Soumitra Chatterjee: भारतीय सिनेमा को विश्व पटल पर ले गए थे सौमित्र चटर्जी
Soumitra Chatterjee फिल्म ‘अपूर संसार’ से करियर की शुरुआत करने वाले सौमित्र चटर्जी ने अपनी पहली ही फिल्म से दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी। फिल्म में शोक में डुबे विधुर का किरदार निभाने वाले सौमित्र का आखिरकार अपने बेटे से जुड़ाव होता है।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता। दिवंगत बांग्ला फिल्म अभिनेता सौमित्र चटर्जी विश्व सिनेमा के श्रेष्ठ उदाहरण थे। उन्होंने देश, राज्य और भाषा की सीमाओं से परे सत्यजित राय की सिनेमाई दृष्टि को अभिव्यक्ति प्रदान की और फिल्मी पर्दे पर उन्हें दक्षता के साथ साकार किया। हालांकि सौमित्र चटर्जी की फिल्मी शख्सियत सिर्फ राय के आभामंडल तक ही सीमित नहीं थी। उन्होंने सत्यजित राय की 14 फिल्मों समेत 300 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया और समानांतर सिनेमा के साथ ही व्यवसायिक फिल्मों में विभिन्न किरदारों में खुद को बखूबी ढाला। उन्होंने मंच पर भी अभिनेता, पटकथा लेखक और निर्देशक के तौर पर अपनी मौजूदगी का अहसास कराया।
फिल्म ‘अपूर संसार’ से करियर की शुरुआत करने वाले चटर्जी ने अपनी पहली ही फिल्म से दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी। फिल्म में शोक में डुबे विधुर का किरदार निभाने वाले सौमित्र का आखिरकार अपने बेटे से जुड़ाव होता है। 1959 में आई इस फिल्म के जरिए विश्व सिनेमा से सौमित्र चटर्जी का परिचय हुआ था। उन्होंने फिल्मों और थियेटर में कई तरह के किरदार निभाए और कविता व नाटक भी लिखे। कलकत्ता (अब कोलकाता) में 1935 में जन्मे सौमित्र चटर्जी के शुरुआती वर्ष नदिया जिले के कृष्णानगर में बीते, जहां से उन्होंने स्कूली शिक्षा प्राप्त की। अभिनय से सौमित्र चटर्जी को पहली बार पारिवारिक नाटकों में उनके दादा और अधिवक्ता पिता ने रूबरू कराया। वे दोनों भी कलाकार थे।
सौमित्र चटर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बंगाली साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री ली थी। उनकी ‘देवी’ (1960), ‘अभिजन’ (1962), ‘‘घरे बाइरे’ (1984) और ‘शाखा प्रशाखा’ (1990) जैसी फिल्मों में काम किया। सौमित्र चटर्जी ने 2012 में एक इंटरव्यू में कहा था कि सत्यजित राय का मुझ पर काफी प्रभाव था। मैं कहूंगा कि वे मेरे शिक्षक थे। अगर वे नहीं होते तो मैं यहां नहीं होता। हालांकि सौमित्र चटर्जी ने मृणाल सेन, तपन सिन्हा और तरुण मजुमदार जैसे दिग्गजों के साथ भी काम किया। बॉलीवुड से कई ऑफर के बावजूद उन्होंने कभी वहां का रुख नहीं किया क्योंकि उनका मानना था कि साहित्यिक कामों के लिये इससे उनकी आजादी खत्म हो जाएगी। योग के शौकीन सौमित्र चटर्जी ने दो दशकों से भी ज्यादा समय तक एक पत्रिका का भी संपादन किया।
उन्होंने दो बार पद्मश्री पुरस्कार लेने से भी इनकार कर दिया था और 2001 में उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार लेने से भी मना कर दिया था। उन्होंने ज्यूरी के रुख के विरोध में यह कदम उठाया था। बाद में 2004 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और 2006 में उन्होंने फिल्म 'पदक्षेप” के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता। 2012 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘लीजन डी ऑनर’ से भी सम्मानित किया गया था। इसके अलावा भी वह कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।