वाइस चांसलर के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मुकदमा खारिज... सुप्रीम कोर्ट ने की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय (NUJS) के वाइस चांसलर निर्मल कांति चक्रवर्ती के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला खारिज कर दिया है लेकिन कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि इस घटना का जिक्र प्रोफेसर के बायोडेटा में हमेशा रहेगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसे कृत्यों को माफ नहीं किया जा सकता और दोषी को ऐसी सजा मिलनी चाहिए जो उसे जीवन भर याद रहे।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय (NUJS) के वाइस चांसलर निर्मल कांति चक्रवर्ती के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। मगर, सर्वोच्च न्यायालय ने इस घिनौने कृत्य को हमेशा के लिए प्रोफेसर के बायोडेटा में शामिल करने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बेंच जस्टिस पंकज मिथल और प्रसन्ना बी वराल ने वाइस चांसलर के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा, "इस तरह की हरकतों को माफ किया जा सकता है, लेकिन गलत करने वाले को वो सजा मिलनी चाहिए जो उसे पूरी जिंदगी चुभे।"
2023 का मामला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "इस फैसले को वाइस चांसलर के बायोडेटा में शामिल करना चाहिए।" पीड़िता ने 26 दिसंबर 2023 को वाइस चांसलर के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज की थी। हालांकि, स्थानीय शिकायत कमेटी ने इसे खारिज कर दिया था, क्योंकि यौन उत्पीड़न अप्रैल 2023 में हुआ था, जिसे तय समय यानी 6 महीने से अधिक हो चुके थे।
पीड़िता के अनुसार, वाइस चांसलर निर्मल चक्रवर्ती जुलाई 2019 में विश्वविद्यालय का हिस्सा बने थे। 2 महीने बाद यानी 8 सितंबर को निर्मल ने पीड़िता को डिनर पर चलने का ऑफर दिया। पीड़िता के मना करने पर उसने न सिर्फ गलत तरह से हाथ छुआ बल्कि बात न मानने पर प्रमोशन रोकने तक की धमकी दे दी।
2023 में पीड़िता पर लगा आरोप
अक्टूबर 2019 में वाइस चांसलर ने फिर से पीड़िता को ऑफर दिया और उसके मना करने पर प्रमोशन रोक दिया गया। 2 अप्रैल 2022 को पीड़िता का प्रमोशन हुआ। अप्रैल 2023 में वाइस चांसलर ने फिर से उसे बुलाया और एक ट्रिप पर रिसॉर्ट चलने का ऑफर दिया। पीड़िता ने फिर मना किया तो निर्मल ने उसे करियर तबाह करने की धमकी दे दी।
29 अगस्त 2023 को पीड़िता को भ्रष्टाचार के आरोप में निदेशक के पद से हटा दिया गया और उसके खिलाफ जांच के आदेश दिए गए। इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "पीड़िता को पिछली घटनाओं के आधार पर निदेशक के पद से हटाना यौन उत्पीड़न के दायरे में नहीं आता है।" यही वजह है कि कोर्ट ने केस खारिज कर दिया।
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