जानें- किम जोंग और ट्रंप के मिलन की प्रमुख वजह, ड्रैगन से सहमा अमेरिका
परमाणु संपन्न उत्तर कोरिया और चीन की घनिष्ठता से एशिया क्षेत्र का सामरिक समीकरण तेजी से बदल रहा है। अमेरिका की सारी चिंता इसी तानेबाने को लेकर है।
वाशिंगटन [ एजेंसी ]। उत्तर कोरिया के प्रति अमेरिकी दिलचस्पी अनायास नहीं है। दोनों देशों के बीच इस डील में उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार छोड़ने के एवज में अमेरिकी मदद के पीछे उसका निशाना कहीं और भी है। अमेरिका की चिंता उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम से ज्यादा चीन से है। दरअसल, परमाणु संपन्न उत्तर कोरिया और चीन की घनिष्ठता से एशिया क्षेत्र का सामरिक समीकरण तेजी से बदल रहा है। अमेरिका की सारी चिंता इसी तानेबाने को लेकर है। आखिर क्या है अमेरिका की बड़ी चिंता। कैसे बिगड़ रहा है यहां का सामरिक संतुलन। उत्तर कोरिया किम जोंग उन और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच वार्ता के क्या है निहितार्थ।
उत्तर कोरिया पर चीन के गहरे प्रभाव चिंतित अमेरिका
चीन लंबे समय से उत्तर कोरिया पर अपना प्रभाव रखता रहा है। परमाणु संपन्न उत्तर कोरिया की चीन पर लगातार निर्भरता बढ़ रही है। दरअसल, उत्तर कोरिया के गिने-चुने मित्र राष्ट्रों में चीन शामिल रहा है। लेकिन चीन जिस तरह से एशियाई मुल्कों में अपना तानाबाना बुन रहा है, उससे इस क्षेत्र में अमेरिकी आर्थिक और सामरिक हित प्रभावित हो रहे हैं। इसके चलते अमेरिका ने अपनी कोरिया कूटनीति में बदलाव किया है। इसके साथ अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों को खत्म करने का आश्वासन लेकर दक्षिण कोरिया आैर जापान की चिंताओं को कम किया है।
इसके बदले में उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार जापान और दक्षिण कोरिया के लिए सदैव खतरा रहे हैं। इस चिंता से अमेरिका वाकिफ है। ऐसे में अमेरिका अपनी इस डील से अपने सहयोगी मुल्कों को भी चिंता मुक्त करने का प्रयास किया था। हालांकि, उत्तर कोरिया और अमेरिकी डील में यह साफ नहीं हो सका था कि वह किस रेंज की मिसाइट को खत्म करेगा। परमाणु हथियार खत्म करने के एवज में अमेरिका ने अार्थिक मदद का भरोसा दिलाया है। इस मदद के पीछे अमेरिकी मंशा यह है कि वह उत्तर कोरिया की चीन के प्रति निर्भरता कम होगी।
चीनी प्रभुत्व को कम करने के लिए भारत के निकट आया अमेरिका
अरब सागर और हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव के चलते अमेरिका की निकटता भारत से बढ़ी है। यही वजह है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रणनीतिक साझीदारी प्रगाढ़ हुई है। अमेरिका, चीन की वन बेल्ट, वन रोड परियोजना चिंता का विषय है। इसलिए ट्रंप प्रशासन का कहना है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की रणनीति के लिहाज से भारत अहम है। अमेरिका का भारत के साथ संभावित मिसाइल रक्षा सहयोग इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। चीन की वन बेल्ट, वन रोड परियोजना से दक्षिण एशिया का सामरिक संतुलन गड़बड़ हुआ है। इसी के मद्देनजर अमेरिकी रणनीति में बदलाव आया है।
पेंटागन का दावा है कि आक्रामक मिसाइल क्षमताओं से पैदा होने वाले खतरे अब दुनिया के कुछ भाग तक सीमित नहीं रह गए हैं। दक्षिण एशिया में अब ऐसे कई देश हैं, जो उन्नत बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलें विकसित कर रहे हैं। इसके मद्देनजर अमेरिका ने भारत के साथ संभावित मिसाइल रक्षा सहयोग पर बातचीत की है। अमेरिका का दावा है कि भारत बड़ा रक्षा साझीदार और हमारी हिंद-प्रशांत रणनीति का अहम हिस्सा है। रिपोर्ट में रूस और चीन के मिसाइल विकास कार्यक्रमों का भी जिक्र किया गया है। इनकी पहचान अमेरिका के लिए बड़े खतरे के तौर पर की गई है।
उत्तर कोरिया बनाम अमेरिका
यहां एक सवाल यह भी उठता है कि अाखिर दुनिया के इस तकातवर मुल्क के राष्ट्राध्यक्ष को आखिर किम जोंग से मिलने की जरूरत क्यों पड़ी। आइए जानते हैं दोनों मुल्कों की तुलनात्मक हैसियत और शक्तियां क्या है।
- उत्तर कोरिया में प्रति व्यक्ति आय एक हजार 700 डॉलर है, अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय 60 हजार डॉलर है।
- अमेरिका के पास परमाणु हथियारों की तादाद 6550 है, उधर उत्तर कोरिया में केवल 15 परमाणु हथियार हैं।
- किम जोंग ढाई करोड़ लोगों के नेता हैं, जबकि डोनाल्ड ट्रंप लगभग 33 करोड़ अमेरिकियों की नुमाइंदगी करते हैं।
- कोरिया के पास लगभग 13 लाख सैनिक हैं, मतलब हर बीसवां नागरिक सेना में है। 32 करोड़ की आबादी वाले अमेरिका में साढ़े तेरह लाख सैनिक हैं मतलब 237 लोगों पर एक।
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