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    ग्रीनलैंड की कहानी: ट्रंप क्यों चाहते हैं अपना नियंत्रण? 1951 का समझौता, सुरक्षा गारंटी और आजादी की लड़ाई

    Updated: Tue, 23 Dec 2025 11:19 PM (IST)

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी बताया है। डेनमार्क और ग्रीनलैंड ने इस पर आपत्ति जताई है। ग्रीनलैंड की ...और पढ़ें

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    ग्रीनलैंड पर ट्रंप क्यों चाहते हैं अपना नियंत्रण?

    स्मार्ट व्यू- पूरी खबर, कम शब्दों में

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को एक बार फिर दोहराया है कि अमेरिका को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ग्रीनलैंड की जरूरत है और हाल में नियुक्त किए गए विशेष दूत इसके लिए काम करेंगे। हालांकि ट्रंप के इस बयान की डेनमार्क और ग्रीनलैंड ने तीखी आलोचना की है। आइए जानते हैं कि ट्रंप ग्रीनलैंड को अपने नियंत्रण में क्यों लाना चाहते हैं?

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    रणनीतिक स्थिति का फायदा ग्रीनलैंड की रणनीतिक स्थिति और संसाधन अमेरिका के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। यह यूरोप से उत्तरी अमेरिका तक जाने वाले सबसे छोटे रास्ते पर स्थित है, जो अमेरिका के बैलिस्टिक मिसाइल चेतावनी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।

    अमेरिका ने इस आर्कटिक द्वीप पर अपनी सैन्य उपस्थिति को बढ़ाने में दिलचस्पी दिखाई है। अमेरिका इस इलाके में रडार भी लगाना चाहता है क्योंकि रूसी नौसेना के जहाज और परमाणु पनडुब्बियां भी इस क्षेत्र से गुजरती हैं।

    ट्रंप ने ग्रीनलैंड को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बताया जरूरी

    आर्कटिक में बढ़ रही हैं सैन्य गतिविधियां शिपिंग आंकड़े बताते हैं कि चीन के ज्यादातर मालवाहक जहाज पैसिफिक आर्कटिक और रूस के नजदीक नार्दर्न सी रूट से होकर गुजरते हैं। आर्कटिक में ज्यादातर रूसी मालवाहक जहाज रूस के अपने तट के आसपास से होकर जाते हैं, हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि रूसी पनडुब्बियां अक्सर ग्रीनलैंड, आइसलैंड और ब्रिटेन के बीच के पानी में सफर करती हैं।

    मोटे तौर पर यह साफ नजर आ रहा है नाटो के सदस्य देश आर्कटिक में अपनी सैन्य तैनाती बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा चीन और रूस की गतिविधियां भी यहां बढ़ रही हैं।

    ग्रीनलैंड की राजधानी नूक डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन की तुलना में न्यूयार्क से ज्यादा नजदीक है। यहां खनिज, तेल और प्राकृतिक गैस के भंडार हैं लेकिन विकास की गतिविधियां बहुत सुस्त रही हैं। यहां खनन में अमेरिका का निवेश बहुत कम है।

    ग्रीनलैंड में है अमेरिका सैन्य अड्डा

    अमेरिका की सेना ग्रीनलैंड के उत्तर-पश्चिम में पिटुफिक एयर बेस पर स्थायी रूप से मौजूद है। 1951 में हुए एक समझौते ने अमेरिका को ग्रीनलैंड में सैन्य अड्डा बनाने का अधिकार दिया था। इसके साथ यह शर्त रखी गई थी कि डेनमार्क और ग्रीनलैंड को इसकी जानकारी देनी होगी।

    कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के सेंटर फार मिलिट्री स्टडीज के सीनियर रिसर्चर क्रिस्टियन सोएबी क्रिस्टेंसन के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से डेनमार्क ने अमेरिका की सैन्य मौजूदगी इसलिए स्वीकार की है क्योंकि उसके पास ग्रीनलैंड की रक्षा करने की क्षमता नहीं है और नाटो के जरिये डेनमार्क को अमेरिका की सुरक्षा गारंटी मिली हुई है।

    स्वायत्त क्षेत्र है ग्रीनलैंड

    ग्रीनलैंड पहले डेनमार्क का उपनिवेश था। 1953 में यह उसका औपचारिक क्षेत्र बन गया और डेनमार्क के संविधान के अधीन है। 2009 में इस द्वीप को स्वायत्तता दी गई, जिसमें जनमत संग्रह के माध्यम से डेनमार्क से स्वतंत्रता घोषित करने का अधिकार भी शामिल था।

    2009 के कानून के तहत, ग्रीनलैंड की संसद एक प्रविधान लागू कर सकती है जिसके तहत डेनमार्क और ग्रीनलैंड पूर्ण स्वतंत्रता के बारे में बातचीत शुरू करेंगे। ग्रीनलैंड के लोगों को जनमत संग्रह में स्वतंत्रता का समर्थन करना होगा और डेनमार्क और ग्रीनलैंड के बीच स्वतंत्रता समझौते के लिए डेनिश संसद की सहमति भी आवश्यक होगी।

    स्वतंत्रता के पक्ष में हैं ज्यादातर निवासी

    उपनिवेश शासन के दौरान ग्रीनलैंड के निवासियों के साथ दु‌र्व्यवहार की बात सामने आने के बाद डेनमार्क और ग्रीनलैंड के संबंधों में तनाव आ गया था। हालांकि द्वीप को लेकर ट्रंप की दिलचस्पी को देखते हुए डेनमार्क ने ग्रीनलैंड के साथ संबंध सुधारने की पहल की है।

    सर्वे बताते हैं कि ग्रीनलैंड के ज्यादातर नागरिक स्वतंत्रता के पक्ष में हैं लेकिन बहुत से लोग इसके लिए किसी तरह की जल्दबाजी नहीं चाहते हैं। उनको लगता है कि यदि वे डेनमार्क से तुरंत आजादी मांगते हैं तो स्थिति खराब हो सकती है और ग्रीनलैंड सीधे अमेरिका के निशाने पर आ सकता है।

    ग्रीनलैंड के निवासियों की संख्या करीब 57,000 है। अमेरिका के साथ जुड़ सकता है ग्रीनलैंड अगर ग्रीनलैंड स्वतंत्र हो जाता है तो वह अमेरिका का हिस्सा बने बिना उसके साथ जुड़ सकता है।

    द्वीप अमेरिका के साथ जुड़कर सैन्य अधिकारों के बदले में सब्सिडी और सुरक्षा हासिल कर सकता है। मार्शल आइसलैंड, माइक्रोनेशिया और पलाऊ इसी तरह की व्यवस्था के साथ अमेरिका से जुड़े हैं।