बंगाल में पोस्टपार्टम हैमरेज 25 से 30 प्रतिशत मौतों के साथ मातृ मृत्यु का प्रमुख कारण
पीपीएच (Postpartum haemorrhage) से होने वाली मौतों का सबसे आम कारण गर्भाशय की कमज़ोरी को पाया गया -100 में से लगभग एक से पांच जन्म देने वाली महिलाओं में होता है पीपीएच। भारत में सभी मातृ मृत्यु में पीपीएच का योगदान 38 प्रतिशत है।

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। बंगाल में पोस्टपार्टम हैमरेज (पीपीएच) 25 से 30 प्रतिशत मौतों के साथ मातृ मृत्यु का प्रमुख कारण बन गया है। पीपीएच दुनिया भर में मातृ मृत्यु का प्रमुख कारण है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल 140,000 मातृ मृत्यु पीपीएच के कारण होती है। भारत में सभी मातृ मृत्यु में पीपीएच का योगदान 38 प्रतिशत है। यह स्थिति तब होती है जब एक महिला में बच्चे को जन्म देने के बाद उसके शरीर से बहुत ज्यादा ख़ून बह जाता है और अगर ज्यादा ख़ून बह जाता है या खून बहने को तुरंत नियंत्रित नहीं किया जाता है तो महिला की जान खतरे में पड़ जाती है।
गायनेकालोजिस्ट कंसलटेंट सर्जन डॉ पुष्पल गोस्वामी ने कहा कि इस समस्या को रोका जा सकता है। उनका कहना है कि प्रसव के दौरान पीपीएच से निपटने के लिए सभी आवश्यक तैयारियां की जानी चाहिए। इस तैयारी में पीपीएच ट्राली को लेबर रूम में रखना शामिल होना चाहिए और इसमें ख़ून के बहाव को प्रबंधित करने के लिए आवश्यक सभी चीजें करनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि जब योनि प्रसव के बाद 500 मिली या उससे ज्यादा या सिजेरियन सेक्शन के बाद 550 मिली से लेकर 1000 मिली या इससे ज्यादा खून बह जाता है, तो इसे पीपीएच माना जा सकता है।
पीपीएच मौतों का सबसे आम कारण गर्भाशय की कमज़ोरी होता है, लेकिन कुछ अन्य कारण भी हैं जैसे कि लंबे समय तक लेबर और कई गर्भावस्था होना आदि। उचित दवा/गर्भाशय और श्रोणि के ऊतकों की जांच, प्लेसेंटल टुकड़ों को पूरी तरह से हटाकर इस समस्या से पीड़ित महिला के जीवन को बचाया जा सकता है भारत सीरम एंड वैक्सीन्स लिमिटेड (बीएसवी) का कार्बेटोसिन इंजेक्शन वर्तमान में प्रसव के बाद ब्लीडिंग (रक्तस्राव) की रोकथाम के लिए दिया जाता है।
पीपीएच का सबसे आम कारण गर्भाशय का कमज़ोर होना है। यह एक गंभीर समस्या होती है। यह गम्भीर समस्या बच्चे के जन्म के बाद हो सकती है। यह तब होता है जब बच्चे की डिलीवरी के बाद गर्भाशय सिकुड़ने में विफल रहता है, और इससे प्रसव के बाद ख़ून बहना शुरू हो सकता है, जो जानलेवा हो सकताहै।
पीपीएच के संभावित रिस्क फैक्टर में गर्भकालीन आयु (32 हफ्ते से कम), जन्म का वजन (4500 ग्राम से ज्यादा), पहले सीजेरियन सेक्शन होना शामिल हैं।
डॉ गोस्वामी ने बताया कि अगर पीपीएच के लिए नवीनतम दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है, तो इस स्थिति को होने से रोका जा सकता है। स्थिति लेबर के तीसरे स्टेज (एएमटीएसएल), ट्रांसफ्यूजन, ऑक्सीटोसिन, मिसोप्रोस्टोल के सक्रिय प्रबंधन से हो सकती है। पीपीएच की कुछ काम्प्लिकेशन में सेप्सिस, पेल्विक हेमेटोमा, यूरिनरी ट्रैक्ट इंजरी और वैस्कुलर इंजरी होना हैं। इन कॉम्प्लिकेशन के शुरुआती लक्षणों की पहचान उन महिलाओं में की जानी चाहिए जिन्होंने बच्चों को हाल ही मे जन्म दिया हो। 36 घंटे के बाद भ्रूण की हलचल महसूस करें।
पीपीएच एक गंभीर लेकिन दुर्लभ स्थिति है। यह आमतौर पर जन्म देने के एक दिन के अंदर होती है, लेकिन यह बच्चा होने के 12 हफ्ते बाद तक हो सकता है। 100 में से लगभग 1 से 5 जन्म देने वाली महिलाओं में पीपीएच होता है। उन्होंने आगे सलाह देते हुए कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों मे लोगों को प्रसव के लिए अस्पतालों में जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और घर पर डिलीवरी कराने से बचना चाहिए। इसके अलावा कुशल बर्थ अटेंडेंट की कमी, परिवहन सुविधाएं कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जिनका ग्रामीण क्षेत्रों में सामना करना पड़ता है। पब्लिक और प्राइवेट दोनों स्तरों इस समस्या के प्रति जन जागरूकता पैदा की जानी चाहिए।"
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