त्रिपुरा में इसी तरह 10323 शिक्षकों की गई थी नौकरी, जानिए क्या था पूरा मामला
पूर्वोत्तर पहाड़ी राज्य त्रिपुरा की वामपंथी सरकार के पूर्व मंत्री भानुलाल साहा नहीं चाहते थे कि बंगाल का त्रिपुरा के साथ एकीकरण का मुद्दा फिर से उठे। उनके शब्दों में त्रिपुरा और बंगाल के मुद्दों में अंतर है। हमारे राज्य में प्रक्रियागत त्रुटि थी। लेकिन बंगाल में नियुक्तियां पैसे के बदले में की जाती थीं। ये दोनों एक ही बात नहीं हैं।
राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। त्रिपुरा में वाम सरकार पूरी ताकत के साथ राज कर रही थी। मुख्यमंत्री माणिक सरकार थे। तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने 2010 और 2013 में दो चरणों में स्कूल शिक्षा विभाग के विभिन्न स्तरों पर 10,323 लोगों को नियुक्त किया था, लेकिन नियुक्ति के संबंध में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए त्रिपुरा हाई कोर्ट में मामला दायर हुआ और हाई कोर्ट ने पूरे पैनल को रद कर दिया।
माणिक सरकार उस आदेश को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय गई, लेकिन 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने भी पूरे पैनल को रद करने के आदेश को बरकरार रखा। इसके बाद यह फैसला आने के अगले ही वर्ष त्रिपुरा विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें माणिक-सरकारी हार गए।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल में करीब 25,752 शिक्षकों व गैर शिक्षण कर्मियों की नौकरियां रद कर दीं। एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की पीठ ने अप्रैल 2024 में कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश को प्रभावी रूप से बरकरार रखा।
यही भी संजोग है कि बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। त्रिपुरा की घटना के मद्देनजर, क्या सुप्रीम कोर्ट का गुरुवार का आदेश तृणमूल कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है?
हालांकि, यह भी ध्यान देने योग्य है कि त्रिपुरा की कुल जनसंख्या 40 लाख से अधिक है। इस अनुपात में संख्या 10,323 का राज्य भर में कहीं अधिक प्रभाव पड़ा। बंगाल की जनसंख्या दस करोड़ से अधिक है। इस संदर्भ में यह विचार करना भी महत्वपूर्ण है कि 25,753 की संख्या का पूरे बंगाल पर कितना और किस प्रकार का प्रभाव पड़ेगा।
त्रिपुरा में भाजपा नेताओं का दावा है कि बंगाल में भी वही होगा, जिस तरह 10,323 नौकरियों की बर्खास्तगी ने उनके राज्य में वामपंथी सरकार के पतन में 'उत्प्रेरक भूमिका' निभाई थी। भाजपा के प्रवक्ताओं में से एक सुब्रत चक्रवर्ती ने कहा कि बंगाल और त्रिपुरा की मिट्टी अलग है।
हालांकि, इनमें एक मौलिक समानता है। यानी दोनों राज्यों में लंबे वामपंथी शासन के बाद लोगों ने बदलाव किया है, लेकिन तृणमूल ने जिस तरह से भ्रष्टाचार किया है, उससे लोगों का गुस्सा हिमालय की ऊंचाई तक पहुंच गया है। नौकरियों में कटौती सहित जो कुछ भी हो रहा है, उसे देखते हुए आगामी चुनावों में उनका जाना तय है।
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