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    बंगाल के नदिया जिले की रहने वाली तीन फीट की पियाशा महलदार का कद औरों से कहीं ऊंचा

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Pokhriyal
    Updated: Sun, 27 Nov 2022 12:24 PM (IST)

    कुछ कर गुजरने की चाह अगर हो तो बड़ी से बड़ी बाधा भी आपका रास्ता नहीं रोक सकती। यकीन न हो तो बंगाल की पियाशा महलदार से मिलिए। उनके पास जिंदगी से शिकायत करने और किस्मत को कोसने के हजारों कारण थे। फोटो क्रेडिट द टेलीग्राफ

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    लेटे-लेटे परीक्षा दी और यूजीसी नेट में 99.31 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। फोटो क्रेडिट: द टेलीग्राफ

    रुमनी घोष, नई दिल्ली। शारीरिक कद-काठी की बात करें तो 25 साल की पियाशा महलदार तीन फुट से भी कम हैं, लेकिन विषम परिस्थितियों से जूझते हुए उन्होंने जो कुछ हासिल किया, उनका कद काफी ऊंचा है। उनकी उपलब्धि ने पहले तो सबको अचंभित किया और फिर सबको प्रेरित किया। पियाशा बंगाल के नदिया जिले की रहने वाली हैं। जन्मजात फोकोमेलिया के ग्रसित होने की वजह से वह विकृत अंगों की शिकार हैं। यह एक दुर्लभ जन्म दोष है, जिसमें हाथ और पैर की हड्डियां बेहद छोटी रह जाती हैं।

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    यही वजह रही कि उम्र के अनुसार न उनकी कद-काठी बढ़ी और न ही वह सामान्य ढंग से चलने-फिरने लायक बन सकीं। उन्हें अपना अधिकांश काम लेटे-लेटे ही करना पड़ता है। सिर्फ एक चीज थी, जो तेजी से बढ़ रही थी, वह है उनका दिमाग। इन परिस्थितियों के बीच ही पियाशा ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। इसी कड़ी में उन्होंने यूजीसी नेट की परीक्षा दी।

    हाल ही में इसके परिणाम घोषित हुए। उन्होंने 99.31 प्रतिशत अंक प्राप्त कर जूनियर रिसर्च फेलोशिप प्राप्त करने की योग्यता हासिल कर ली है। बंगाली साहित्य की छात्रा पियाशा कहती हैं यह एक चुनौती थी, लेकिन मैंने इसे पूरा किया। बातचीत के दौर को बीच में रोककर वह भगवान को धन्यवाद देना नहीं भूलती हैं। पिछले साल कृष्णानगर सरकारी कालेज से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने वाली पियाशा शुरू से ही मेधावी रही हैं। वह कहती हैं कि अब मैं पीएचडी करना चाहती हूं।

    उम्मीद है कि कल्याणी विश्वविद्यालय से पीएचडी करने का मौका मिल जाएगा। उधर, उनकी इच्छा जानने के बाद विश्वविद्यालय प्रबंधन भी ऐसी मेधावी छात्रा को अपने साथ पाने के लिए आतुर है। पियाशा की मां सुप्रिया कहती हैं ‘मैंने महसूस किया कि बचपन में उसके अंग अन्य बच्चों की तरह नहीं थे तो लोग उसे देखकर दूर भागते थे। उस समय उसने किताबों को ही अपना दोस्त बना लिया। वह किताबों के साथ बात करती, सवाल पूछती, हल तलाशती हुई बड़ी होती चली गई है। तब मैं यह सब देखकर रोया करती थी, आज प्रतिफल सामने है। पुलिस विभाग में पदस्थ पिता उत्तम महलदार कहते हैं जब हम नहीं रहेंगे तो उसकी देखभाल कौन करेगा? उन्होंने पियाशा के भविष्य को सुरक्षित करने का रास्ता खोजने में मदद की अपील की।