मुर्शिदाबाद हिंसा के जख्म अब भी मौजूद, दंगाइयों ने महिलाओं के सामने पति-बच्चों को मार डाला; लोग बोले- बस न्याय दे दो
मृतक चंदन दास की भाभी श्रावणी दास ने बताया कि दंगाइयों ने न केवल पुरुषों को निशाना बनाया बल्कि महिलाओं पर भी अत्याचार किया। वह कहती हैं कि वे हमसे चूड़ी और सिंदूर छीनने की बात कह रहे थे। हमने खुद को कमरे में बंद कर लिया लेकिन बाहर मेरे ससुर और देवर को खींचकर सड़क पर ले गए। तलवार हंसिया से कई लोग हमला कर रहे थे।

मोहन झा, जाफराबाद। बंगाल में मुर्शिदाबाद जिले के धुलियान में गंगा किनारे बसे जाफराबाद गांव में एक हिंदू परिवार पर हुए क्रूर हमले ने मानवता को शर्मसार कर दिया है। वक्फ संशोधन कानून के विरोध में पिछले सप्ताह शुक्रवार को हिंसा भड़की थी और एक दिन बाद शनिवार को दंगाई इस परिवार पर टूट पड़े थे।
दंगाइयों ने 65 वर्षीय हरगोबिंद दास और उनके बेटे चंदन दास को मौत के घाट उतार दिया था। इस नृशंस हत्याकांड को परिवार की महिलाओं और बच्चों ने अपनी आंखों से देखा। इनका कहना है कि दोनों के शरीर का ऐसा कोई भाग नहीं था, जहां जख्म नहीं थे। पिता और पुत्र की अर्थियां एक साथ उठीं थीं।
अब भी मौजूद हैं हिंसा के निशान
इस वारदात के छह दिन बीत जाने के बाद भी जाफराबाद गांव में हरगोबिंद दास के घर पर हमले के निशान साफ दिखाई दे रहे हैं। घर का सामान बिखरा पड़ा है। दरवाजे और खिड़कियां तोड़ दी गई हैं। दीवारों पर हिंसा की क्रूरता की कहानी साफ झलकती है।
घर के एक कोने में बैठी हरगोबिंद की पत्नी और चंदन की मां पारुल दास (65) सिसकियां भर रही हैं। उनकी आंखों से आंसुओं की धारा थमने का नाम नहीं ले रही। वह बार-बार कहती हैं कि टाका आर बाड़ी लागबे ना गो दीदी, हिंदू बोले कि आमार स्वामी आर छेले के केरे निलो? (पैसा और घर की जरूरत नहीं है दीदी, हिंदू होने की वजह से क्या मेरे पति और बेटे को मार डाला?)।
यहां दीदी का मतलब बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से है। पारुल दास ने बताया कि शुक्रवार की रात हिंसा की शुरुआत के बाद शनिवार सुबह अनेक दंगाई गांव में घुस आए। उन्होंने घरों पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। लूटपाट मचाई और हिंदू परिवारों को निशाना बनाया। मेरे घर पर दो बार हमला हुआ।
धारदार हथियारों से बोला था हमला
- पहली बार दंगाई घर में घुसने में नाकाम रहे, लेकिन दूसरी बार उन्होंने लोहे के रॉड और भारी हथियारों से दरवाजा तोड़ डाला। इसके बाद छत, पीछे के रास्ते और चारों ओर से घर को घेरकर हमला किया। पारुल ने रोते हुए बताया कि दंगाइयों ने उनके पति और बेटे को पकड़कर बाहर खींच लिया। धारदार हथियारों से हमले करने लगे।
- दोनों के शरीर का कोई अंग ऐसा नहीं बचा, जहां जख्म न हों। इतने से भी उनका मन नहीं भरा तो घर का सारा सामान लूट लिया। 12 वर्षीय आकाश का दर्द और गुस्सामृतक चंदन दास का 12 वर्षीय बेटा आकाश आठवीं कक्षा का छात्र है। वह अपने दादा और पिता की हत्या का गवाह बना है।
- उसका सवाल है कि मेरे दादा और पिता का क्या दोष था? लोग इतने क्रूर कैसे हो सकते हैं? जिस नृशंस तरीके से उनकी हत्या की गई, मैं चाहता हूं कि हत्यारों को भी वैसी ही सजा मिले। आकाश का दर्द तब और गहरा हो जाता है, जब वह कहता है कि पिता के बिना हम भाई-बहन कैसे जिएंगे? कैसे पढ़ाई करेंगे? कैसे जीवन चलाएंगे?
पीड़ित कर रहे न्याय की मांग
एक प्रत्यक्षदर्शी ने कहा कि हमारा किसी से कोई झगड़ा नहीं था। फिर हिंदुओं पर इतनी क्रूरता क्यों? एक दिन में एक घर से दो अर्थियां उठे, यह कैसे सहा जाए? हिंसा के बाद परिवार पूरी तरह टूट चुका है। पारुल, आकाश और श्रावणी किसी भी सरकारी मदद की उम्मीद नहीं रखते।
उनकी एकमात्र मांग है- हमें कुछ नहीं चाहिए, बस न्याय चाहिए। हत्यारों को सजा मिले। स्थानीय लोग भी प्रशासन से इस मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग कर रहे हैं।
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