्ष्यों में बाधा है तो आपके जैसे संगठन इनसे कैसे निपटेंगे?
जवाब- संयुक्त राष्ट्र समग्र लक्ष्यों पर इस आकलन से सहमत हूं मगर दुर्भाग्य से हम एक निजी परोपकारी संगठन हैं। हमारा मिशन और विश्वास है कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने का अधिकार का हकदार है। एसडीजी पर विश्व के प्रत्येक नेता ने 2015 में अपने नागरिकों की ओर से हस्ताक्षर किए थे और यह राष्ट्र की ओर से सभी नागरिकों को दिया गया वचन है जिसे निभाना उनका दायित्व है। गोलकीपर जैसे शिखर सम्मेलनों के जरिए हम इसमें सरकारों की मदद कर सकते हैं।