जिंदगी के लिए चलते रोज मौत की राह, सैकड़ों लोग घुसकर करते हैं बंद दामागोड़िया कोयला खदान में अवैध खनन
पेट के लिए दो जून की रोटी तो हर इंसान को चाहिए। यह नहीं मिलेगी तो सांस ही थम जाएगी साहब। कोई रोजगार तो है नहीं इसलिए कोयला चोरी करते हैं। इस काम में जान का खतरा है मगर क्या करें हमें और कुछ सूझता भी तो नहीं।

आसनसोल,अजय झा: पेट के लिए दो जून की रोटी तो हर इंसान को चाहिए। यह नहीं मिलेगी तो सांस ही थम जाएगी साहब। कोई रोजगार तो है नहीं, इसलिए कोयला चोरी करते हैं। इस काम में जान का खतरा है, मगर क्या करें, हमें और कुछ सूझता भी तो नहीं।
रविवार को दामागोड़िया बंद खदान में चाल धंसने की घटना के बाद भी कोयले की बोरी लेकर जा रहे एक युवक का यही कहना था। उसने बताया कि एक साइकिल कोयले के 800 रुपये तक मिल जाते हैं, इसलिए यह काम कर रहे हैं। बस कुछ लोगों को चढ़ावा चढ़ाना होता है।
जरा सी चूक और मौत के मुंह में
इस खदान के आसपास केवटपाड़ा, माझी पाड़ा, लाल बाजार, हाजरा पीट ऐसे गांव हैं, जहां के अनेक परिवार इसी कोयले से जीविका चला रहे। घटनास्थल से हाजरा पीट पांच सौ और मांझी पाड़ा की दूरी महज सौ मीटर है। कोलियरी में जाने के लिए लोगों ने कई रास्ते बनाए हैं। इन पर कोयले की बोरी लेकर चलना बहुत कठिन है। जरा सी चूक होने पर गिरने का खतरा है। छह मुहाने सिर्फ हाजरा पीट की ओर हैं। इसके दूसरी ओर मोचीपाड़ा की तरफ 12 मुहाने हैं। इन मुहानों में घुसकर ही कोयला खनन होता है। सैकड़ों लोग मुहानों के अंदर जाकर कोयला खनन करते हैं।
मौत के मुहाने तक जाते हैं कोयला लाने
सूत्रों ने बताया कि कोयला चोरी में तीन समूह हैं। पहला खतरनाक रास्तों से मुहाने तक जाता है, कोयला ढोकर लाता है। इसमें पुरुषों के साथ महिलाएं भी शामिल होती हैं। दूसरा समूह गैंते से कोयला खोदता है। तीसरा वर्ग ऊपर लाए कोयले को कोक बनाता है। बोरियों में तैयार कोयले को साइकिल वालों को बेच दिया जाता है। कुछ खुद भी साइकिल से कोयला ढोते हैं। एक टोकरी व एक छोटी बोरी कोयले की कीमत 70 रुपये है। एक साइकिल कोयले की कीमत 750 से 800 रुपये होती है। यह साइकिल वाले ईंट भट्ठों या तस्करों को ये कोयला देते हैं। लालबाजार इलाके में 40 ऐसे भट्टे हैं, जिनमें ईंट ऐसे ही कोयले से पक रही है।
अधिकारियों के सामने करते चोरी
रविवार को सुबह दस बजे भी कोयला चोरी हो रहा था। लोग खदान से कोयला निकाल कर माझी पाड़ा गांव में जमा कर रहे थे। खदान में कई अधिकारी खड़े होकर सबकुछ देख रहे थे। यहां जमा पानी को निकालने के लिए एजेंट शुभाषीष घोष खुद मौजूद थे। बावजूद लोग चोरी में जुटे थे। अधिकारियों का उनको कोई खौफ नहीं।
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