भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला दुनिया का पहला देश, पढ़ें कैसे
भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान चंद्रयान-2 के जरिये एक उपलब्धि हासिल करने की राह पर है। सोमवार को इसके परिणाम सामने आ जाएंगे।
नई दिल्ली [मुकुल व्यास]। सोमवार को भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एक बड़ी छलांग लगाने वाला है। भारत का शक्तिशाली भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण वाहन, जीएसएलवी-मार्क 3 चंद्रयान-2 को लेकर श्रीहरिकोटा से उड़ान भरेगा। यह यान अपने साथ एक लैंडर और एक रोवर भी ले जाएगा। लैंडर का नाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर ‘विक्रम’ रखा गया है।
रोवर एक छह पहियों वाली चंद्र गाड़ी है जिसका नाम ‘प्रज्ञान’ नाम रखा गया है। चंद्रयान-2 इसरो का बेहद महत्वाकांक्षी मिशन है। इससे पहले भारत ने अक्टूबर 2008 में चंद्रयान-1 को चंद्रमा पर 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर वृत्ताकार कक्षा में स्थापित किया था। इसरो के इतिहास में चंद्रयान-2 सबसे चुनौतीपूर्ण और तकनीकी दृष्टि से अत्यंत जटिल मिशन है, क्योंकि इसरो न सिर्फ मुख्य परिक्रमा-यान (ऑर्बिटर) को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित करेगा, बल्कि चंद्रमा की मिट्टी पर लैंडर को बहुत हल्के ढंग से उतारेगा।
रोवर से युक्त लैंडर ऑर्बिटर से अलग होने के बाद छह या सात सितंबर को धीरे-धीरे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। इस तरह चंद्रयान-2 को पृथ्वी से चंद्रमा की सतह तक 3.84 लाख किलोमीटर की दूरी तय करने में 53 से 54 दिन लगेंगे। सबसे खास बात यह है कि भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला दुनिया का पहला देश होगा।
अभी तक अमेरिका, रूस और चीन ने भी वहां यान उतारने की कोशिश नहीं की है। ऑर्बिटर से अलग होने के बाद लैंडर को चंद्रमा की सतह को छूने में 15 मिनट लगेंगे। लैंडर में लगे हुए सेंसर यान को चट्टानों और क्रेटरों से बचाते हुए सही जगह पर उतरने में मदद करेंगे। सतह पर उतरने के करीब साढ़े चार घंटे बाद लैंडर से रोवर बाहर निकल कर चंद्रमा की सतह पर प्रयोग शुरू कर देगी। चंद्रयान-2 मिशन के ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर में कुल 14 उपकरण हैं जो चंद्रमा की तस्वीरें खींचेंगे तथा खनिजों, हीलियम गैस और भूमिगत बर्फ की तलाश करेंगे। लैंडर और रोवर को बेंगलुरु स्थित लूनर टेरेन टेस्ट फेसिलिटी में चंद्रमा जैसी सतह पर भली-भांति परखा जा चुका है। यहां चंद्रमा जैसी सतह के निर्माण के लिए तमिलनाडु के सलेम से लाई गई एक खास प्रकार की मिट्टी का प्रयोग किया गया है।
पहले अमेरिका से चंद्रमा जैसी मिट्टी मंगाने पर विचार किया गया था जिसका मूल्य 150 डॉलर प्रति किलो था। इसके लिए 60 -70 टन मिट्टी की जरूरत थी। इसरो ने महंगी मिट्टी आयात करने के बजाय स्थानीय समाधान खोजना ही बेहतर समझा। इसरो के अध्यक्ष के. शिवन का कहना है कि ऑर्बिटर से अलग होने के बाद लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग में 15 मिनट का सबसे अहम हिस्सा होगा। ये बहुत डरावने क्षण होंगे।
लैंडर के नीचे उतरते हुए रफ्तार को नियंत्रित करने वाले इंजन इसरो की एक बड़ी तकनीकी सफलता है। उन्होंने कहा कि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव एक ऐसा स्थान है जहां अभी तक कोई नहीं पहुंचा है। ऐसे में भारतीय मिशन से नई वैज्ञानिक जानकारियों की उम्मीद की जा सकती है। चंद्रयान-2 मिशन को साकार करने में दो महिला वैज्ञानिकों का भी अहम योगदान है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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