रंगोली बयां करेगी सोनागाछी रेड लाइट एरिया के यौनकर्मियों के संघर्ष की कहानी
इस रंगोली के माध्यम से एशिया के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया सोनागाछी की सेक्स वर्कर्स के जीवन व उनके संघर्ष को उकेरने की कोशिश की गई है।
कोलकाता, जागरण संवाददाता। महालया के साथ ही पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े त्यौहार दुर्गापूजा का शुभारंभ हो गया। हर साल महानगर समेत राज्य भर में विभिन्न पूजा आयोजकों की ओर से विभिन्न थीम आधारित पूजा पंडाल, प्रतिमाएं व मंडप, लाइट आदि की सजावट की जाती है।
वहीं इस बार उत्तर कोलकाता स्थित अहिरीटोला यूथ एसोसिएशन की ओर से सोनागाछी की यौन कर्मियों को लेकर एक रंगोली (भित्ति चित्र) बनाई गई है। इस रंगोली के माध्यम से एशिया के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया सोनागाछी की सेक्स वर्कर्स के जीवन व उनके संघर्ष को उकेरने की कोशिश की गई है। यौन श्रमिकों के जीवन और संघर्ष को समर्पित रंगोली का अनावरण सोमवार को किया गया। अहिरीटोला इलाके में 300 फीट लंबी सड़क पर रंगोली को बनाया गया है।
अहिरीटोला युवकवृंद पूजा कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष उत्तम साहा ने कहा कि इस रंगोली के पीछे हमारा उद्देश्य लोगों के बीच जागरूकता फैलाना है ताकि वे यौन कर्मियों के जीवन और संघर्ष को जान सकें। उन्होंने कहा कि रंगोली के माध्यम से अहिरीटोला से करीब एक किलोमीटर दूर स्थित सोनागाछी के योनकर्मियों के जीवन को दर्शाया गया है।
वहीं, इस परियोजना में भाग लेने वाले कलाकार सौमेन सरकार ने कहा कि यौन कर्मियों के जीवन के विभिन्न रंगों को चित्रित करने वाले भित्तिचित्र में विभिन्न रंगों का इस्तेमाल किया गया है। रंगोली बनाने वाले एक अन्य कलाकार मानस रॉय ने कहा कि एक महिला यूं ही इस पेशे में नहीं आती या तो उसे जबरन इसमें ढकेला जाता है अथवा पारिवारिक मजबुरियों के कारण इस पेशे में आती है। हमें यह समझना चाहिए कि वे भी एक मां है, जो सभी बाधाओं के बावजूद, अपने बच्चों और परिवार का ख्याल रखती है।
उधर, रंगोली को लेकर यौन कर्मियों के मूलभूत अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था दुरबार महिला समिति केसंताना दास ने कहा कि हमें वास्तव में खुशी है कि इस तरह की थीम उक्त पूजा समिति की ओर से इस साल बनाया गया जो यौन कर्मियों के जीवन और उनके संघषरें को दर्शाती है। बता दें कि समिति के तहत 1,30,000 से अधिक यौनकर्मी पंजीकृत हैं।
पश्चिम बंगाल में कुमार टोली वो जगह है जहां पर मां दुर्गा की मूर्तियां तैयार की जाती हैं। कुमार टोली का अर्थ है जहां पर कुम्हार रहते हैं। मूर्तियां तैयार करने से पहले यह मूर्तिकार पश्चिम बंगाल में सोनागाछी से सबसे पहले मिट्टी लाते हैं। इसके बाद ही किसी मूर्ति को तैयार किया जाता है। मां दुर्गा की मूर्तियों आज भी ज्यादातर जगहों पर परंपरागत तरीके से ही बनाई जाती है, लेकिन कुछ जगहों पर इसमें बांस के साथ पराली का भी उपयोग किया जाने लगा है।
आपको यहां बता दें कि मां दुर्गा की इन मूर्तियों को केवल मिट्टी से ही तैयार किया जाता है। इसके लिए नदी के किनारे की मिट्टी का उपयोग किया जाता है। इसमें किसी भी तरह की अन्य चीज नहीं मिलाई जाती है। आपको जानकर हैरत होगी कि इस मूर्ति की शुरुआत के लिए मूर्तिकार सबसे पहले उस स्थान की मिट्टी लाते हैं जिसे समाज से अलग माना जाता है। यह वह रेड लाइट इलाके होते हैं जहां पर देह व्यापार करने वाली महिलाएं रहती हैं। ऐसा करने के पीछे भी एक बड़ा कारण है। दरअसल, प्राचीन समय से इस तरह का काम करने वाली महिलाओं को समाज से अलग माना जाता रहा है। उनकी धार्मिक अनुष्ठानों में भी भागीदारी या तो नहीं रही या फिर नाम मात्र की ही रही है। ऐसे में दुर्गा पूर्जा के दौरान उनके यहां की मिट्टी से मां दुर्गा की मूर्ति की शुरुआत करने को माना जाता है कि इस बड़े धार्मिक अनुष्ठान में उनको भी विधिवत तौर पर शामिल किया गया है।