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    Durga Puja 2022: वेश्यालय ही नहीं दस स्थानों की माटी से तैयार होती है दुर्गा मां की प्रतिमा

    By Jagran NewsEdited By: PRITI JHA
    Updated: Mon, 03 Oct 2022 12:22 PM (IST)

    मिट्टी क्यों ली जाती है- ऐसा माना जाता है कि जब भी कोई पुरुष यौनकर्मी के साथ शारीरिक संबंध बनाता है तो उसने जीवन में जो भी पुण्य किया होता है वह उसी क ...और पढ़ें

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    Durga Puja 2022: वेश्यालय ही नहीं दस स्थानों की माटी से तैयार होती हैं दुर्गा मां की प्रतिमा

    कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। हमारे देश की संस्कृति, पर्व-त्योहार और परंपराओं में कई संदेश छिपे होते हैं। यही वजह है कि हम सूर्य-चंद्र से लेकर भूमि, यहां तक कि पेड़-पौधों को भी पूजते हैं। 25 सितंबर के बाद सिर्फ बंगाल ही नहीं, पूरा देश, यहां तक कि विश्व के हर कोने में, जहां भी सनातनी रहते हैं, वे जगत जननी देवी दुर्गा की आराधना में जुट जाएंगे। दुर्गा पूजा के आध्यात्मिक,धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक समेत कई महात्म्य हैं। यह पूजा नारी शक्ति, धरती, प्रकृति और जगत के समस्त प्राणियों के प्रति समान आदर-सम्मान और प्रेम को दर्शाता है। यही कारण है कि दुर्गा पूजा के लिए जब महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा बनती है तो उस मिट्टी में ऐसे-ऐसे स्थानों के रज मिलाए जाते हैं, जिसे समाज में अधम-पतित और अशुद्ध माना जाता है। बंगाल में जिस मिट्टी से दुर्गा प्रतिमाएं बनती हैं, उसमें वेश्यालय (बांग्ला में पतितालय) ही नहीं, सूअर के बाड़े के साथ-साथ आठ और स्थानों की मृत्तिका मिलाई जाती है। इसके धार्मिक,परंपरागत और सामाजिक कारण हैं।

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    भारतीय महाकाव्यों और पुराणों के विशेषज्ञों का कहना है कि दुर्गा पूजा के अवसर पर देवी की प्रतिमा की स्थापना पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है, जो जगत में सामाजिक सुधारों का पताका लिए किसी मिशन के मानिंद नजर आती है।

    नवरात्रि में शक्ति की वैज्ञानिक पूजा का उद्धरण

    ग्रंथों में दुर्भाग्य के उन्मूलन हेतु प्राचीन काल में अहोरात्रि के नाम से प्रचलित आज की नवरात्रि में शक्ति की वैज्ञानिक पूजा का उद्धरण प्राप्त होता है, जिसमें पूजन के लिए विशिष्ट प्रतिमा के निर्माण का उल्लेख है। जिसके समक्ष मंत्रजाप और सप्तशती पाठ की स्वर लहरियां कर्ण से मस्तिष्क में प्रविष्ट होकर अपार मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास का कारक बनती हैं। 'शारदातिलकम' जैसे ग्रंथ और कुछ पारंपरिक मान्यताएं इसकी पुष्टि और संस्तुति करती हैं।

    दुर्गा प्रतिमाएं में दस स्थानों की माटी

    बंगाल की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दुर्गा पूजा के अनुष्ठानों के लिए 10 मृत्तिका की आवश्यकता होती है। 10 मृत्तिका यानी 10 जगहों से लाई गई मिट्टी का मिश्रण। इसे मिट्टी में मिलाकर दुर्गा प्रतिमा बनाई जाती है। मूर्ति पूजा के लिए वेश्यालय की मिट्टी की जरूरत होती है, यह बात तो लोग जानते हैं लेकिन और नौ स्थानों की भी मिट्टी की जरूरत होती है। वर्तमान समय में इस परंपरा का निर्वाह करना सबके लिए संभव नहीं है तो उसमें कुछ परिमार्जन कर लिया गया है। अब गाय के गोबर, गोमूत्र, लकड़ी व जूट के ढांचे, धान के छिलके, सिंदूर, विशेष वनस्पतियां, पवित्र नदियों की मिट्टी और जल के साथ वेश्यालय के रज के समावेश से निर्मित दुर्गा प्रतिमाओं की विधिपूर्वक उपासना की जाती है। इन दोनों ही परंपराओं से प्रतिमा निर्माण में सामान्य है वेश्यालय की मिट्टी।

    वेश्यालय की माटी प्रतिमा निर्माण में क्यों

    वेश्यालय की माटी प्रतिमा निर्माण में क्यों इस्तेमाल होती है, इसकी अलग-अलग तरह से जानकार व्याख्या करते हैं। बंगाल के इतिहासकार, लेखक और पुराणों के विशेषज्ञ नृसिंह प्रसाद भादुड़ी कहते हैं-‘आदि काल से किसी भी बड़े यज्ञ, पूजा या अनुष्ठान में गंगा-जमुना जैसी तीर्थ नदियों के जल और मिट्टी लाया जाता है, उसी तरह से बंगाल में 10 स्थानों की मिट्टी के मिश्रण (10 मृत्तिका) से दुर्गा प्रतिमा बनाने की परंपरा रही है।’

