'जंग चाहते हो तो हम तैयार', China की America को दो टूक, परमाणु बम से पैदल सेना तक कौन कितना ताकतवर?
चीन और अमेरिका में तनातनी बढ़ गई है। इसकी स्क्रिप्ट ट्रंप ने तभी लिख दी थी जब राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से पहले उन्होंने शी चिनफिंग को फोन लगाया था। अब दोनों देशों ने एकदूसरे को जंग की चेतावनी दी है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि कौन किस पर कितना भारी पड़ता है। हथियारें के जखीरे से पैदल सैनिक तक किसके पास कितनी ताकत है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप रोज अपने नए नए बयानों से पूरी दुनिया में चर्चा में बने हुए हैं। हमास को धमकी, जेलेंस्की को सैन्य मदद रोकना, चीन पर 10 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाने का एलान करना, ऐसे बयानों से पूरी दुनिया हैरान है। चीन पर टैरिफ बढ़ाने के एलान और दबाव बनाने के बाद चीन की ओर से भी पलटवार हुआ है।
चीन ने अमेरिका से दो टूक कह दिया है कि यदि अमेरिका जंग चाहता है तो यही सही। हम युद्ध के लिए तैयार हैं। चाहे वह टैरिफ की जंग हो या असल जंग। रूस यूक्रेन, इजरायल हमास जंग के बाद यदि चीन और अमेरिका के बीच जंग हो जाए तो तीसरे युद्ध की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। यदि दोनों देशों में जंग हो जाए, तो कौन किस पर भारी पड़ेगा। किसके पास कितनी ताकतवर सेना और हथियार हैं।
चीन और अमेरिका ने कैसे एक दूसरे को दी जंग की चेतावनी?
इससे पहले कि हम दोनों देशों में जंग के लिए आवश्यक हथियार और मिसाइलों व परमाणु बमों के जखीरे की तुलना करें, पहले जान लेते हैं कि अमेरिका के टैरिफ लगाने की धमकी के बाद चीन की ओर से क्या कहा गया?
चीनी दूतावास ने अमेरिका में कहा 'अमेरिका यदि चीन से युद्ध चाहता है तो यही सही, फिर चाहे वह कारोबारी जंग हो या दूसरी यानी असल जंग। हम हर जंग में आखिरी तक लड़ने से पीछे नहीं हटेंगे।'
अमेरिका में चीन के दूतावास ने बुधवार को बयान जारी कर कहा
अगर अमेरिका जंग ही चाहता है तो जंग ही सही, फिर चाहे ट्रेड वॉर हो या फिर किसी दूसरे तरह की जंग। हम आखिर तक लड़ने के लिए तैयार हैं। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिना जेयान ने अपने जवाब में कहा
'चीन अमेरिका की किसी धमकी से डरने वाला नहीं। हम कोई कोई दबाव डाले या धौंस जमाए, उससे हमें फर्क नहीं पड़ता। अमेरिका दबाव, धमकी देकर ये समझे कि चीन से निपटने का यह सही तरीका है, तो अमेरिका गलत है।'
पिछले वर्ष अक्टूबर में भी चीनी प्रेसिडेंट शी चिनफिंग ने ताइवान के चारों ओर सैन्य ड्रिल के दौरान पीएलए यानी चीनी आर्मी को युद्ध के लिए तैयार रहने की ताकीद दी थी।
अमेरिका ने चीन को दी ये चेतावनी
अमेरिकी रक्षामंत्री पीट हैगसेट ने चीन को चेतावनी भरे लहजे में कहा
जो शांति चाहते हैं उन्हें युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए। हम जंग के लिए तैयार हैं। यही कारण है कि अमेरिका अपनी सेना को और ताकतवर बना रहा है।
तीसरे विश्व युद्ध की आहट?
चीन की ओर से इस आक्रामक बयान के बाद एक बार फिर यह आशंका सताने लगी है कि ट्रंप की आक्रामकता से कहीं चीन और अमेरिका में जंग न हो जाए। ऐसा हुआ तो दुनिया विश्व युद्ध की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। हाल ही में ट्रंप ने जेलेंस्की से बहस में साफ कहा था कि यूक्रेन दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की ओर धकेल रहा है।
चीन और अमेरिका अपनी सेना को कैसे बना रहे स्ट्रॉन्ग?
बदलती वैश्विक परिस्थितियों में अमेरिका और चीन दोनों ने अपनी सेनाओं पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू कर दिया है। खासकर चीन को आने वाले संभावित जंग के खतरे की आहट दिखने लगी है। ऐसे में चीन ने अपना रक्षा बजट भी बढ़ा दिया है। वैसे अमेरिका के मुकाबले चीन का रक्षा बजट अभी भी बहुत कम है।
कितना है चीन का रक्षा बजट?
- विशेषज्ञ कहते हैं कि चीन अपने रक्षा बजट के बारे में दुनिया को ज्यादा जानकारी नहीं देता है। फिर भी आज चीन का रक्षा बजट 245 अरब अमेरिकी डॉलर है। अमेरिका के बाद चीन रक्षा पर खर्च करने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है।
- स्वीडन के स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की मानें तो चीन अपनी आर्मी पर सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP का 1.6 प्रतिशत खर्च करता है। रूस और यूएस की तुलना में यह बहुत कम है।
अमेरिका का कितना है रक्षा बजट?
