पश्चिम बंगाल: वित्तीय मामलों में विश्वविद्यालयों को राज्यपाल से लेनी होगी सहमति
पश्चिम बंगाल में हाल ही में जारी की गई अधिसूचना के अनुसार राज्य के विश्वविद्यालयों को किसी भी वित्तीय मामले में राजभवन की सहमति लेनी होगी। कुलपतियों को विश्वविद्यालयों के समग्र कामकाज पर साप्ताहिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भी कहा गया है।

कोलकाता, जागरण डिजिटल डेस्क। पश्चिम बंगाल में राज्यपाल सीवी आनंद बोस के आगमन के बाद से ऐसे संकेत मिल रहे थे कि लंबे समय से चल रहे राज्य सचिवालय का टकराव खत्म होता दिख रहा था। लेकिन अब फिर इस टकराव को लेकर संशय के बादल मंडराने लगे हैं।
हाल ही में जारी की गई अधिसूचना के अनुसार राज्य के विश्वविद्यालयों को किसी भी वित्तीय मामले में राजभवन की सहमति लेनी होगी। कुलपतियों को विश्वविद्यालयों के समग्र कामकाज पर साप्ताहिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भी कहा गया है।
दरअसल अब तक अपनाई गई प्रणाली के अनुसार, आमतौर पर राज्य के विश्वविद्यालय राज्य शिक्षा विभाग के माध्यम से नियुक्ति-संबंधी या वित्तीय मामलों जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं और बाद में राज्यपाल की सहमति के लिए मामले को भेजते हैं।
नए राज्यपाल से राज्य का टकराव शुरू?
हालांकि, गुरुवार की शाम को जारी किए गए अधिसूचना में यह स्पष्ट किया गया है कि वित्तीय निर्णय जैसे महत्वपूर्ण मामलों में राज्य के विश्वविद्यालयों को राजभवन की सहमति लेनी होगी। प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक, उच्च शिक्षा विभाग ने इस संबंध में कानूनी सलाह लेना शुरू कर दिया है। वहीं विभिन्न खेमों का सवाल है कि तो क्या धनखड़ जैसे अब नए राज्यपाल से राज्य का टकराव शुरू होने वाला है?
वहीं इस फैसले का स्वागत करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि अधिसूचना राज्य के शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार के कई मामलों के बीच सही कदम है। हालांकि, तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सौगत राय ने कहा कि यह खुशी की बात है कि राज्यपाल शिक्षा के मामलों में रुचि ले रहे हैं, लेकिन यह बेहतर होगा कि वह इस मामले में राज्य शिक्षा विभाग के साथ समन्वय बनाए रखें।
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