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    स्पाइडर सिल्क बनाने वाला बैक्टीरिया किया विकसित

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Thu, 23 Aug 2018 10:49 AM (IST)

    वैज्ञानिकों ने एक ऐसे बैक्टीरिया की खोज की है, जिसकी मदद से बायोसिंथेटिक स्पाइडर सिल्क (मकड़ी का रेशम) का उत्पादन किया जा सकेगा। ...और पढ़ें

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    स्पाइडर सिल्क बनाने वाला बैक्टीरिया किया विकसित

    वाशिंगटन [प्रेट्र]। वैज्ञानिकों ने एक ऐसे बैक्टीरिया की खोज की है, जिसकी मदद से बायोसिंथेटिक स्पाइडर सिल्क (मकड़ी का रेशम) का उत्पादन किया जा सकेगा। इसके अधिकतर लक्षण प्राकृतिक रूप से मिलने वाले स्पाइडर सिल्क की तरह ही हैं, ऐसे में इसका उपयोग सर्जरी के लिए उपयोगी बहुत महीन संरचनाएं और मजबूत कपड़े बनाने में किया जा सकेगा।

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    बता दें कि मकड़ी अपने शरीर से प्रोटीन फाइबर के जरिए रेशम का निर्माण करती है। इसका उपयोग वह अपने रहने के लिए जाल और उड़ने व चलने आदि क्रियाओं में करती है। मकड़ी से निकलने वाला रेशम प्रकृति में सबसे मजबूत माना जाता है लेकिन मकड़ी के निवास स्थान निर्जन और एकांत जगह पर होने के कारण इसका बहुत बड़ी मात्रा में उत्पादन संभव नहीं है।

    वैज्ञानिकों का यहां तक कहना है कि ये स्टील और बुलेटप्रूफ पदार्थ से भी अधिक मजबूत है। इसकी यही खूबी इसे बहुउपयोगी बनाती है। जनरल बायोमैक्रोमॉलीक्यूल्स में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि स्पाइड सिल्क की मजबूती उसके अणु भार से संबंधित है। जितना ज्यादा अणुभार होगा उतना ही मजबूत सिल्क होगा।

    नए सिंथेटिक सिल्क में ये पुराने के मुकाबले दोगुना है। अमेरिका में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर फुजोंग जांग का कहना है कि लोगों के स्पाइडर सिल्क और अणु भार के संबंधों के बारे में जानकारी है लेकिन केवल छोटे आकार के रेशम के लिए। हमने शोध में यह पाया है कि ये बड़े आकार के लिए सही है।

    ऐसे किया विकसित

    शोधकर्ताओं का कहना है कि बायोसिंथेटिक स्पाइडर सिल्क बनाने में सबसे बड़ी चुनौती प्रोटीन को बड़ी मात्रा में इकट्ठा करना रहा। जांग की लैब शोध छात्र क्रिस्टोफर बोवेन ने बताया कि इसके लिए जेनेटिक पुनरावृत्ति क्रम का प्रयोग किया गया। इस डीएनए को उसी मकड़ी के डीएनए जैसा बनाया गया जो सिल्क प्रोटीन का निर्माण करती है। इसी मॉडल की बार-बार पुनरावृत्ति से मजबूत पदार्थ प्राप्त किया गया।

    हालांकि एक निश्चित आकार पर पहुंचने के बाद बैक्टीरिया इसे संभाल नहीं पाता और छोटेछोटे टुकड़ों में विभाजित कर देता है। इस बाधा को पार करने के लिए शोधकर्ताओं ने छोटा क्रम अपनाया जो रायायनिक क्रिया के जरिए दो प्रोटीन को आपस में मिला देता था। इस प्रकार वैज्ञानिकों ने अब तक खोजे गए सिल्क से भी मजबूत सिल्क बनाने में सफलता हासिल की।

    बोवेन का कहना है कि उन्होंने अब तक बने प्रोटीन से दोगुना बड़े प्रोटीन का निर्माण किया है। इसके जरिए बना सिल्क मनुष्य के बाल से दस गुना छोटे आकार वाला है। यह प्राकृतिक सिल्क के सभी भौतिक और यांत्रिक मानकों को पूरा करता है।