अमेरिका का रक्षा बजट चीन के मुकाबले कहीं ज्यादा है। अमेरिका का डिफेंस बजट 886 अरब अमेरिकी डॉलर है। यह अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP का तीन फीसदी है। इससे यह भी पता लगता है कि अमेरिका की इकोनॉमी चीन से कितनी ज्यादा मजबूत है।
चीन ने बनाया वर्ल्ड क्लास मिलिट्री बनाने का लक्ष्य
- चीन की सेना पीएलए के बारे में यह कहा जाता है कि वह कमजोर सेना है। आज युद्ध हो जाए तो लड़ने तक के लिए वह पूरी तरह तैयार नहीं है वहीं अमेरिका की पैदल सेना अत्याधुनिक उपकरणों से लैस है।
- साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार, चीन ने अपनी पैदल सेना के आधुनिकीकरण पर अब गंभीरता से ध्यान देना शुरू कर दिया है। चीन ने 2050 तक वर्ल्ड क्लास मिलिट्री बनाने का लक्ष्य रखा है।
अमेरिका और चीन: किसके पास कितने न्यूक्लियर बम?
अमेरिका के पास 5428 परमाणु बमों का जखीरा है। इसके मुकाबले चीन के पास सिर्फ 360 परमाणु बम हैं। इससे पता चलता है कि चीन परमाणु बमों के मामले में अमेरिका के सामने कहीं नहीं ठहरता।
अमेरिका की कितनी बड़ी है फोर्स?
ग्लोबल फायर पावर के मुताबिक, 2025 की मिलिट्री रैंकिंग आई है, इसमें अमेरिका अव्वल नंबर पर है। अमेरिकी नौसेना भी दुनिया में काफी दमखम रखती है। अमेरिकी एयरफोर्स की बात करें तो पैदल आर्मी यानी थल सैनिकों की संख्या 14 लाख है। नैवी में 6.67 लाख सैनिक हैं।
चीन की कितनी बड़ी है फोर्स?
2025 की मिलिट्री रैंकिंग में चीन तीसरे नंबर पर है। चीनी पैदल सेना यानी पीएलए में 25.45 लाख थल सैनिक हैं। हालांकि पीएलए उतनी पेशेवर नहीं हैं। जंग के लिए भी उतनी अत्याधुनिक उपकरणों से लैस नही हैं। चीन थल सैनिकों की संख्या भी समय समय पर कम करता रहता है।
चीन ने हाल के दशक में समंदर की आर्मी यानी नौसेना में उल्लेखनीय वृद्धि की है। चीनी नैवी में 3.80 लाख सैनिक हैं। वहीं वायु सेना में 4 लाख जवान हैं।
जंग को लेकर क्या बन रहे समीकरण?
विदेश मामलों के जानकार रहीस सिंह ने बताया
अमेरिका और चीन में सीधी जंग फिलहाल तो नहीं होगी। लेकिन चीन नए अलायंस बना सकता है। कोई भी राष्ट्र अकेले जंग नहीं लड़ता है। रूस और यूक्रेन जंग में देख लें, यूरोप और अमेरिका के लिए यूक्रेन 'खेल का मैदान' बन गया।
ताइवान के बहाने चीन और अमेरिका में जंग या टकराव हो सकता है। चीन चूंकि तेजी से महाशक्ति के रूप में उभर रहा है, ऐसे में अमेरिका की धमकी पर चीन भी अपनी साख बचाने के लिए आक्रामक जवाब दे रहा है।
अमेरिका और चीन खेल रहे 'टॉम एंड जेरी' का खेल
- अमेरिका ने चीन पर टैरिफ लगाया तो चीन ने भी पलटवार कर दिया। असल में वर्तमान जंग कारोबार की ही है। विदेश मामलों के जानकारी रहीस सिंह बताते हैं कि टैरिफ में बराबर का टकराव दोनों ओर से रहेगा। क्योंकि चीन ने अमेरिका का अब तक बहुत फायदा उठाया है। अमेरिका नहीं चाहता चीन अब फायदा उठाए। ये बाजार की लड़ाई है। ये रिवर्स 1990 है।
- बड़ी इकोनॉमी को 2008 की वैश्विक मंदी के जो झटके लगना शुरू हुए थे, वो अभी कम नहीं हुए हैं। अमेरिका जानता है कि पॉवर में बने रहने के लिए इकोनॉमी स्ट्रॉन्ग बनाए रखना जरूरी है।
- तीसरी बात, जेलेंस्की और ट्रंप में बहस के बाद यूरोप और अमेरिका के बीच कारोबारी समीकरण बदल रहे हैं। ऐसे में चीन कहीं न कहीं से अपना बाजार तलाशेगा। वह यूरोपीय देशों के साथ अलायंस बना सकता है। ट्रांस पैसिफिक में भी चीन अपनी एक्टिविटी बढ़ा रहा है।
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