Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मतुआ संप्रदाय: समाज के दबे-कुचले व वंचित लोगों की आवाज थे हरिचंद ठाकुर, भलाई के लिए समर्पित किया था अपना जीवन

    By Priti JhaEdited By:
    Updated: Tue, 29 Mar 2022 02:14 PM (IST)

    बंगाल में मतुआ समुदाय का कई लोकसभा सीटों एवं लगभग 70 विधानसभा सीटों पर खासा प्रभाव है। बंगाल में इसे सत्ता तक पहुंचने की कुंजी समझा जाता है। हर राजनैतिक पार्टी मतुआ संप्रदाय के सामने नतमस्तक रहा है।बंगाल में मतुआ संप्रदाय को मानने वालों की संख्या तकरीबन तीन करोड़ है।

    Hero Image
    मतुआ समुदाय के मंदिर में पूजा अर्चना करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।: फाइल फोटो

    कोलकाता, राजीव कुमार झा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के श्रीधाम ठाकुरनगर में मतुआ समुदाय के गुरु हरिचंद ठाकुर की जन्मतिथि के अवसर पर आयोजित धर्म महा मेले को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित करेंगे। इधर, मतुआ समुदाय के गुरु श्री श्री हरिचंद ठाकुर की बात करें तो उन्होंने देश की आजादी से पहले के दौर में अविभाजित बंगाल में उत्पीड़ित, समाज के दबे-कुचले और बुनियादी सुविधाओं से वंचित लोगों की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। उनके द्वारा शुरू किया गया सामाजिक एवं धार्मिक आंदोलन वर्ष 1860 में ओरकांडी (अब बांग्लादेश में) से शुरू हुआ था और फिर इसकी परिणति मतुआ धर्म की स्थापना के रूप में हुई थी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    खुद पीएम ने भी एक दिन पहले ट्वीट कर कहा था कि मतुआ धर्म महामेला 2022 को संबोधित करने के लिए मुझे जो आमंत्रित किया गया, इससे मैं गौरवांवित महसूस कर रहा हूं। हम श्री श्री हरिचंद ठाकुर जी की जयंती भी मनाएंगे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक न्याय और लोक कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। इस मेले को लेकर प्रधानमंत्री पहले ही शुभकामनाएं भी भेज चुके हैं। मतुआ धर्म महा मेला 2022 का आयोजन अखिल भारतीय मतुआ महासंघ द्वारा 29 मार्च से पांच अप्रैल तक किया जा रहा है।

    बता दें कि बंगाल में मतुआ समुदाय का कई लोकसभा सीटों एवं लगभग 70 विधानसभा सीटों पर खासा प्रभाव है। बंगाल में इसे सत्ता तक पहुंचने की कुंजी समझा जाता है। हर राजनैतिक पार्टी मतुआ संप्रदाय के सामने नतमस्तक रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मतुआ समुदाय का भरपूर समर्थन मिला था और पार्टी मतुआ के प्रभाव वाले बनगांव समेत अन्य सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाबी हासिल की थी। पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मतुआ को नागरिकता देने के लिए संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) को लागू कराने के वादे के साथ बेहतर प्रदर्शन किया था। हालांकि सीएए अभी तक लागू नहीं हो सका है और मतुआ समुदाय के लाखों लोगों को अब तक भारत की नागरिकता का इंतजार है, जो दशकों से यहां रह रहे हैं। वहीं, सीएए लागू करने में देरी को लेकर पिछले कुछ महीनों में सांसद शांतनु ठाकुर को एक से ज्यादा बार भाजपा के विक्षुब्धों से मिलते भी देखा गया है और वह खुद भी नाराज चल रहे थे। इस नाराजगी के बीच मतुआ धर्म मेले में पीएम के संबोधन के कदम की इस पहल को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

    क्या है मतुआ संप्रदाय?

    मतुआ संप्रदाय की शुरुआत 1860 में अविभाजित बंगाल में हुई थी। मतुआ महासंघ की मूल भावना है चतुर्वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) की व्यवस्था को खत्म करना। यह संप्रदाय हिंदू धर्म को मान्यता देता है लेकिन ऊंच-नीच के भेदभाव के बिना। इसकी शुरुआत समाज सुधारक हरिचंद ठाकुर ने की थी। उनका जन्म एक गरीब और अछूत नामशूद्र परिवार में हुआ था। ठाकुर ने खुद को ‘आत्मदर्शन’ के जरिए ज्ञान की बात कही। अपने दर्शन को 12 सूत्रों के जरिए लोगों तक पहुंचाया। मतुआ महासंघ की मान्यता ‘स्वम दर्शन’ की रही है। मतलब जो भी ‘स्वम दर्शन’ या भगवान हरिचंद के दर्शन में भरोसा रखता है, वह मतुआ संप्रदाय का माना जाता है। धीरे-धीरे उनकी ख्याति वंचित और निचली जातियों में काफी बढ़ गई। संप्रदाय से जुड़े लोग हरिचंद ठाकुर को भगवान विष्णु और कृष्ण का अवतार मानते हैं। सम्मान में उन्हें श्री श्री हरिचंद्र ठाकुर कहते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, बंगाल में मतुआ संप्रदाय को मानने वालों की संख्या तकरीबन तीन करोड़ है। 

    comedy show banner
    comedy show banner