ट्रंप की अदावत से मशहूर हुए दो बड़े शहरों के मेयर ममदानी और सादिक, कितनी समानताएं?
डोनाल्ड ट्रम्प के विरोध के चलते गुलाम ममदानी और सादिक खान नामक दो मेयर प्रसिद्ध हुए। ममदानी ज़ाम्बिया में जन्मे और लंदन में पले-बढ़े, जबकि सादिक खान पाकिस्तानी मूल के हैं। ट्रम्प ने उनकी नीतियों का विरोध किया, जिससे उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली। दोनों मेयर शहरी विकास और समानता को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत हैं।

सादिक खान और जोहरान ममदानी। (रॉयटर्स)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जोहरान ममदानी न्यूयार्क के मेयर बनने के बाद खासे सुर्खियों में हैं। वह न्यूयार्क जैसे बड़े और प्रभावशाली शहर पर जीत हासिल करने वाले भारतीय मूल के पहले मुस्लिम नेता भी हैं।
ममदानी की जीत के बाद उनकी तुलना लंदन के मेयर पाकिस्तानी मूल के सादिक खान से की जा रही है। 2016 से ब्रिटेन की राजधानी के मेयर रहे सादिक खान ने ममदानी की जीत का स्वागत भी किया था। आइये ममदानी व सादिक के बीच समानताओं पर नजर डालते हैं।
ट्रंप के निशाने पर हैं दोनों
ट्रंप वर्षों से उनके सबसे कठोर आलोचकों में से एक रहे हैं। उन्होंने सादिक खान को बुरा और एक भयानक मेयर कहते हुए दावा किया था कि वो लंदन में शरिया या इस्लामी कानून लाना चाहते हैं। ममदानी को लेकर भी ट्रंप कुछ ऐसी ही राय रखते हैं। उन्होंने न्यूयार्क के लोगों से उन्हें वोट न देने की अपील की थी।
सादिक ने ब्राजील में वैश्विक महापौरों के शिखर सम्मेलन के दौरान बयान भी दिया था कि यह देखकर आश्चर्य नहीं होता कि ममदानी को भी उसी तरह का दुर्व्यवहार झेलना पड़ रहा है, जैसा उन्हें झेलना पड़ता है। कोवेंट्री यूनिवर्सिटी में अमेरिकी राजनीति के विशेषज्ञ डैरेन रीड ने कहा कि न्यूयार्क के मेयर के रूप में निश्चित रूप से उनके पास असीमित शक्ति नहीं है और ट्रंप के रूप में उनका एक बहुत शक्तिशाली दुश्मन उनके सामने खड़ा होने वाला है।
फलस्तीनी समर्थक रुख
ममदानी और खान दोनों अपने मुस्लिम धर्म के कारण अक्सर विरोधियों के निशाने पर रहते हैं। लगातार तीन चुनाव जीतने के बाद भी उन्हें दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों की आलोचना झेलनी पड़ती है, जो लंदन को अपराध से ग्रस्त एक अंधकारमय शहर बताते हैं। इजरायल-हमास युद्ध के दौरान अपने फलस्तीनी समर्थक रुख के लिए भी दोनों को विरोधियों की आलोचनाएं झेलनी पड़ी थी।
इसके बाद दोनों ने यहूदी समुदाय के साथ संबंध बनाने की कोशिश की। दोनों का कहना है कि उनके राजनीतिक विरोधी इस्लामोफोबिया से ग्रस्त हैं। ममदानी के रिपब्लिकन आलोचक अक्सर उन्हें जिहादी और हमास समर्थक कहते हैं।
दोनों की चुनौतियां भी एक जैसी
खान और ममदानी 80 लाख से ज्यादा की आबादी वाले विशाल शहरों का प्रशासन संभाल रहे हैं। इन शहरों की आबादी में काफी विविधता है। दोनों जगहों के मतदाताओं की चिंताएं अपराध और जीवन-यापन की बढ़ती लागत को लेकर एक जैसी हैं। ये बड़े मुद्दे हैं जिनसे निपटने के लिए कई महापौरों को संघर्ष करना पड़ता है।
लगातार तीन चुनाव जीतने के बाद भी सादिक लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाए हैं। ऐसी स्थिति ममदानी के समक्ष भी आ सकती है क्योंकि मेयर को ऊंचे किराये से लेकर हिंसक अपराध तक हर तरह की समस्याओं के लिए दोषी ठहराया जाता है, चाहे वे उनके नियंत्रण में हों या नहीं। हालांकि ममदानी ने किराये पर अंकुश लगाने को अपने अभियान का एक प्रमुख आधार बनाया था।
(समाचार एजेंसी एपी के इनपुट के साथ)

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