    उन्होंने 10 मृत्तिका की व्याख्या इस तरह की है:- पहला, वेश्यालय की माटी-हम वेश्याओं को समाज की मुख्यधारा से दूर रखने के आदी हैं। शुरू से ही उन्हें समाज में क्षेत्र विशेष में ही रहने दिया गया है। उस स्थान की मिट्टी से देवी की प्रतिमा बनना इस बात का संदेश है कि समस्त नारी, चाहे वह एक वेश्या ही क्यों न हो, देवी दुर्गा का स्वरूप है। वह ‘सर्वभूतेषु’ हैं यानी वह चराचर में हैं। उनके लिए कोई नारी अधम नहीं है। यह परंपरा स्वयं में सामाजिक सुधार के सूत्र को भी सहेजता है।

    वेश्याओं के घर की मिट्टी कई पुरुषों के पुण्य से भरी होती

    हालांकि, कुछ जानकारों की व्याख्या भिन्न है। उनका मानना है कि यह परंपरा पुरुषों की भूल की सजा भुगतती स्त्री के उत्थान और सम्मान की प्रक्रिया का हिस्सा है। जब कोई पुरुष किसी वेश्या के घर जाता है और शारीरिक संबंध बनाता है तो वह अपने जीवन के सभी पुण्यों को वेश्या के घर की भूमि पर गिरा आता है और जाते समय वहां से पाप ले जाता है। ऐसा माना जाता है कि वेश्याओं के घर की मिट्टी कई पुरुषों के पुण्य से भरी होती है। एक और आम धारणा है कि वेश्याएं पुरुषों की काम, वासना, लोभ को धारण कर खुद को अशुद्ध करती हैं और समाज को शुद्ध व स्वच्छ। वह समाज की नैतिकता को बनाए रखने में मदद करती हैं। यही कारण है कि वेश्यालय की मिट्टी का उपयोग दुर्गापूजा जैसे पवित्र कार्यों में कर उन्हें क्षणिक ही सही, सम्मान दिया जाता है।

    सोनागाछी की यौनकर्मियों के संगठन

    कोलकाता के लालबत्ती क्षेत्र सोनागाछी की यौनकर्मियों के संगठन दुर्बार महिला समन्वय समिति की एडवोकेसी आफिसर महाश्वेता मुखर्जी का कहना है-‘पूरे साल यौनकर्मियों को हेय दृष्टि से देखा जाता है और दुर्गा पूजा के दौरान परंपरा के निर्वाह के लिए कुछ देर आदर व सम्मान देने की बात होती है। यही वजह है कि पिछले एक दशक से सोनागाछी की यौनकर्मियों ने मिट्टी देना बंद कर दिया है।’ हालांकि, जो लोग परंपरा को मानते हैं, वे किसी न किसी तरह से चुटकी भर मिट्टी जुगाड़ कर ले ही जाते हैं। मिट्टी क्यों ली जाती है, इस सवाल पर महाश्वेता कहती हैं कि ऐसा माना जाता है कि जब भी कोई पुरुष यौनकर्मी के साथ शारीरिक संबंध बनाता है तो उसने जीवन में जो भी पुण्य किया होता है, वह उसी कमरे में छोड़ जाता है इसीलिए वहां की मिट्टी ली जाती है।

    सूअर के बाड़े की मिट्टी

    भादुड़ी के मुताबिक दूसरी,सूअर के बाड़े की मिट्टी। इसका भी मूर्ति बनाने में इस्तेमाल होता है। हमारे समाज में सूअर को सबसे अधिक गंदगी में रहने और गंदगी खाने वाला जीव माना जाता है, परंतु देवी की प्रतिमा के लिए सूअर जिस बाड़े में रहता है, वहां की माटी ली जाती है। इसकी वजह है, देवी के लिए हर जीव-जंतु समान है और उसमें उनका वास है। तीसरी, पहाड़ की जड़ की मिट्टी। चौथी, नदी के दोनों किनारों की मिट्टी। पांचवीं, बैल के सींग में लगी मिट्टी। छठी, हाथ के दांत में लगी माटी। सातवीं,किसी महल के मुख्य द्वार की मिट्टी। आठवीं, किसी चौराहे की मिट्टी। नौवीं, बलि भूमि की माटी। दसवीं, दीमक द्वारा ढेर की गई माटी। इन सभी जगहों की मिट्टी लिए जाने की अलग-अलग वजह हैं।

    दीमक की माटी इसलिए ली जाती है कि धर्म और आस्था किसी में अचानक पैदा नहीं हो सकते। धीरे-धीरे दीमक जिस तरह जमीन हो या फिर सख्त लकड़ी को भी पाउडर में बदलकर ढेर लगा देता है, उसी तरह से धर्म व आस्था भी लोगों के मन में धीरे-धीरे पैदा होते हैं न कि कल तक धर्म और आस्था को नहीं मानते थे और आज अचानक धार्मिक हो गए, यह नहीं हो सकता है।हालांकि, अब इतनी जगहों की मिट्टी लाना आसान नहीं है इसीलिए लोग दुकानों से 10 मृत्तिका खरीद लेते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी पूजा आयोजक हैं, जो अभी भी इस परंपरा का निर्वाह पूरी निष्ठा से करते हुए दुर्गा प्रतिमा तैयार कराकर पूजा करते हैं।