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    Bengal Election: प्रचार प्रपंच- कोलकाता में चीनी भाषा में भी चुनाव प्रचार, दो हजार से अधिक चीनी मूल के भारतीय नागरिक

    By Priti JhaEdited By:
    Updated: Fri, 12 Mar 2021 02:42 PM (IST)

    West Bengal Election 202 तृणमूल कांग्रेस की ओर से टेंगरा इलाके में चीनी भाषा में भी दीवार लेखन कर चुनाव प्रचार किया जा रहा है। यहां की दीवारें चीनी भाषा में तृणमूल कांग्रेस को वोट दें के नारों से रंगी हुई हैं।

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    कोलकाता में चीनी भाषा में भी चुनाव प्रचार

    कोलकाता, राज्य ब्यूरो। बंगाल में विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए प्रत्याशी से लेकर बड़े-बड़े नेता दिन-रात एक किए हुए हैं। कोलकाता में भी चुनाव प्रचार तेज है। हालांकि, महानगर में सातवें और आठवें चरण में चुनाव होना है। वहीं महानगर के कसबा विधानसभा क्षेत्र में चौथे चरण में मतदान होना है। तृणमूल कांग्रेस की ओर से टेंगरा इलाके में चीनी भाषा में भी दीवार लेखन कर चुनाव प्रचार किया जा रहा है। इस इलाके में तृणमूल प्रत्याशी जावेद खान चीनी भाषा में दीवार लेखन कर यहां रहने वाले लोगों से वोट मांग रहे हैं। यहां की दीवारें चीनी भाषा में तृणमूल कांग्रेस को वोट दें के नारों से रंगी हुई हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर तृणमूल की ओर से चीनी भाषा में चुनाव प्रचार के लिए दीवार लेखने क्यों किया जा रहा है तो इसका जवाब कुछ यह है।

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    टेंगरा इलाके को कहा जाता है चाइना टाउन

    दरअसल,दक्षिण कोलकाता के टेंगरा इलाके को चाइना टाउन कहा जाता है। इस इलाके में कभी 20,000 चीनी मूल के भारतीय नागरिकों का घर था, लेकिन अब इनकी आबादी लगभग 2,000 रह गई है। कोलकाता का यह चीनी भारतीय समुदाय पारंपरिक व्यवसाय चमड़े के साथ-साथ चीनी रेस्तरां का है। यह इलाका अभी भी चीनी रेस्तरां के लिए मशहूर है, जहां लोग पारंपरिक चीनी और भारतीय चीनी व्यंजनों का स्वाद लेने के लिए आते हैं। यहां रहने वाले लोगों को बंगाली और हिंदी कामचलाऊ ही आती है। ऐसे में तृणमूल नेताओं की कोशिश उनकी मातृभाषा में चुनाव प्रचार करने की है ताकि वह चीजों को आसानी से समझ सकें। हालांकि इनकी आबादी इतनी नहीं है कि ये चुनाव नतीजों में कुछ विशेष प्रभाव डाल सकें पर तृणमूल जीत के लिए हर तरह की कोशिश में जुटी है।

    कोलकाता से चीनी नागरिकों का रिश्ता काफी पुराना

    कहा जाता है कि कोलकाता से चीनी नागरिकों का रिश्ता काफी पुराना है। इसके बाद 18वीं शताब्दी के अंत में चीनी मजदूरों ने भारत आना शुरू कर दिया। शुरुआत में चीन से आए मजदूर केवल चमड़े का काम करते थे। बाद में वे रेस्तरां और कपड़ों समेत अनेक क्षेत्रों में काम करने लगे। राजनीतिक नजरिए से भी देखें तो चीन और बंगाल के बीच गहरी समानता रही है। बंगाल में लंबे समय तक वामपंथियों की सरकार रही है। वामपंथियों का चीन से गहरा लगाव अब भी है। 

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