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    Kolkata News: भारत में अखंड बंगाल चाहते थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई- सुगत बोस

    By Jagran NewsEdited By: Babli Kumari
    Updated: Mon, 18 Sep 2023 03:45 PM (IST)

    भाजपा चाहती है कि 20 जून को बंगाल दिवस के रूप में मनाया जाए लेकिन तृणमूल कांग्रेस के भारी बहुमत वाली वर्तमान विधानसभा ने इस माह के प्रारंभ में एक प्रस्ताव पारित कर बंगाली कैलेंडर के पहले दिन ‘पोइला बैशाख’ को राज्य दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया था। टीएमसी प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस विभाजन को ‘पीड़ाजनक और दर्दनाक प्रक्रिया’ बताया था।

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    भारत में अखंड बंगाल चाहते थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई (फाइल फोटो)

    कोलकाता, राज्य ब्यूरो। बंगाल दिवस को लेकर भाजपा और टीएमसी की अलग-अलग मांग से उत्पन्न विवाद के बीच तृणमूल कांग्रेस के पूर्व सांसद और इतिहासकार सुगत बोस ने कहा है कि उनके दादा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई शरत बोस ने ‘अखंड भारत में अखंड बंगाल’ की मांग उठाई थी।

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    भाजपा चाहती है कि 20 जून को बंगाल दिवस के रूप में मनाया जाए, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के भारी बहुमत वाली वर्तमान विधानसभा ने इस माह के प्रारंभ में एक प्रस्ताव पारित कर बंगाली कैलेंडर के पहले दिन ‘पोइला बैशाख’ को राज्य दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया था। टीएमसी प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस विभाजन को ‘पीड़ाजनक और दर्दनाक प्रक्रिया’ बताया था।

    दरअसल आज जो पश्चिम बंगाल है, उसके विधायकों ने 1947 में 20 जून को ही बंगाल विभाजन के पक्ष में वोट डाला था। सुगत बोस ने एक समाचार एजेंसी को दिए एक साक्षात्कार में स्पष्ट किया कि बंगाल के विधायकों, जिनमें अधिकतर कांग्रेस से थे, ने विभाजन के पक्ष में मतदान किया था क्योंकि कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें विभाजन के पक्ष में मतदान करने का आदेश दिया था। यह वाकई कांग्रेस का फैसला था।

    मुखर्जी ने ही भाजपा के पूर्ववर्ती जनसंघ की स्थापना की थी

    हिंदू महासभा के पास केवल एक विधायक था। भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई ने दावा किया है कि महासभा के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रयासों के चलते ही बंगाल का विभाजन हुआ। मुखर्जी ने ही भाजपा के पूर्ववर्ती जनसंघ की स्थापना की थी।

    अविभाजित बंगाल प्रांतीय विधानसभा में थे 250 सदस्य 

    सुगत बोस ने कहा कि एक मायने में यह पूर्व निर्धारित था क्योंकि जब तीन जून, 1947 को विभाजन की घोषणा लार्ड माउंटबेटन ने की थी तब कांग्रेस ने 15 जून को उसे स्वीकार कर लिया था तथा 20 जून को बंगाल में उसके विधायकों ने उसके पक्ष में वोट डाला था।अविभाजित बंगाल प्रांतीय विधानसभा में 250 सदस्य थे जिनमें केवल 78 ही सामान्य सीट का प्रतिनिधित्व करते थे तथा 117 आरक्षित मुस्लिम सीट पर निर्वाचित हुए थे। बाकी विधायक एंग्लो इंडियन, यूरोपीय, जमींदार और यूनीवर्सिटी जैसे अन्य विशेष हितों का प्रतिनिधित्व करते थे।

    कांग्रेस ने तब अधिकतम सामान्य सीट जीती थी तथा उसके पास कुछ विशेष हित की भी सीट थीं, इस तरह उसके 87 विधायक थे। मुस्लिम लीग के 115 विधायक थे और हिंदू महासभा का मात्र एक विधायक था जो कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करता था।

    120 विधायकों ने अखंड बंगाल के पक्ष में डाला था वोट 

    जब 20 जून, 1947 को पूर्ण विधानमंडल की पहली बैठक हुई थी तब 120 विधायकों ने अखंड बंगाल के पक्ष में वोट डाला था जो इस प्रांत का भविष्य तय करने के लिए जरूरी से कम मत थे। बाद में पश्चिम बंगाल के विधायकों, जिनमें अधिकतर कांग्रेस के थे, ने विभाजन तथा भारत के साथ जुड़ने के पक्ष में 58 वोट दिये एवं विरोध में 21 वोट पड़े।

    पूर्वी बंगाल के विधायकों ने पूर्वी पाकिस्तान के पक्ष में 107 वोट दिये और विरोध में 34 वोट पड़े।सुगत बोस ने कहा कि विधायकों के पास चुनने की आजादी नहीं थी और उन्होंने (पश्चिम बंगाल बनाने के लिए) कांग्रेस की ओर से जारी व्हिप और (पूर्वी पाकिस्तान बनाने के लिए) मुस्लिम लीग की ओर से जारी व्हिप के अनुसार कदम उठाया। लेकिन इससे पहले कुछ महीने तक संयुक्त (अखंड) बंगाल का प्रतिकारी विचार भी प्रांत के नेताओं एवं बुद्धिजीवियों के एक वर्ग के बीच उभरा था और उनमें नेताजी के भाई शरत बोस जैसे कई प्रतिपादक थे।

    स्वतंत्रता सेनानियां ने अखंड बंगाल का देखा था सपना 

    शरत बोस ने कहा था कि हमारे सभी स्वतंत्रता सेनानियां ने अखंड भारत में अखंड बंगाल का सपना देखा था, लेकिन दुर्भाग्य से 1946 में दो धार्मिक समुदायों के बीच संबंध बिगड़ गये और विभाजन की बातें जड़ें जमाने लगीं। हार्वर्ड विश्वविद्यालय में इतिहास की गार्डिनर पीठ की अध्यक्षता कर रहे सुगत बोस ने कहा कि शरत बोस ने बंगाल एवं भारत की एकता को संजोकर रखने की हरसंभव कोशिश की। उन्होंने ‘अखंड भारत में अखंड बंगाल’ के लिए अपनी योजना के बारे में वल्लभभाई पटेल को एक पत्र लिखा, उनका विचार द्विराष्ट्र सिद्धांत को धता बताना था।

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