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    भारतीय संस्कृति के उन्नयन में शंकरदेव का अवदान अविस्मरणीय : डॉ.ऋषिकेश राय

    By Priti JhaEdited By:
    Updated: Mon, 31 May 2021 09:13 AM (IST)

    पुस्तकों को आराध्य मानने के कारण शंकरदेव की समानता गुरु नानक से की जा सकती है। ऐतिहासिक परिस्थितियों का विस्तृत विवेचन करते हुए डॉ. राय ने कहा कि सांस्कृतिक संकट एवं हताशा के किसी भी कालखंड में महानायक के रूप में हमारा पथ आलोकित कर सकते हैं।

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    भारतीय संस्कृति के उन्नयन में शंकरदेव का अवदान अविस्मरणीय : डॉ.ऋषिकेश राय

    राज्य ब्यूरो, कोलकाता। 'असमिया भक्त कवि श्रीमत् शंकर देव के व्यक्तित्व और कृतित्व में भारतीय संस्कृति के विविध पक्ष आलोकित हैं। उनके बहुआयामी कृतित्व में निहित सांस्कृतिक दृष्टि ने भारत की मूल चेतना से असम की संस्कृति को जोड़ रखा है। वे भारतीय संस्कृति की एकात्म साधना के महान प्रतिनिधि हैं। श्रीमद्भागवत की कथा से प्रेरित तथा श्रीकृष्ण की दास्य भक्ति से अनुप्राणित श्रीमत् शंकरदेव ने समाज सुधार का संकल्प लेकर उसे रूपायित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया।

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    असम की सांस्कृतिक चेतना को अपनी रचनाधर्मिता से समृद्ध एवं सूत्रबद्ध करने वाले शंकरदेव ने असम में राष्ट्रीयता बोध जागृत कर भारतीय संस्कृति के उन्नयन में महत्त्वपूर्ण योग दिया है।' ये विचार हैं प्रख्यात साहित्यकार डॉ . ऋषिकेश राय के, जो श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा आभासी माध्यम से आयोजित आचार्य विष्णुकांत शास्त्री स्मृति व्याख्यानमाला के 16 वें आयोजन में 'असमिया भक्तकवि शंकरदेव और आज का सांस्कृतिक परिदृश्य' विषय पर बतौर प्रधान वक्ता बोल रहे थे।

    डॉ.ऋषिकेश ने कहा कि पुस्तकों को आराध्य मानने के कारण शंकरदेव की समानता गुरु नानक से की जा सकती है। ऐतिहासिक परिस्थितियों का विस्तृत विवेचन करते हुए डॉ. राय ने कहा कि सांस्कृतिक संकट एवं हताशा के किसी भी कालखंड में शंकरदेव जैसे संत, समाज सुधारक, साहित्य साधक सांस्कृतिक महानायक के रूप में हमारा पथ आलोकित कर सकते हैं।

    अपने बीज भाषण में सुधी समीक्षक अजयेन्द्रनाथ त्रिवेदी (गुवाहाटी) ने कहा कि शंकरदेव ने उत्तर पूर्वांचल के भेदभाव ग्रस्त समाज में भक्ति के माध्यम से परस्पर सहिष्णुता, भाईचारा और सहयोग के युग का सूत्रपात किया। कला, संस्कृति, साहित्य, अध्यात्म चेतना के द्वारा उन्होंने भक्ति की धारा को प्रवाहित कर लोक जागरण किया था।

    अध्यक्षीय भाषण में लक्ष्मी नारायण भाला (दिल्ली) ने कहा कि राष्ट्र जीवन में जिस विधायक परिवर्तन की आज आवश्यकता महसूस की जा रही है और उसके लिए जिस प्रतीक पुरुष की समाज को आवश्यकता है, उसकी पूर्ति करने के लिए शंकरदेव का लोकोत्तर जीवन एवं अविस्मरणीय साहित्यिक-सांस्कृतिक अवदान हमारा बड़ा संबल बन सकता है।

    पुस्तकालय के अध्यक्ष डॉ प्रेमशंकर त्रिपाठी ने अपने गुरु आचार्य विष्णुकांत शास्त्री जी को आभासी माध्यम से भावांजलि निवेदित की। पुस्तकालय के मंत्री महावीर बजाज ने सबकी ओर से आचार्य शास्त्री के चित्र पर पुष्पार्पण कर श्रद्धा  निवेदित की। स्वागत भाषण दिया साहित्य मंत्री बंशीधर शर्मा ने  तथा धन्यवाद ज्ञापन किया श्रीमती स्नेहलता बैद ने। कार्यक्रम का कुशल संचालन किया युवा प्राध्यापक डॉ. कमल कुमार ने। 

    कार्यक्रम का शुभारंभ लोकप्रिय गायक ओमप्रकाश मिश्र के द्वारा 'जाउं कहां तजि चरण तुम्हारे' भजन से हुआ ।इस मौके पर वसुधा कोठारी (बंगाईगांव) ने आचार्य शास्त्री विरचित गीत को अपने मधुर स्वर में प्रस्तुत किया। कार्यक्रम  में आभासी माध्यम  से विविध अंचलों से  डॉ.श्रीभगवान सिंह, डॉ. इंदुशेखर तत्पुरुष, डॉ. अभिजीत सिंह,  भंवरलाल मूंधड़ा, नंदकुमार लढा, अरुण प्रकाश मल्लावत, अनिल ओझा नीरद, डॉ.तारा दूगड़, दुर्गा व्यास, डॉ.आनंद पांडेय,  डॉ. राम परवेश रजक, अशोक मोदी,  डॉ.सत्यप्रकाश तिवारी, नंदलाल रोशन नवुन सिंह , राजेंद्र द्विवेदी,  रविप्रताप सिंह, मुकुंद राठी, शशांक शेखर शास्त्री,अल्पना सिंह, मनोज काकड़ा,श्रीमोहन तिवारी, भागीरथ चांडक, कपूर चंद बेताला, शंभूनाथ, रचना मालू, शैलेश बागड़ी, गिरिधर राय, राधेश्याम श्रीवास्तव प्रभृति अनेक गणमान्य लोग जुड़े रहे।